शिक्षक: भारतीय ज्ञान परंपरा का संवाहक

गणतंत्र दिवस
प्रो. रवीन्द्र नाथ तिवारी 
( शिक्षाविद् )

समाज में शिक्षक का स्थान अनादिकाल से ही पूजनीय रहा है। शिक्षक ही शिक्षा का प्रमुख आधार होता है। वह विद्यार्थी के व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास कर उसे समाज में सम्मानजनक स्थान पर स्थापित करने के लिए अनवरत प्रयास करता है। शिक्षक राष्ट्र के समग्र विकास के साथ-साथ नागरिकों को सही दिशा और मार्गदर्शन देने तथा उन्हें गढ़ने का कार्य भी करता है। वह विद्यार्थियों को उनकी क्षमतानुसार सही दिशा देने के साथ-साथ कल्याणकर्ता भी होता है और उनकी कमजोरियों को दूर करते हुए उन्हें शिखर तक पहुँचाता है, जहाँ वे पूर्णता प्राप्त कर सकें। जब विद्यार्थी पूर्णता प्राप्त कर लेते हैं, तो वे जीवन पथ पर आने वाली समस्याओं का आसानी से सामना करने में सक्षम हो जाते हैं। शिक्षक किसी भी देश या राष्ट्र के भविष्य का निर्माता होता है।

भारत में प्रत्येक वर्ष देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। डॉ. राधाकृष्णन की भारतीय सनातन संस्कृति के मूल तत्व ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’, ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ और ‘लोक कल्याण’ में गहरी आस्था थी। वह समूचे विश्व को एक विद्यालय मानते थे। उन्होंने ब्रिटेन के एडिनबरा विश्वविद्यालय में अपने एक भाषण में कहा था, “मानवता को एक होना चाहिए। मानव इतिहास का सम्पूर्ण लक्ष्य, मानव जाति की मुक्ति तभी संभव है, जब देशों की नीतियों का आधार पूरे विश्व में शांति की स्थापना का प्रयास हो।”

महर्षि अरविन्द ने शिक्षक के बारे में कहा था कि “शिक्षक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं; वे संस्कारों की जड़ों में खाद डालते हैं और अपने श्रम से उन्हें शक्ति में परिवर्तित करते हैं। राष्ट्र के वास्तविक निर्माता उस देश के शिक्षक ही होते हैं।” स्वामी विवेकानंद के अनुसार, “किसी भी राष्ट्र का विकास वहां की शिक्षा के अनुपात में होता है। जो शिक्षा जीवन संघर्ष के अनुरूप चरित्रवान, दयालु और साहसी नहीं बना सके, वह शिक्षा नहीं हो सकती। शिक्षा चरित्र, मन और कर्म को मजबूत बनाती है और व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाती है।” प्रत्येक बालक में जन्मजात कुछ मूल प्रवृत्तियाँ होती हैं, जिन्हें शिक्षक परिमार्जित और परिष्कृत कर सही दिशा में ले जाने के लिए आवश्यकतानुसार नियंत्रित करता है। शिक्षक बालक को समाज और राष्ट्र की सेवा के लिए प्रेरित करता है। वह विद्यार्थियों को इस योग्य बनाता है कि शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे परिवार, समाज और देश के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन भली-भाँति कर सकें।

शिक्षक विद्यार्थी का आदर्श होता है और वह अपनी शिक्षा के द्वारा विद्यार्थियों में आदर्श गुणों का विकास कर आदर्श नागरिक बनने की दिशा में सतत प्रयास करता है। वह बालक के चरित्र निर्माण और उनमें नैतिक मूल्यों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शिक्षक द्वारा दी गई शिक्षा ही शिक्षार्थी के सर्वांगीण विकास का मूल आधार होती है। शिक्षकों द्वारा प्रारंभ से ही पाठ्यक्रम के साथ-साथ जीवन मूल्यों की शिक्षा भी दी जाती है। शिक्षा हमें ज्ञान, विनम्रता, व्यवहारकुशलता और योग्यता प्रदान करती है। देश की संस्कृति और गौरवशाली इतिहास के सही संवाहक शिक्षक ही होते हैं। आचार्य चाणक्य ने कहा है, “शिक्षक कभी साधारण नहीं होता, प्रलय और निर्माण उसकी गोद में पलते हैं।” वह जिस प्रकार से अपने विचारों को विद्यार्थियों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं, विद्यार्थी तदनुसार चिंतन और उसका क्रियान्वयन करते हैं।

प्रत्येक नागरिक राष्ट्र निर्माण में सहायक होता है, और एक शिक्षक अपने पुरुषार्थ से विद्यार्थियों के अन्तर्मन में राष्ट्रप्रेम की भावना को पिरोकर उन्हें श्रेष्ठ नागरिक बनाता है। शिक्षक समाज के विभिन्न सांस्कृतिक, सामाजिक और नैतिक मूल्यों का संरक्षक होता है। उनका कार्य केवल ज्ञान देना ही नहीं, बल्कि उन सांस्कृतिक और सामाजिक धरोहरों को विद्यार्थियों तक पहुँचाना भी है, जो समाज की पहचान होती हैं। शिक्षक, इन सांस्कृतिक तत्वों को विद्यार्थियों में पिरोकर समाज की स्थिरता और विकास में योगदान देता है। वह विद्यार्थियों के मानसिक और भावनात्मक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, उन्हें आत्म-सम्मान, आत्म-विश्वास और भावनात्मक संतुलन प्रदान करता है। शिक्षक ही वह कड़ी है, जो शिक्षा को सजीव बनाता है, विद्यार्थियों में ज्ञान की भूख जगाता है और उन्हें अपने लक्ष्यों की ओर प्रेरित करता है। वह केवल पाठ्यक्रम की शिक्षा ही नहीं, बल्कि जीवन मूल्यों की भी शिक्षा देता है, जो विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास का आधार है। भारत में शिक्षा के लिए सात प्रमुख तत्वों—सही इतिहास दृष्टि, स्वतंत्रता का सही इतिहास, भारतीय परंपराओं का ज्ञान, भारतीय मूल्य, समान शिक्षा, संस्कृत शिक्षा का प्रसार, और स्वदेशी भाव—के माध्यम से समाज जागरण का कार्य भी शिक्षक ही करता है।

आधुनिक समाज में विभिन्न क्षेत्रों में जो अवमूल्यन परिलक्षित हो रहा है, इसके लिए औपनिवेशिक मानसिकता तथा पूर्व शिक्षा प्रणाली प्रमुख रूप से जिम्मेदार है। मशीनी युग और उपभोक्तावादी जीवन में अध्यात्म, संस्कारों, और शिक्षक के प्रति सम्मान में कमी, मूल्यों का क्षरण, बच्चों में बढ़ता तनाव और अवसाद, तथा हिंसा की प्रवृत्ति जैसे मुद्दे चिंता का विषय हैं। इन समस्याओं के समाधान में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। व्यक्ति निर्माण में आलय, विद्यालय, और देवालय के माध्यम से माता-पिता, शिक्षक और संत क्रमशः प्रमुख भूमिका निभाते हैं। शिक्षा के माध्यम से संस्कारों का प्रसारण ही राष्ट्र निर्माण का आधार है, और इस प्रसारण का सबसे प्रभावी साधन शिक्षक है। शिक्षा को मुक्तकरी, युक्तकरी, अर्थकरी, और युगानुकूल बनाने में शिक्षक की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो सकती है।

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