मसाले बीज, फल, छाल, राइज़ोम और पौधों के अन्य भागों से प्राप्त सुगंधित खाद्य उत्पाद होते हैं। उनका उपयोग भोजन के संरक्षण और दवाओं, रंगों एवं इत्र के रूप में किया जाता है। मसालों को हज़ारों वर्षों से व्यापार की वस्तुओं के रूप में अत्यधिक महत्त्व दिया गया है। विशेष रूप से महामारी की अवधि के दौरान मसालों को स्वास्थ्य पूरक के रूप में मान्यता देने के कारण मसालों की मांग में ज़बरदस्त वृद्धि हुई है। इसे हल्दी, अदरक, जीरा, मिर्च आदि जैसे मसालों के बढ़ते निर्यात से स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
भारत में मसालों के उपयोग का पता प्राचीन काल से लगाया जा सकता है, जिसके प्रमाण सिंधु घाटी सभ्यता से मिलते हैं। इन प्रारंभिक सभ्यताओं में भी मसालों का उपयोग पाक और औषधीय प्रयोजनों के लिए किया जाता था। सिल्क रोड सहित प्राचीन व्यापार मार्गों पर भारत की रणनीतिक स्थिति ने अन्य सभ्यताओं के साथ मसालों के आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान की। भारत की आर्थिक समृद्धि में योगदान देने वाले काली मिर्च, इलायची और दालचीनी जैसे मसालों की अत्यधिक मांग थी।
मसाले सदियों से पारंपरिक भारतीय चिकित्सा, आयुर्वेद का अभिन्न अंग रहे हैं। माना जाता है कि कई मसालों में औषधीय गुण होते हैं और उनका उपयोग विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता था। भारत मसालों का विश्व में सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और निर्यातक देश है। बदलती जलवायु के कारण उष्णकटिबंधीय से उपोष्णकटिबंधीय, उपोष्णकटिबंधीय से समशीतोष्ण तक लगभग सभी जलवायु के मसालों का भारत में उत्पादन किया जाता है। वास्तव में भारत के लगभग सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में किसी-न-किसी मसाले का उत्पादन किया जाता है।
संसदीय अधिनियम के तहत कुल 52 मसालों को मसाला बोर्ड के दायरे में लाया गया है। मसाला बोर्ड (वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय) भारतीय मसालों के विकास और विश्वव्यापी प्रचार हेतु प्रमुख संगठन है। यह मसाला बोर्ड अधिनियम, 1986 द्वारा स्थापित किया गया था। भारत में कुछ राज्य ऐसे हैं जो उन मसालों का उत्पादन करते हैं जिनका राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों बाज़ारों में बहुत अधिक मूल्य है। सबसे अच्छा उदाहरण ‘कश्मीरी केसर’ है जो दुनिया का सबसे अच्छा केसर है। कश्मीरी केसर को भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग का दर्जा मिला है। यह सुखद आश्चर्य है कि भारत अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (आईएसओ) द्वारा सूचीबद्ध 109 मसाला की किस्मों में से लगभग 75 का उत्पादन करता है। सबसे अधिक उत्पादित और निर्यात किए जाने वाले मसाले काली मिर्च, इलायची, मिर्च, अदरक, हल्दी, धनिया, जीरा, अजवाइन, सौंफ, मेथी, लहसुन, जायफल और जावित्री करी पाउडर, मसाला तेल और ओलियोरेसिन हैं। इन मसालों में से मिर्च, जीरा, हल्दी, अदरक और धनिया कुल उत्पादन का लगभग 76 फीसद हिस्सा बनाते हैं।
भारत में सबसे बड़े मसाला उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, महाराष्ट्र, असम, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल हैं। आज, भारत अपनी विविध जलवायु और भूगोल के कारण विभिन्न प्रकार के मसालों के उत्पादन के लिए जाना जाता है। काली मिर्च, इलायची, दालचीनी, लौंग, हल्दी, जीरा और धनिया जैसे मसालों की खेती देश के विभिन्न क्षेत्रों में की जाती है।
