भारत में शास्त्रीय भाषाओं की एक समृद्ध परंपरा है, जिन्हें सरकार द्वारा विशेष दर्जा दिया गया है। इन भाषाओं में संस्कृत, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, और ओडिया शामिल हैं। पाँच और भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया है। भारत सरकार ने हाल ही में मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने की घोषणा की है। इन भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने के बाद देश में शास्त्रीय भाषाओं की कुल संख्या 11 हो गई है। अक्टूबर, 2004 में शास्त्रीय भाषाओं के रूप में एक नई श्रेणी बनाने का फैसला किया गया था, जिसमें तमिल को शास्त्रीय भाषा घोषित किया गया था। 2005 में संस्कृत, 2008 में कन्नड़ और तेलुगु, मलयालम को 2013 में, और 2014 में उड़िया को भी शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया था। इन भाषाओं को उनकी समृद्ध विरासत और स्वतंत्र प्रकृति के कारण इस विशेष दर्जे से सम्मानित किया गया है। ये भाषाएं न केवल भारत की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं, बल्कि वे हमारी पहचान और इतिहास को भी दर्शाती हैं।
भारत में भाषाओं की विविधता अद्वितीय है, और शास्त्रीय भाषाएं इस विविधता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये भाषाएं न केवल साहित्य और शिक्षा में उपयोग की जाती हैं, बल्कि वे हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। भारत में शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के लिए कुछ मानकों और प्रक्रियाओं का पालन किया जाता है, जैसे भाषा की ऐतिहासिक प्राचीनता, भाषा की साहित्यिक और सांस्कृतिक महत्ता, भाषा की स्वतंत्र प्रकृति और व्याकरण, भाषा का उपयोग और प्रसार, और शिक्षा और अनुसंधान में महत्ता। शास्त्रीय भाषाओं के लिए कई प्रक्रियाओं का पालन भी किया जाता है, जैसे भाषा के लिए शास्त्रीय दर्जा की मांग करने वाली राज्य सरकार या संगठन द्वारा आवेदन, भाषा की जांच और मूल्यांकन के लिए विशेषज्ञ समिति का गठन, समिति द्वारा भाषा की ऐतिहासिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक महत्ता का मूल्यांकन, समिति द्वारा अपनी रपट और सिफारिशें प्रस्तुत करना, और अंत में सरकार द्वारा शास्त्रीय दर्जा की घोषणा।
भारत में शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने वाली संस्थाएँ हैं: साहित्य अकादमी, भारतीय भाषा संस्थान, राष्ट्रीय भाषा विकास परिषद, मानव संसाधन विकास मंत्रालय (अब शिक्षा मंत्रालय), और संस्कृति मंत्रालय। भारत सरकार द्वारा शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त भाषाओं में संस्कृत, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, ओडिया, मराठी, बंगाली, असमिया, गुजराती, पाली आदि शामिल हैं। इन भाषाओं को उनकी ऐतिहासिक प्राचीनता, साहित्यिक और सांस्कृतिक महत्ता, स्वतंत्र प्रकृति और व्याकरण, उपयोग और प्रसार, और शिक्षा और अनुसंधान में महत्ता के आधार पर शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया है। शास्त्रीय भाषाओं का दर्जा देने के कई कारण हैं। ये भाषाएं भारत की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं और हमारी पहचान को दर्शाती हैं। ये प्राचीन काल से ही अस्तित्व में हैं और हमारे इतिहास को समझने में मदद करती हैं। इनमें अमूल्य साहित्य है, जो हमारी सांस्कृतिक और साहित्यिक विरासत को दर्शाता है। ये शिक्षा और अनुसंधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
भारत में शास्त्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने 2020 में संस्कृत भाषा के लिए तीन केंद्रीय विश्वविद्यालय स्थापित किए थे। इसके अलावा, प्राचीन तमिल ग्रंथों के अनुवाद, शोध और विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए पाठ्यक्रम प्रदान करने के लिए केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान की स्थापना की गई थी। शास्त्रीय भाषाओं के अध्ययन और संरक्षण के लिए मैसूर में केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान के तहत शास्त्रीय कन्नड़, तेलुगु, मलयालम और ओडिया में अध्ययन के लिए उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किए