भारत की समृद्ध सनातन संस्कृति में त्योहार राष्ट्रीय एकता, प्रेम और हर्षोल्लास को प्रकट करते हैं। इन्हीं में से एक प्रमुख पर्व है दीपावली, जिसे न केवल भारत में अपितु विश्वभर में भारतीय समुदाय हर्षपूर्वक मनाता है। अयोध्या में भगवान राम के 14 वर्षों के वनवास से लौटने की खुशी में जलाए गए दीपों से शुरू हुई यह परंपरा आज संपूर्ण भारत में हर्ष और उल्लास से मनाई जाती है। दीपावली समाज में समरसता, एकता और स्वावलंबन की भावना को बढ़ाने का अवसर है। यह पांच दिवसीय उत्सव भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। दीपावली का शुभारंभ त्रयोदशी से होता है, जिसे आचार्य धन्वंतरि के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि सागर मंथन के दौरान धन्वंतरि अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे। इस दिन लोग धन की देवी लक्ष्मी, कुबेर और धन्वंतरि की पूजा करते हैं। अगले दिन नरक चतुर्दशी होती है, जिसमें पितरों को दीपदान किया जाता है। तीसरे दिन अमावस्या की रात को दीपोत्सव मनाया जाता है, जिसे दीवाली का मुख्य दिवस माना जाता है। इसके पश्चात चौथे दिन गोवर्धन पूजा या अन्नकूट उत्सव होता है, जिसमें नई फसल का स्वागत किया जाता है। पांचवें और अंतिम दिन भाई दूज का पर्व जिसमें बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और सुरक्षा की कामना करती हैं।
दीपोत्सव पर्व का उल्लेख अनेक पौराणिक और ऐतिहासिक ग्रंथों में मिलता है। कहा जाता है कि जब भगवान राम रावण को पराजित कर अयोध्या लौटे, तो अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर उनका भव्य स्वागत किया। एक और प्रचलित कथा के अनुसार, जब भगवान श्रीकृष्ण ने दुष्ट नरकासुर का वध किया, तो ब्रजवासियों ने दीपक जलाकर अपनी प्रसन्नता प्रकट की। साथ ही, भगवान विष्णु ने राजा बलि की उदारता से प्रसन्न होकर वचन दिया था कि उनकी याद में लोग हर वर्ष दीपावली मनाएंगे। इसके अतिरिक्त, देवी दुर्गा ने राक्षसों के संहार के लिए महाकाली का रूप धारण किया, और जब उनके क्रोध का अंत नहीं हुआ, तो भगवान शिव उनके चरणों में लेटकर उन्हें शांत किया। तत्पश्चात लक्ष्मी के सौम्य रूप की पूजा शुरू हुई, साथ ही काली के रौद्र रूप की पूजा की भी परंपरा रही। इतिहास में भी दीपावली का उल्लेख मिलता है, यथा गौतम बुद्ध के अनुयायियों ने 2500 वर्ष पहले उनके स्वागत में दीप जलाकर दीवाली मनाई थी। सम्राट विक्रमादित्य का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था, जिसे दीप जलाकर हर्षोल्लास से मनाया गया। चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में लिखे गए कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी कार्तिक अमावस्या पर दीप जलाने की परंपरा का उल्लेख मिलता है। दीपक जलाकर अंधकार को दूर करने और नई ऊर्जा का स्वागत करने की यह प्राचीन परंपरा आज भी जारी है।
दीपक केवल प्रकाश का स्रोत नहीं है, अपितु यह गहरे आध्यात्मिक अर्थ और हमारे आंतरिक और वाह्य अस्तित्व के मध्य सेतु का प्रतीक है। जब दीपक जलाते हैं, तो यह आत्मा से जुड़ने का माध्यम बनता है, जिससे प्रार्थना करते हैं कि यह दीपक पापों को दूर करे और स्वास्थ्य, धन, समृद्धि, और सुरक्षा प्रदान करे। यह हमें सत्य और न्याय के पथ पर चलने की प्रेरणा देता है। दीपक अज्ञानता और अंधकार को मिटाकर ज्ञान का प्रकाश फैलाता है, जिससे जीवन में पूर्णता का अनुभव होता है। दीपक न केवल प्रकाश प्रदान करता है, अपितु हमारे भीतर आशा का संचार करता है। विपरीत परिस्थितियों में यह आशा की किरण बनकर आगे बढ़ने का साहस देता है और सुख के क्षणों में अपनी सर्वोत्तम क्षमता का प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित करता है। इसका प्रज्वलन जीवन की संरचना और सुव्यवस्थितता का प्रतीक है, जो मन और मस्तिष्क के संतुलन को दर्शाता है। दीपक की उपस्थिति हमारे जीवन में आध्यात्मिक उन्नति और शांति लाती है, जिससे बाहरी नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं। दीपक की पूजा इसीलिए की जाती है क्योंकि यह परब्रह्म का प्रतीक है, जो ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ की भावना को प्रकट करता है। यह ‘अप्प दीपो भवः’ अर्थात ‘अपना मार्गदर्शक स्वयं बनो’ का संदेश देता है, जिससे हम अपने भीतर के प्रकाश को पहचानकर एक बेहतर जीवन की ओर अग्रसर होते हैं।
आजादी के अमृतकाल में दीपोत्सव का विशेष महत्व है, खासकर इस वर्ष जब अयोध्या में 500 वर्षों के पश्चात श्री राम मंदिर में भव्य दीपोत्सव मनाया जा रहा है। अमृतकाल भारत की सांस्कृतिक पुनर्जागरण और स्वदेशी भावना को बढ़ावा देने का समय है। जब हर व्यक्ति स्वदेशी और स्थानीय वस्तुओं का उपयोग करेगा, तब देश में स्वावलंबन का भाव सुदृढ़ होगा। अयोध्या में श्री राम मंदिर का पुनर्निर्माण केवल एक ऐतिहासिक क्षण नहीं है, अपितु यह भारत की नव सांस्कृतिक जागरूकता और राम राज्य के आदर्शों के प्रति हमारे समर्पण का प्रतीक है। राम राज्य का सिद्धांत शांति, न्याय, और समानता की स्थापना करता है, जिसमें हर व्यक्ति को उनके अधिकार और कर्तव्य समान रूप से प्राप्त होते हैं। श्री राम मंदिर का निर्माण राष्ट्र के सांस्कृतिक मूल्यों और भावना का प्रतीक है, जो संपूर्ण समाज को एकजुटता, समरसता, और स्वावलंबन की राह पर अग्रसर करता है। 500 वर्षों के पश्चात अयोध्या में मनाया जा रहा यह दीपोत्सव भारत की सांस्कृतिक पुनर्जागृति का प्रतीक है, जिसमें राष्ट्रभक्ति, सामाजिक एकता और कर्त्तव्यबोध का संदेश समाहित है। इस अवसर पर देशवासियों के लिए यह दीपावली विशेष महत्व रखती है, जो न केवल व्यक्तिगत खुशियों का पर्व है, अपितु राष्ट्र की समृद्धि, स्वावलंबन, और सामाजिक समरसता की भी अभिव्यक्ति है।