भारतीय मसालों ने न केवल देश की पाक परंपराओं को आकार दिया है बल्कि वैश्विक व्यंजनों पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव छोड़ा है। भारतीय मसालों का उपयोग अंतरराष्ट्रीय खाना पकाने में व्यापक है, जो पाक प्रथाओं के वैश्वीकरण में योगदान देता है। फेडरेशन ऑफ इंडियन स्पाइस स्टेकहोल्डर्स (एफआईएस) दो निजी कंपनियों (एम डी एच और एवरेस्ट) को निशाना बनाकर भारतीय मसालों की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के प्रयासों के खिलाफ सामने आया है। फेडरेशन के अध्यक्ष ने कहा कि हम उपभोक्ताओं और सभी संबंधित पक्षों को आश्वस्त करना चाहते हैं कि एथिलीन ऑक्साइड यानी ईटीओ कोई कीटनाशक नहीं है। एथिलीन ऑक्साइड एक कीटाणुनाशक एजेंट है जिसका उपयोग खाद्य उत्पादों में सूक्ष्म जीव (माइक्रोबियल तत्वों), मसालों और साल्मोनेला, ई. कोलाई आदि जैसे घातक रोगजनकों को शामिल करने या कम करने के लिए किया जाता है।
वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, प्रति वर्ष 3.67 अरब अमेरिकी डॉलर के निर्यात के साथ वर्ष 2023/2024 में भारत का मसाला निर्यात 4.25 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया जो वैश्विक मसाला निर्यात का 12 फीसद है। भारतीय मसाले विश्व स्तर पर चर्चा का एक गर्म विषय बन गए हैं, जिनकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उच्च प्रतिष्ठा और लोकप्रियता है। भारतीय मसाले अपनी बेहतर गुणवत्ता, सुगंध, स्वाद और औषधीय महत्व के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में ऊंचे दाम पर बिकते हैं। लेकिन एथिलीन ऑक्साइड (ईटीओ) और मसालों और मसाला उत्पादों पर इसके उपयोग के संबंध में अब कई रपटें हैं। एथिलीन ऑक्साइड के अत्यधिक उपयोग के आरोपों पर विशेषज्ञों द्वारा तर्कपूर्ण जवाब प्रस्तुत किए गए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार, मसाला बोर्ड, मसाला संघों और नियामक निकायों को इस मुद्दे पर गलतफहमियों को दूर करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए और यह सुनिश्चित करने के लिए सभी प्रयास करने चाहिए कि भारतीय मसालों का निर्यात और प्रतिष्ठा प्रभावित न हो।
उनका कहना है कि एथिलीन ऑक्साइड का इस्तेमाल पिछले 45 सालों से मसालों को स्टरलाइज़ (निर्जर्मीकरण) करने के लिए किया जा रहा है। भारतीय निर्यातकों ने उन देशों के मानदंडों का सख्ती से पालन किया है। कुछ लोग और तथाकथित देश गलत जानकारी के साथ ऐसे मुद्दे फैलाकर एफएसएसआई और सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है। यह मुद्दा इतना चर्चा में है कि इससे घरेलू बाजार में भी हमारे अपने मसालों के उत्पादन को लेकर डर पैदा हो गया है। विशेषज्ञ कहते हैं, ईटीओ का उपयोग गर्मी के प्रति संवेदनशील मेडिकल डिस्पोजल जैसे सीरिंज, कैथेटर आदि को स्टरलाइज़ (निर्जर्मीकरण) करने के लिए भी किया जाता है। विश्व स्तर पर उपयोग किए जाने वाले लगभग 50 फीसद डिस्पोजेबल चिकित्सा उपकरणों को एथीलीन ऑक्साइड द्वारा निष्फल किया जाता है। इसे सबसे संवेदनशील रोगियों के मामले में भी उपयोग के लिए अनुमोदित किया गया है।