गए थे। ये केंद्र शास्त्रीय भाषाओं के विकास और संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। कुछ प्रमुख संस्थान हैं, जैसे केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, और केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान। शास्त्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा मंत्रालय ने शास्त्रीय भाषाओं के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार, विश्वविद्यालयों में पीठ, और शास्त्रीय भाषा के प्रचार के लिए केंद्र स्थापित किए हैं। इन पहलों से शास्त्रीय भाषाओं के संरक्षण, अध्ययन और शोध को बढ़ावा मिलेगा और भारतीय संस्कृति की समृद्धि को बनाए रखने में मदद मिलेगी।
विश्व की सबसे प्राचीनतम भाषा के बारे में विद्वानों में मतभेद है, लेकिन आम तौर पर संस्कृत, मिस्री, चीनी, तमिल और सुमेरियन भाषाएं प्राचीनतम मानी जाती हैं। संस्कृत भाषा को विशेष रूप से प्राचीन माना जाता है, क्योंकि यह हिंदू धर्म के प्राचीन ग्रंथों जैसे वेदों और उपनिषदों में प्रयुक्त हुई थी। तमिल भाषा को भी बहुत प्राचीन माना जाता है, जिसका इतिहास लगभग 2000 ईसा पूर्व से है। मिस्री भाषा का इतिहास लगभग 3200 ईसा पूर्व से है, जो प्राचीन मिस्र की भाषा थी। चीनी भाषा का इतिहास लगभग 1200 ईसा पूर्व से है, और सुमेरियन भाषा का इतिहास लगभग 4500 ईसा पूर्व से है। संस्कृत और तमिल को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने से कई लाभ हैं।
इन दोनों भाषाओं को शास्त्रीय दर्जा देने से भारत की सांस्कृतिक धरोहर को बढ़ावा मिलेगा, शिक्षा में वृद्धि होगी, साहित्यिक महत्ता बढ़ेगी, और भाषाई विविधता को बढ़ावा मिलेगा। शास्त्रीय भाषा के मानदंडों के अनुसार, भाषा का 1500 से 2000 पुराना रिकॉर्ड होना चाहिए और भाषा का प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का संग्रह होना चाहिए। शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त होने के बाद प्राचीन साहित्यिक धरोहर जैसे ग्रंथों, कविताओं, नाटकों आदि का डिजिटलीकरण और संरक्षण किया जाता है।
तेलुगु भाषा में भी कई प्राचीनतम ग्रंथ हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं: रामायणमु, महाभारतमु, भागवतमु, कुमारसंभवमु, वसुचरित्रमु, ययाति चरित्रमु, आंद्र महाभारतमु, मार्कण्डेय पुराणमु, हरिवंशमु, बासव पुराणमु आदि। मराठी, पाली, प्राकृत और असमिया भाषाओं में भी कई प्राचीनतम ग्रंथ हैं, जैसे ज्ञानेश्वरी, अमृतानुभव, भावार्थ रामायण, भक्तविजय, पन्हाला, त्रिपिटक, धम्मपद, सुत्तपिटक, विनयपिटक, महानिदेस, हालारामायण, सेतुबंध, गौडवध, काव्यसमुच्चय, हरिविजय, काथ गुरु चरित, प्रद्योत चरित, भट्टदेव कृति, संकरदेव कृति, माधवदेव कृति आदि। इन ग्रंथों में मराठी, पाली, प्राकृत और असमिया साहित्य की समृद्धि और विविधता को देखा जा सकता है।
भारतीय ज्ञान परंपरा और शास्त्रीय भाषाएं आपस में गहराई से जुड़ी हुई हैं। भारतीय ज्ञान परंपरा में शास्त्रीय भाषाएं ज्ञान की वाहक रही हैं और इन्होंने भारतीय संस्कृति और सभ्यता को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारतीय ज्ञान परंपरा की कुछ विशेषताएं हैं: वेदों और उपनिषदों जैसे प्राचीन ग्रंथों पर आधारित, दर्शन, अध्यात्म, विज्ञान, गणित, चिकित्सा आदि विभिन्न क्षेत्रों में ज्ञान की विस्तृत श्रृंखला, ज्ञान के संरक्षण और प्रसार के लिए शिक्षा और गुरु-शिष्य परंपरा, और ज्ञान की व्यापकता और गहराई के लिए शास्त्रीय भाषाओं का उपयोग।
शास्त्रीय भाषाएं जैसे कि संस्कृत, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, उड़िया, मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया, और बंगाली ने भारतीय ज्ञान परंपरा को आकार देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इन 11 शास्त्रीय भाषाओं के ग्रंथों में भारतीय ज्ञान परंपरा की विविधता और गहराई को देखा जा सकता है। 2023 से 2047 तक का समय भारत का अमृत काल का समय है, जब भारतीय मेधा विश्व क्षितिज पर तिरंगा फहरा रही है। ऐसे समय में इन शास्त्रीय भाषाओं के ग्रंथों में छुपा गूढ़ वैज्ञानिक रहस्य निश्चित रूप से विश्व कल्याण में विज्ञान और तकनीक प्रौद्योगिकी में नवाचार के माध्यम से योगदान देगा।