मां भारती के महान सपूत, विचारक, दार्शनिक, भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण के नेतृत्वकर्ता एवं भारतीय सभ्यता, संस्कृति, धर्म और आध्यात्मिकता की समृद्ध विरासत को वैश्विक मंच पर पहुंचाने वाले स्वामी विवेकानन्द, युवा शक्ति के लिए प्रेरणास्रोत और एक अनुकरणीय आदर्श हैं। उन्होंने भारत को न केवल आर्थिक और भौतिक रूप से, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी एक मजबूत राष्ट्र बनाने की दिशा में अप्रतिम योगदान दिया। वे नैतिक मूल्यों के विकास एवं युवा चेतना के जागरण हेतु कटिबद्ध, मानवीय मूल्यों के पुनरुत्थान के सजग प्रहरी, अध्यात्म, दर्शन और संस्कृति को जीवंतता प्रदान करने वाले, भारतीय संस्कृति एवं भारतीयता के प्रखर प्रवक्ता, अध्यात्म और विज्ञान के समन्वयक, वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। भारत की गौरवशाली सनातन संस्कृति को दुनिया भर में उच्चतम स्तर पर स्थापित करने हेतु विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी, 1863 को हुआ था। वे बचपन से ही कुशाग्रबुद्धि के थे तथा परमात्मा को पाने की तीव्र उत्कण्ठा थी। वर्ष 1881 में रामकृष्ण परमहंस से साक्षात्कार के पश्चात् ये सांसारिक जीवन त्याग कर रामकृष्ण परमहंस के परम शिष्य बन गये।
स्वामी विवेकानंद की भारत की युवा पीढ़ी में गहन आस्था थी। उन्होंने “उठो जागो और तब तक न रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त ना हो जाए” के उद्घोष से राष्ट्र की युवा पीढ़ी में नई चेतना, नई शक्ति, नई ऊर्जा और अद्भुत आत्मविश्वास का संचार किया। वास्तव में युवा शक्ति न केवल हमारे राष्ट्र की समाज की अमूल्य संपदा है अपितु वह हमारे राष्ट्र का प्राणतत्व भी है। युवा ही गति, स्फूर्ति, चेतना, प्रज्ञा और राष्ट्र का ओज है। कठोपनिषद में उल्लेख है कि “जिनकी ऊर्जा अक्षुण्ण है, जिनका यश अक्षय है, जिनका जीवन अंतहीन है, जिनका पराक्रम अपराजेय है, जिनकी आस्था अडिग है और संकल्प अटल है वही युवा है। जो अपनी शक्ति सामर्थ्य और साहस से पराक्रम और प्रताप से राष्ट्र को परम वैभव तक पहुंचाने का दायित्व सहर्ष स्वीकारता है वही युवा है”। स्वामी जी का उद्देश्य बिल्कुल स्पष्ट था कि उन्हें एक बार पुनः भारतीय संस्कृति की गौरवशाली परंपरा सम्पूर्ण विश्व में सर्वोच्च पायदान में स्थापित करनी है। 11 सितंबर, 1893 को स्वामी विवेकानंद ने विश्व धर्म सम्मेलन में अपने उद्बोधन में कहा था कि, मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूँ जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृति की शिक्षा दी है। हम लोग सभी धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते वरन समस्त धर्मो के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं। उन्होंने कहा था कि मुझे ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान है जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों और देशों के उत्पीड़ितों और शरणार्थियों को आश्रय दिया है।
रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम्।
नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव॥
अर्थात जैसे विभिन्न नदियाँ भिन्न भिन्न स्रोतों से निकलकर समुद्र में मिल जाती हैं उसी प्रकार हे प्रभो! भिन्न-भिन्न रुचि के अनुसार विभिन्न टेढ़े-मेढ़े अथवा सीधे रास्ते से जानेवाले लोग अन्त में तुझमें ही आकर मिल जाते हैं।
स्वामी विवेकानंद ने भारत की दुःख एवं गरीबी को दूर करने, उसे सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने के लिए रास्ता भी बताया। उनके अनुसार महान कार्य के लिए आत्मीयता, सोचने-समझने की विचार शक्ति और हृदय की विशालता आवश्यक है। विवेकानन्द ने युवा वर्ग के चरित्र निर्माण हेतु पांच सूत्र – आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता, आत्मज्ञान, आत्मसंयम और आत्मत्याग बताये। स्वामी जी के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से शिक्षा, ज्ञान एवं धन अर्जित करने का प्राकृतिक अधिकार होना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति में मानव गरिमा तथा सम्मान की भावना जैसे गुणों का विकास होना चाहिए। स्वस्थ्य एवं सम्पन्न व्यक्ति से एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण होगा। उन्होंने कहा था कि मैं चाहता हूँ कि मेरे सब बच्चे, मैं जितना उन्नत कर सकता था, उससे सौगुना उन्नत बनें। तुम लोगों में से प्रत्येक को महान शक्तिशाली बनना होगा, मैं कहता हूँ, अवश्य बनना होगा। आज्ञा-पालन, ध्येय के प्रति अनुराग तथा ध्येय को कार्यरूप में परिणत करने के लिए सदा प्रस्तुत रहना, इन तीनों के रहने पर कोई भी तुम्हें अपने मार्ग से विचलित नहीं कर सकता। इसमें कोई संदेह नहीं कि महान कार्य सभी धीरे-धीरे होते हैं। उनके मातृभूमि प्रेम को इस कथन से समझा जा सकता है कि “मातृभूमि के लिए मेरे सम्पूर्ण जीवन की भक्ति अर्पित करता हूँ और यदि मुझे सहस्र बार भी जन्म लेना पड़े तब भी उस सहस्र जीवन का एक-एक क्षण मेरे देशवासियों का होगा”।
विवेकानंद केवल सन्त ही नहीं, महान देशभक्त, युवाओं के आदर्श, वक्ता, विचारक, लेखक तथा भारत के प्रथम सांस्कृतिक राजदूत भी थे। स्वामी विवेकानंद का मानना था कि किसी भी राष्ट्र का युवा जागरूक और अपने उद्देश्य के प्रति समर्पित हो, तो वह देश किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। यह स्पष्ट है कि वर्तमान में भारत विश्व की सर्वाधिक युवा जनसंख्या वाला देश है तथा भारत केंद्रित राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से सभी क्षेत्रों में भारत विकसित राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है। इस अनुक्रम में युवाओं को सफलता के लिये समर्पण भाव को बढ़ाना होगा तथा भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिये तैयार रहना होगा। स्वामी विवेकानंद के विचार और जीवनदर्शन युगों-युगों तक युवाओं के प्रेरणास्रोत और आदर्श बने रहेंगे।