यह कविता, जो राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर बालिकाओं के अधिकार, समानता और सशक्तिकरण का संदेश देती है।
बालिका हूँ मैं, न कोई बोझ, न कोई बोली
बालिका हूँ मैं, न कोई अभिशाप, न कोई दोष
बालिका हूँ मैं, न कोई कमजोर, न कोई अधूरी
बालिका हूँ मैं, न कोई उपेक्षित, न कोई अनहकी
बालिका हूँ मैं, जिसका है अपना अस्तित्व
बालिका हूँ मैं, जिसका है अपना अधिकार
बालिका हूँ मैं, जिसका है अपना स्वाभिमान
बालिका हूँ मैं, जिसका है अपना सपना
बालिका हूँ मैं, जो पढ़ती है, लिखती है, सीखती है
बालिका हूँ मैं, जो खेलती है, हँसती है, जीतती है
बालिका हूँ मैं, जो बदलती है, रचती है, बनाती है
बालिका हूँ मैं, जो सोचती है, बोलती है, करती है
बालिका हूँ मैं, जो आजाद है, समान है, सशक्त है
बालिका हूँ मैं, जो गौरव है, उमंग है, उम्मीद है
बालिका हूँ मैं, जो रोशनी है, आशा है, भविष्य है
बालिका हूँ मैं, जो भारत है, विश्व है, जीवन है
बालिका हूँ मैं, जो नहीं डरती, नहीं रुकती, नहीं झुकती
बालिका हूँ मैं, जो नहीं डरती, नहीं रुकती, नहीं झुकती
– महक तिवारी, राजस्थान
इसे भी पढ़ें-
रचनाकारों से आग्रह- गीत, गजल, कविताएं, लघुकथाएं तथा स्मृति दिवसों, पर्वों पर अपनी कलम का कमाल दिखाएं और कुछ आनंददायक, प्रेरक और प्रभावी लिख भेजिए। ध्यान रहे रचना स्वरचित, मौलिक व अप्रकाशित होनी चाहिए। रचना के साथ अपनी फ़ोटो, उम्र व संक्षिप्त परिचय जरूर भेजें। आप अपनी रचनाएं janabhyudaykranti@gmail.com पर टाइप कर के ही भेजें। प्रकाशन का अंतिम निर्णय जन अभ्युदय क्रांति न्यूज की टीम ही करेगी। धन्यवाद।