एथीलीन ऑक्साइड एक रंगहीन गैस है, जिसका उपयोग कई रोजमर्रा के उत्पादों के निर्माण में किया जाता है। यह गैस इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए बैटरी बनाने, प्राकृतिक गैस और उसके डेरिवेटिव (व्युत्पन्न) को परिष्कृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसका उपयोग तेल और गैस कुओं के खनन (ड्रिलिंग) में भी किया जाता है। भाप और विकिरण द्वारा नसबंदी प्रक्रिया की तुलना में, एथीलीन ऑक्साइड (ईटीओ) द्वारा नसबंदी प्रक्रिया को संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, सिंगापुर और कई अन्य देशों में अनुमोदित किया गया है क्योंकि यह उत्पादन के लिए सुरक्षित है और रोगजनकों और जीवाणु संदूषण से मुक्त है। मसालों में एथिलीन ऑक्साइड की मात्रा भिन्न भिन्न देशों में अलग अलग है। भारत सरकार के वित्त सचिव के अनुसार अमेरिकन स्पाइस ट्रेड एसोसिएशन (एएसटीए) ने ईटीओ पर प्रकाशित अपने श्वेत पत्र में कहा है कि अधिकांश मसाले विकासशील देशों में उगाए जाते हैं जहां स्वच्छता और खाद्य प्रबंधन प्रथाएं अमेरिका में अपेक्षित स्तर पर नहीं हैं। कच्चे मसालों में साल्मोनेला और ई. कोली सहित रोगजनक हो सकते हैं, जो गंभीर बीमारी का कारण बन सकते हैं। एथिलीन ऑक्साइड (ईटीओ) इन तत्वों को हटाने के साथ-साथ बैक्टीरिया भार, यीस्ट और मोल्ड, कोलीफॉर्म और अन्य रोगजनकों को कम करने में अत्यधिक प्रभावी है, और इसका उपयोग मसालों को स्टरलाइज़ करने के लिए भी पहचाना जाता है।
एथिलीन ऑक्साइड का मुद्दा भारतीय मसालों पर प्रतिबंध की वजह है। एथिलीन ऑक्साइड एक रसायन है जिसका उपयोग मसालों में कीटाणुरोधी पदार्थ के रूप में किया जाता है, परंतु एक निश्चित सीमा से अधिक उपयोग करने पर इसे कैंसरकारी माना जाता है। हालाँकि एथिलीन ऑक्साइड संदूषण को रोकने के प्रयास किये जा रहे हैं, जबकि प्रमुख बाज़ारों में भारतीय मसाला निर्यात के तहत मसाला सैंपल विफलता दर 1 फीसद से कम है। अभी तक अंतरराष्ट्रीय खाद्य मानक वर्ष 1963 के बाद से नई चुनौतियों का समाधान करने के लिए कोडेक्स प्रणाली खुले तौर पर और समावेशी रूप में विकसित हुई है। कोडेक्स मानक निष्पक्ष अंतरराष्ट्रीय जोखिम मूल्यांकन निकायों अथवा खाद और कृषि संगठन तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तदर्थ परामर्श के माध्यम से प्रदान किए गए विश्वसनीय वैज्ञानिक जानकारी पर आधारित है। कोडेक्स ने कोई सीमा निर्धारित नहीं की है तथा कोई मानकीकृत एथिलीन ऑक्साइड परीक्षण प्रोटोकॉल भी उपलब्ध नहीं है।
भारत ने एथिलीन ऑक्साइड के उपयोग की सीमा निर्धारित करने की आवश्यकता का प्रश्न कोडेक्स समिति के समक्ष उठाया है क्योंकि विभिन्न देशों की एथिलीन ऑक्साइड उपयोग सीमाएँ अलग-अलग हैं। स्पाइसेज बोर्ड ऑफ इंडिया भी इन जोखिमों से वाकिफ है। यही वजह है कि उसने देश से निर्यात होने वाले उत्पादों की टेस्टिंग (परीक्षणों) को अनिवार्य कर दिया है। मसाला उत्पादों में एथिलीन ऑक्साइड के सही इस्तेमाल के लिए दिशा निर्देश भी जारी किए गए हैं। स्पाइस बोर्ड इस बात पर भी विचार कर रहा कि एथिलीन ऑक्साइड का बेहतर विकल्प क्या हो सकता है।
हालांकि, स्पाइस बोर्ड के सामने मसला यह है कि हजारों करोड़ की मसाला इंडस्ट्री की गुणवत्ता मापने के लिए देश में सिर्फ 9 लैब (प्रयोगशाला) हैं। अगर अमेरिका के रद्द किए गए आयातित खाद्य पदार्थों में भारत की हिस्सेदारी करीब 23 फीसदी है, तो इसकी एक बड़ी वजह लैब (प्रयोगशाला) की किल्लत भी है। अगर भारतीय मसालों के निर्यात पर इसी तरह रोक लगती रही, तो भारत की ‘मसाला किंग’ वाली छवि को झटका लगेगा। इससे जाहिर तौर पर आयात (एक्सपोर्ट) में मसालों की हिस्सेदारी घटेगी और इससे देश की कमाई और रोजगार पर चोट पहुंच सकती है।
