(लेखक, प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस शासकीय आदर्श विज्ञान महाविद्यालय रीवा में प्राचार्य हैं)
भारतीय दर्शन में, शिक्षक को गुरु के रूप में देखा जाता है, जो सिर्फ ज्ञान ही नहीं देता, बल्कि अज्ञान के अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। प्राचीन काल से ही गुरु-शिष्य परंपरा भारत की शिक्षा व्यवस्था का केंद्र रही है। तुलसीदास के ‘रामचरितमानस’ और अन्य शास्त्रों में गुरु की महिमा का वर्णन मिलता है, जहां उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान माना गया है। एक राष्ट्र का भविष्य उसकी कक्षाओं में आकार लेता है, और इस भविष्य के निर्माता शिक्षक होते हैं। चीनी दार्शनिकों की एक पुरानी कहावत है, कि यदि आप 100 साल के लिए योजना बना रहे हैं, तो मनुष्य का निर्माण करें। मनुष्य के निर्माण का यह कार्य शिक्षक ही करते हैं। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने भी इस बात पर जोर दिया था कि छात्रों को ‘विकसित भारत’ का सपना देखना चाहिए, और इस सपने को साकार करने की जिम्मेदारी शिक्षकों की है।
भारत युवाओं का देश है और आज विश्व में सर्वाधिक युवा शक्ति भारत में ही है। यह शिक्षक का कर्तव्य है कि वह युवा शक्ति को सही दिशा दिखाए। डॉ. कलाम के अनुसार, शिक्षकों को अपने ज्ञान को हमेशा अपडेट रखना चाहिए और अपने विद्यार्थियों में आशा और आत्मविश्वास जगाना चाहिए। उन्हें अपने निराशा की छाया छात्रों पर नहीं पड़ने देनी चाहिए। एक शिक्षक का कार्य सिर्फ पाठ्यक्रम पूरा करके परीक्षा की तैयारी कराना नहीं है, बल्कि छात्रों के सर्वांगीण विकास में योगदान देना है। इसमें न केवल उनका बौद्धिक विकास शामिल है, बल्कि उनका भावनात्मक विकास भी महत्वपूर्ण है। आधुनिक जीवनशैली और भोग-विलास की संस्कृति ने कई सामाजिक समस्याएं पैदा की हैं, जैसे व्यसनाधीनता। शिक्षकों को इन चुनौतियों का सामना करने के लिए छात्रों को जागरूक करना होगा और सामाजिक स्वास्थ्य के रक्षक की भूमिका निभानी होगी।
शिक्षक की प्रतिबद्धता तीन चीजों के प्रति होती है: विद्यार्थी, ज्ञान, और समाज। आचार्य विनोबा भावे के अनुसार, “विद्यार्थी शिक्षक परायण हों, शिक्षक विद्यार्थी परायण हों, दोनों ज्ञान परायण हों, और ज्ञान सेवा परायण हो।” इसका तात्पर्य है कि शिक्षक और विद्यार्थी दोनों को ही ज्ञान के प्रति समर्पित होना चाहिए, और इस ज्ञान का अंतिम लक्ष्य समाज और राष्ट्र की सेवा होना चाहिए। यह तभी संभव है जब शिक्षक स्वयं को लगातार अद्यतन और उन्नत करते रहें। बीस-पच्चीस साल पहले प्राप्त की गई डिग्री से संतुष्ट होना पर्याप्त नहीं है, बल्कि उन्हें निरंतर अध्ययन करते रहना चाहिए। शिक्षक ऐसे शिल्पकार हैं जो मानव रूपी मिट्टी को आकार देकर एक प्रबुद्ध समाज का निर्माण करते हैं।
शिक्षा क्षेत्र में अत्याधुनिक साधन-सामग्री उपलब्ध होने के बावजूद यदि शिक्षक मन और हृदय से तैयार न हो, तो उनका कोई विशेष लाभ नहीं होता। अनेक विद्यालयों में सामग्री और प्रयोगशालाएं अनुपयोगी अवस्था में पड़ी रहती हैं। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर कहते हैं कि “सच्ची शिक्षा केवल शिक्षक द्वारा ही दी जा सकती है, किसी विधि से नहीं।” वास्तव में शिक्षक ही शिक्षा का वास्तविक प्राण है। शिक्षक यदि मिडास की भांति साधन-सामग्री का सदुपयोग कल्पना और रचनात्मकता से करे, तो मिट्टी से सोना और शून्य से सृष्टि का निर्माण कर सकता है। किंतु यदि उसका दृष्टिकोण भस्मासुर जैसा हो, तो उपलब्ध साधन भी निष्प्रभावी हो जाते हैं। देशभर में ऐसे प्रेरणादायी और मिडास-स्पर्शित शिक्षक मिलते हैं, किंतु उनकी संख्या कम है। ऐसे शिक्षकों की पहचान, प्रोत्साहन और संख्या बढ़ाने की आवश्यकता है। किसी भी देश की प्रगति शिक्षा की गुणवत्ता पर निर्भर करती है और शिक्षा की गुणवत्ता शिक्षक की निष्ठा, ममता और समर्पण से निर्धारित होती है।
शिक्षक केवल विद्या और कलाओं का ज्ञाता हो, किंतु छात्रों के प्रति प्रेम और करुणा न रखे तो उसकी विद्या व्यर्थ है। शिक्षक को मातृभाव से कार्य करना चाहिए, क्योंकि विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने और उनकी पीठ थपथपाने वाला हाथ ही वास्तविक शिक्षक का बल है। संगणक और रोबोट कभी भी शिक्षक का स्थान नहीं ले सकते। शिक्षा के लिए भौतिक साधनों से अधिक मानवीय मूल्यों अर्थात शिक्षक की संवेदनशीलता और रचनात्मकता आवश्यक है। शिक्षक के चयन, प्रशिक्षण और सतत् व्यावसायिक विकास में विशेष सावधानी बरतना ही शिक्षा की वास्तविक उन्नति का मार्ग है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए शिक्षकों की भूमिका पर विशेष जोर देती है। यह प्रत्येक छात्र की विशिष्ट क्षमताओं को पहचानने और उनके समग्र विकास पर बल देती है। नीति में शिक्षक शिक्षा, भर्ती, सेवा शर्तों और अधिकारों को सुधारने पर ध्यान दिया गया है। भर्ती प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए अध्यापक पात्रता परीक्षा को सशक्त और स्थानीय भाषा में साक्षात्कार अनिवार्य किया गया है। कला, खेल, व्यावसायिक शिक्षा व प्रतियोगी परीक्षाओं के विशेषज्ञ शिक्षकों की नियुक्ति पर भी जोर है। छोटे स्कूलों को मिलाकर ‘स्कूल कॉम्प्लेक्स’ बनाने की योजना है। उच्च शिक्षा में शिक्षक प्रशिक्षण को बहु-विषयक संस्थानों से जोड़ा जाएगा। 2030 तक सभी शिक्षक शिक्षा संस्थानों का रूपांतरण, पीएचडी धारकों के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का मूल उद्देश्य ऐसे मनुष्यों का विकास करना है जो तर्कसंगत विचार करने में सक्षम हों, जिनमें करुणा, साहस, वैज्ञानिक चिंतन और नैतिक मूल्य हों। यह नीति भारत को पुनः विश्वगुरु का दर्जा दिलाने और मानवता के विकास में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए शिक्षकों और छात्रों को सशक्त बनाने पर केंद्रित है।