विकास को समग्र दृष्टि से देखना आवश्यक: पूज्य सरसंघचालक

गणतंत्र दिवस
प्रो. रवीन्द्र नाथ तिवारी 
(लेखक, भारतीय शिक्षण मण्डल महाकौशल प्रान्त अनुसंधान प्रकोष्ठ के प्रान्त प्रमुख हैं)

भारतीय शिक्षण मंडल द्वारा आयोजित त्रिदिवसीय अखिल भारतीय शोधार्थी सम्मेलन ‘विविभा 2024’ का शुभारंभ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परमपूज्य सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने किया। ‘विजन फॉर विकसित भारत’ (विविभा 2024) सम्मेलन 15 से 17 नवंबर 2024 तक एसजीटी विश्वविद्यालय, गुरुग्राम, हरियाणा में आयोजित किया जा रहा है। उद्घाटन कार्यक्रम में भारत केंद्रित शोध को बढ़ावा देने और युवाओं में शोध के प्रति जागरूकता लाने के प्रयास को विशेष रूप से सराहा गया। इस अवसर पर पूज्य सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने भारतीय शिक्षण मंडल की शोध पत्रिका ‘प्रज्ञानम’ का लोकार्पण किया। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि समग्र दृष्टिकोण ही भारत की पहचान है। प्रत्येक भारतवासी एक विकसित, समर्थ और स्वावलंबी भारत की आकांक्षा रखता है। विश्व में 4 प्रतिशत जनसंख्या वालों को 80 प्रतिशत संसाधन चाहिए, जिस कारण विकास तो हुआ किंतु पर्यावरण की समस्या उत्पन्न हो गई।

पिछले 2000 वर्षों में विकास के अनेक प्रयोग हुए, जिनकी अपूर्णताओं से सीखने की जरूरत है। आज, विश्व अपनी विफलताओं के समाधान के लिए भारत की ओर देख रहा है। उन्होंने जोर दिया कि विकास और पर्यावरण की रक्षा के बीच संतुलन बनाए रखना ही मानवता की स्थिरता का मार्ग है। केवल संतुलित दृष्टिकोण अपनाकर ही भारत और विश्व का भविष्य सुरक्षित किया जा सकता है। 16वीं सदी तक भारत हर क्षेत्र में अग्रणी था। भारत में 10,000 वर्षों से खेती होती रही, फिर भी अन्न, जल, और वायु विषाक्त नहीं हुए। आज पाश्चात्य अन्धानुकरण ने संकट उत्पन्न किया है। विकास को समग्र दृष्टि से देखना होगा। केवल भौतिक समृद्धि पर्याप्त नहीं; आत्मिक उन्नति भी साथ होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि तकनीक का स्वागत है, पर निर्ममता के बिना। भारतीय ज्ञान परंपरा पेटेंट से नहीं, ज्ञान के मुक्त प्रवाह से प्रेरित है, पर उसका विवेकपूर्ण उपयोग अनिवार्य है। हर हाथ को काम और हर मन को सीखने का अवसर मिलना चाहिए। पढ़ाई का अंत सीखने का अंत नहीं है; यही निरंतरता बुद्धत्व तक पहुंचाती है।

इसरो के अध्यक्ष डॉ. एस. सोमनाथ ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा प्रस्तुत विकसित भारत की परिकल्पना को साकार करने का यही उपयुक्त समय है। उन्होंने मिशन चंद्रयान की सफलता का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत का लक्ष्य 2040 तक चंद्रमा पर मानव भेजना और अपना स्पेस स्टेशन स्थापित करना है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत को विश्वगुरु बनाने की दिशा में कार्य करते हुए ऐसा देश बनाना है, जहां लोग खुशी और संतोष के साथ जीवन व्यतीत करें। नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने भारतीय परंपरा की गहराई को रेखांकित करते हुए कहा कि जीवन में जो कुछ भी प्राप्त होता है, उसे दुनिया को लौटाने का आनंद ही हमारी परंपरा की पहचान है। भारत समावेशी विकास के साथ प्रगति करता है और अपनी अनूठी परिभाषा के आधार पर आगे बढ़ता है। उन्होंने कहा कि भारत को किसी की नकल करने या किसी से सहायता मांगने की आवश्यकता नहीं है। हमारे ऋषियों ने हमें यह सिखाया है कि “तेरे-मेरे” का भाव समाप्त करके ही वसुधैव कुटुंबकम की भावना को साकार किया जा सकता है।

विविभा : 2024 में कणाद से कलाम तक की भारत की यात्रा की प्रदर्शनी में भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा से लेकर आधुनिक विज्ञान को अद्भुत ढंग से प्रस्तुत किया गया। 10,000 शैक्षणिक और शोध संस्थानों तथा विश्वविद्यालयों ने “भारतीय शिक्षा,” “विकसित भारत के लिए दृष्टि,” और “भविष्य की तकनीक” जैसे विषयों पर अपने नवाचारों का प्रदर्शन किया। प्रदर्शनी में प्राचीन गुरुकुल प्रणाली से लेकर आधुनिक तकनीकी नवाचारों तक भारतीय शिक्षा का विकास दिखाया गया। छत्रपति शिवाजी के ऐतिहासिक अस्त्र-शस्त्रों से लेकर भारतीय वायुसेना की ब्रह्मोस मिसाइल तक, हर स्टॉल ने इतिहास और भविष्य को एक सूत्र में पिरो दिया।

भारतीय शिक्षण मंडल भारतीय मूल्य पर आधारित भारतीय संस्कृति की जड़ों से घोषित तथा भारत केंद्रित बनाने हेतु विगत 55 वर्षों से कार्य कर रहा है तथा कार्य क्षेत्र देश के समस्त शैक्षिक संस्थान हैं। ‘विविभा 2024’ को सफल बनाने के लिए भारतीय शिक्षण मंडल-युवा आयाम ने 5 लाख शोधकर्ताओं और 1 लाख शिक्षकों से संपर्क किया। इस दौरान 350 शोध आनंदशालाएं आयोजित की गईं। एक शोध पत्र लेखन प्रतियोगिता में 1,68,771 विद्यार्थियों ने भाग लिया, जिसमें से 45 मूल्यांकन समितियों और 1400 विषय विशेषज्ञों के मूल्यांकन के बाद 1200 शोध पत्र प्रदर्शनी के लिए चुने गए। राज्य स्तर पर चयनित इन शोधकर्ताओं को प्रमाणपत्र प्रदान कर उनके प्रयासों को सराहा गया।

इस आयोजन का उद्देश्य युवा शोधकर्ताओं को प्रेरित करना है ताकि वे भारत को विश्वगुरु बनाने में योगदान दें। विज्ञान और तकनीक के माध्यम से सामूहिक विकास में आने वाली बाधाओं पर शोध आवश्यक है। समस्याओं से समाधान की राह निकालकर दुनिया को एक नई दिशा देना विविभा का लक्ष्य है। ‘विजन फॉर विकसित भारत’ के तहत, नई शिक्षा नीति 2020 के माध्यम से शिक्षा में भारतीयता के समावेश का प्रयास हो रहा है। इस शोध महाकुंभ ने भारत को वैश्विक नेतृत्व देने वाले बौद्धिक युवाओं का मार्ग प्रशस्त किया है।

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