भारत दुनिया में मसालों का सबसे बड़ा निर्यातक है। देश के कृषि निर्यात में मसालों की हिस्सेदारी लगभग 10 फीसद है। स्पाइसेज बोर्ड ऑफ इंडिया के आंकड़ों के मुताबिक, 2005 से 2021 के बीच मसालों के निर्यात में 30 फीसद की वृद्धि हुई है। मसालों के वैश्विक कारोबार में भारत का हिस्सा 12 फीसद से बढ़कर 43 फीसद से अधिक हो चुका है। भारत से 2023 में जिन मसालों का सबसे अधिक हुआ निर्यात हुआ उनमें मिर्च 32.9 फीसद, अन्य मसाले 24.6 फीसद, जीरा 13.2 फीसद, मसाला तेल 12.9 फीसद, पुदीना उत्पाद 11.3 फीसद, हल्दी 5.3 फीसद शामिल हैं।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा मसाला उत्पादक और निर्यातक है। अंतरराष्ट्रीय मानकीकरण संगठन ने मसालों की 109 किस्मों को सूचीबद्ध कर रखा है जिसमें से लगभग 75 का उत्पादन भारत में होता है। पिछले साल भारत ने करीब 35 हजार करोड़ रुपये के मसालों का निर्यात किया। लेकिन हाल के दिनों में भारत के मसालों की गुणवत्ता पर सवाल उठ रहे हैं। पिछले कुछ दिनों में भारतीय मसालों की साख को बड़ा धक्का लगा है। खासकर, सिंगापुर और हांगकांग में भारत की दो प्रतिष्ठित मसाला कंपनियों महाशय डी हट्टी (एम डी एच) और एवरेस्ट के कुछ उत्पादों पर कथित तौर पर प्रतिबंध लगने के बाद। अब अमेरिका समेत कम से कम पांच देश भारतीय मसालों की जांच कर रहे हैं।
सबसे पहले सिंगापुर और हांगकांग ने एम डी एच और एवरेस्ट के कुछ उत्पादों में एथिलीन ऑक्साइड मिलने का दावा किया। दोनों देशों ने कुछ भारतीय मसालों को प्रतिबंधित कर दिया। इसके बाद अमेरिका समेत कुछ और देशों ने भारतीय मसालों की जांच शुरु कर दी। अमेरिका ने 4,968 उत्पादों में साल्मोनेला की मात्रा पाई है। उसने 2002 से 2019 के बीच जितने भी आयातित खाद्य उत्पादों को रद्द किया है, उसमें भारत की हिस्सेदारी 22.9 फीसद है। उसने कुल 5,115 उत्पादों को नियमों के उल्लंघन के चलते लेने से मना किया है।
एम डी एच और एवरेस्ट ने प्रतिबंध के बाद सफाई दी। उन्होंने दावा किया कि उनके किसी भी उत्पाद में कोई भी हानिकारक तत्व नहीं है। दोनों कंपनियों ने कहा कि उनके उत्पाद सरकार से सभी जरूरी मंजूरी मिलने के बाद ही निर्यात किए जाते हैं। भारत के वाणिज्य मंत्रालय ने एम डी एच और एवरेस्ट के मसाला प्रतिबंध मामले में सिंगापुर और हांगकांग के खाद्य नियंत्रक (फूड रेगुलेटर) से विस्तृत रपट मांगी। मंत्रालय ने दोनों देशों स्थित भारतीय दूतावास को भी प्रतिबंध को गंभीरता से लेने का निर्देश दिया। साथ ही, उनसे विस्तृत रिपोर्ट भी मांगी। भारत में खाद्य पदार्थों में एथिलीन ऑक्साइड के इस्तेमाल पर वैसे ही प्रतिबंध है। सरकार ने प्रतिबंध के बाद फूड कमिश्नर्स (खाद्य आयुक्त) को आदेश दिया कि एम डी एच और एवरेस्ट समेत सभी मसाला कंपनियों के उत्पादों का नमूना (सैंपल) इकट्ठा किया जाए और उनकी जांच हो।
स्पाइसेज बोर्ड ऑफ इंडिया ने हांगकांग और सिंगापुर की चिंताओं को गंभीरता से लिया। बोर्ड ने इन दोनों देशों को निर्यात किए जाने वाले सभी मसालों में एथिलीन ऑक्साइड की जांच को अनिवार्य कर दिया है। यह नियम 6 मई से निर्यात होने वाले उत्पादों पर लागू हो गया है। साल्मोनेला दरअसल बैक्टीरिया का ग्रुप (जीवाणुओं का एक समूह) है। यह मनुष्यों की आंतों पर हमला करता है। साल्मोनेला बैक्टीरिया मुख्य रूप से अंडा, बीफ (गाय के मांस) और मुर्गों के कच्चे या अधपके मांस में मिलता है। लेकिन, कई बार यह जीवाणु फल-सब्जियों और मनुष्यों के आंतों को भी अपना ठिकाना बना लेता है। ये बैक्टीरिया सांप, कछुए और छिपकली से भी फैलता है।
यहां यह चर्चा करना उचित होगा कि अगर कोई साल्मोनेला बैक्टीरिया वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करता है और उन्हें ठीक से नहीं पकाया गया है, तो उसके पाचन तंत्र पर काफी बुरा असर पड़ सकता है। यह टाइफाइड जैसी गंभीर बीमारी की वजह भी बन सकता है, जिसे मियादी बुखार भी कहते हैं। इसमें बीमार व्यक्ति के पाचन तंत्र और ब्लड स्ट्रीम (रक्त परिसंचरण तंत्र) में साल्मोनेला बैक्टीरिया घुस जाते हैं। इससे डायरिया भी हो सकता है।
अमेरिका के सीमा शुल्क अधिकारियों ने पिछले छह महीनों में महाशियान दी हट्टी (एम डी एच) प्राइवेट लिमिटेड के सभी मसाला शिपमेंट में से 31 फीसद को रिजेक्ट (अस्वीकृत) कर दिया। इन सभी में साल्मोनेला मिले होने का आरोप था। अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफ डी ए) का दावा है कि भारत के कम से कम 30 मसाला उत्पाद साल्मोनेला की वजह से अस्वीकार किए गए। वहीं, 11 उत्पादों को गलत ब्रांडिंग, छेड़छाड़, आर्टिफिशियल कलर (कृत्रिम रंग) या गलत लेबलिंग के चलते अमेरिका ने लेने से मना कर दिया था।
तकरीबन दस देश भारतीय मसालों के बड़े आयातक रहे हैं। चीन ने 6,391.64 करोड़ रुपये, अमेरिका ने 4,467.39 करोड़ रुपये, बांग्लादेश ने 2,076.64 करोड़ रुपये, यूएई ने 1,945.98 करोड़ रुपये तथा थाईलैंड ने 1,498.08 करोड़ रुपये वहीं मलेशिया ने 1,205.60 करोड़ रुपये, इंडोनेशिया ने 1,199.12 करोड़ रुपये, ब्रिटेन ने 932.65 करोड़ रुपये, श्रीलंका ने 868.50 करोड़ रुपये, सऊदी अरब ने 747.89 करोड़ रुपये के भारतीय मसालों के आयात किए थे।
बहरहाल मसाला बोर्ड ने एथिलीन ऑक्साइड संदूषण को रोकने तथा सभी बाज़ारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए निर्यातकों को दिशा-निर्देश जारी किए हैं। यह मसालों के लिए एथिलीन ऑक्साइड कीटाणुरोधी एजेंट पदार्थ के रूप में उपयोग न करने की सलाह देता है तथा भाप कीटाणुरोधन एवं विकिरण जैसे विकल्पों का सुझाव देता है। वैसे विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों को भारतीय मसाले पूरा करते रहे हैं। दिक्कत अलग-अलग मानक होने से भी कुछ देशों में आ जाती है। वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय के ही मुताबिक भारत से निर्यात होने वाले सिर्फ 0.2 फीसद मसालों में तकनीकी कारणों से कुछ कमी पाई जाती है। उसे आधार बनाकर कुछ देश भारतीय मसाले की खेप को खारिज कर देते हैं। यह सामान्य प्रक्रिया है। भारतने भी आयात होने वाले 0.73 फीसद खाद्य पदार्थों को पिछले वित्त वर्ष 2023-24 में खारिज कर दिया था।
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भारत सरकार के मुताबिक, गुणवत्ता मामले में भारतीय मसाले विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानकों को पूरा करते हैं, पर खाद्य पदार्थों में इस्तेमाल होने वाले एथिलीन ऑक्साइड (ईटीओ) की मात्रा को लेकर अलग-अलग देशों में अलग-अलग मानक हैं। इस आधार पर कुछ देश भारतीय मसालों को खारिज करते हैं। डब्ल्यूएचओ की तरफ से इसे लेकर कोई मात्रा निर्धारित नहीं है। बैक्टीरिया से बचाव के लिए खाद्य पदार्थों में ईटीओ का इस्तेमाल किया जाता है। और नवीन शोधों से एथिलीन ऑक्साइड से कैंसर का खतरा बताया गया है।
विश्व की इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर ने एथिलीन ऑक्साइड को ‘समूह 1 कार्सिनोजेन’ (कैंसर पैदा करने वाला हानिकारक रसायन) के रूप में वर्गीकृत किया है। सिंगापुर में प्रति किलोग्राम 50 मिलीग्राम (एमजी) तक ईटीओ के इस्तेमाल की इजाजत है। वहीं, कनाडा व अमेरिका में ईटीओ की मात्रा 7 एमजी, यूरोपीय संघ में 0.02 से 0.1 एमजी और जापान में 0.01 एमजी है। हांगकांग में ईटीओ के इस्तेमाल पर पूरी तरह से प्रतिबंध है। इसी आधार पर हांगकांग ने भारतीय मसाले की कुछ खेप को खारिज किया। उसके बाद सिंगापुर में भारतीय मसाले की कुछ खेप में कमी पाई गई। इसे देख कुछ अन्य देशों ने भी भारतीय मसाले की जांच करने की बात कही।
भारत सरकार के मसाला बोर्ड को एमडीएच मसाले में जांच उपरांत कोई कमी नहीं मिली। ज्ञात हो कि हांगकांग व सिंगापुर में एमडीएच और एवरेस्ट ब्रांड के मसालों पर सवाल खड़े किए गए थे। मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक वहां भेजे गए इन दोनों ब्रांड के मसाले की जांच की गई। जांच में एमडीएच मसाले में कोई कमी नहीं मिली। एवरेस्ट में कुछ कमी पाई गई। उनके खिलाफ मसाला बोर्ड कार्रवाई भी करने जा रहा है।
निर्यात होने वाले मसालों को लेकर सरकार ने कई दिशानिर्देश भी जारी किए हैं। भारत सरकार ने निर्यात होने वाले मसालों में ईटीओ को रोकने के लिए दिशानिर्देश जारी किया है। सरकार ने सिंगापुर और हांगकांग को निर्यात किए जाने वाले मसालों की जांच अनिवार्य कर दी है। सिंगापुर और हांगकांग के लिए ईटीओ के लिए अनिवार्य प्री-शिपमेंट सैंपलिंग और परीक्षण शुरू कर दिया गया है। कड़े दिशानिर्देश सभी निर्यातकों पर लागू होंगे। ये दिशानिर्देश आपूर्ति के सभी चरणों जैसे सोर्सिंग, पैकेजिंग, परिवहन, परीक्षण के लिए हैं। मसाला बोर्ड द्वारा निर्यातकों से समय-समय पर नमूने भी लिए जा रहे हैं, जिसके आधार पर सुधारात्मक उपाय लागू किए जाते हैं।
कहा तो ये जाता है कि हांगकांग व सिंगापुर प्रकरण से भारतीय मसाले के निर्यात पर कोई फर्क नहीं पड़ा है। और आंकड़े भी इस पक्ष में हैं क्योंकि इस वर्ष अप्रैल में मसाले के निर्यात में गत वर्ष के मुकाबले 12.27 फीसद तो वित्त वर्ष 2023-24 में मसाले के निर्यात में 12.30 फीसद की वृद्धि रही। वहीं, मसाला निर्यातकों का कहना है कि कोरोना काल के दौरान भारतीय मसालों के निर्यात में तेज वृद्धि हुई। निर्यातकों का मानना है कि वैश्विक बाजार में कारोबारी प्रतिस्पर्धा की वजह से भी भारतीय मसाले पर सवाल उठाए जा रहे हैं। ऐसे में कहीं भारतीय मसाले की प्रतिष्ठा धूमल करने की वैश्विक कोशिशें तो नहीं की जा रही हैं यह प्रश्न विचारणीय है। वैसे अमेरिका, सिंगापुर, हांगकांग ही नहीं न्यूज़ीलैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे अन्य देशों ने भी कुछ भारतीय मसालों की गुणवत्ता के विषय में चिंता जताई है तथा ये देश आगे की कार्रवाई की आवश्यकता का निर्धारण कर रहे हैं। ऐसे में भारतीय मसाला बोर्ड और निर्यातकों को सचेत रहकर पूरी ईमानदारी ने मसालों की गुणवत्ता बनाए रखना चाहिए और मसालों को यथा संभव रसायन मुक्त रखना चाहिए।