नई दिल्ली/श्रीनगर: दिनांक: 24 अप्रैल 2025
जन्नत पर ज़ख्म और राष्ट्र का आक्रोश
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में मंगलवार, 22 अप्रैल को बैसरन घाटी की शांत वादियों में निर्दोष पर्यटकों पर हुआ बर्बर आतंकी हमला (Terrorist Attack) केवल एक कायराना हरकत नहीं, बल्कि भारत की आत्मा, उसकी संप्रभुता और उसके नागरिकों की सुरक्षा पर सीधा प्रहार है। इस नृशंस हमले ने, जिसमें कम से कम 28 बेगुनाह जिंदगियां (विभिन्न राज्यों के भारतीय पर्यटक, विदेशी नागरिक, नौसेना और आईबी अधिकारी तथा स्थानीय निवासी) छीन ली गईं और दर्जनों घायल हो गए, पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। 2019 के पुलवामा हमले के बाद घाटी में हुए इस सबसे घातक हमले ने राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security) को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा की हैं और सरकार पर निर्णायक कार्रवाई के लिए भारी दबाव बनाया है। पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के प्रॉक्सी ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) द्वारा जिम्मेदारी लेने के बाद, भारत सरकार ने न केवल आतंकियों और उनके स्थानीय मददगारों, बल्कि सीमा पार बैठे उनके आकाओं के खिलाफ भी एक अभूतपूर्व और बहु-आयामी जवाबी कार्रवाई शुरू कर दी है।
शीर्ष नेतृत्व का संकल्प: त्वरित एक्शन, दृढ़ संदेश
हमले की खबर मिलते ही भारत सरकार का शीर्ष नेतृत्व हरकत में आ गया।
- प्रधानमंत्री मोदी का कड़ा रुख: घटना के समय सऊदी अरब की महत्वपूर्ण राजकीय यात्रा पर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न केवल सोशल मीडिया पर हमले की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि “इस जघन्य कृत्य के पीछे जो लोग हैं, उन्हें बख्शा नहीं जाएगा,” बल्कि उन्होंने अपनी यात्रा को भी असाधारण रूप से बीच में ही छोटा कर दिया। वे निर्धारित समय से पहले बुधवार सुबह भारत लौट आए और आते ही कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) की आपात बैठक की अध्यक्षता की। इस बैठक में कश्मीर सुरक्षा स्थिति (Kashmir Security Situation) की गहन समीक्षा की गई और पाकिस्तान के खिलाफ कड़े कदम उठाने सहित भविष्य की रणनीति पर महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए। प्रधानमंत्री का यह कदम दर्शाता है कि सरकार के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है और आतंकवाद के खिलाफ भारत (India Against Terrorism) का संकल्प पहले से कहीं अधिक दृढ़ है।
- गृह मंत्री शाह का मोर्चा: प्रधानमंत्री के निर्देश पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली में आपात बैठक के बाद तत्काल श्रीनगर का रुख किया। मंगलवार देर रात श्रीनगर पहुँचकर उन्होंने उपराज्यपाल मनोज सिन्हा, मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला (यदि लागू हो), सेना, सीआरपीएफ, जम्मू-कश्मीर पुलिस और खुफिया एजेंसियों के शीर्ष कमांडरों के साथ घंटों तक सुरक्षा समीक्षा बैठक (Security Review Meeting) की। इस बैठक में खुफिया तंत्र की समीक्षा, सुरक्षा में संभावित चूक, चल रहे तलाशी अभियान (Search Operation) को तेज करने और आतंकियों के सफाए के लिए खुली छूट देने जैसे अहम निर्देश दिए गए। गृह मंत्री ने स्पष्ट किया कि सरकार की आतंकवाद विरोधी अभियान (Counter-Terrorism Operations) को लेकर जीरो टॉलरेंस नीति (Zero Tolerance Policy) है और इसे पूरी सख्ती से लागू किया जाएगा। उन्होंने व्यक्तिगत रूप से अस्पताल जाकर कुछ घायलों से मुलाकात की और पीड़ितों के परिवारों को हर संभव मदद का आश्वासन दिया।
सुरक्षा बलों का ज़मीनी एक्शन: घेराबंदी, तलाशी और खुफिया तंत्र
हमले के तुरंत बाद से ही भारतीय सेना, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) और जम्मू-कश्मीर पुलिस की संयुक्त टीमों ने बैसरन घाटी, पहलगाम के जंगलों और दक्षिण कश्मीर के विस्तृत इलाके में बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान (Search Operation) छेड़ रखा है।
- चुनौतीपूर्ण ऑपरेशन: बैसरन का दुर्गम पहाड़ी इलाका, घने जंगल और खराब मौसम (यदि हो) ऑपरेशन में चुनौतियां पेश कर रहे हैं। यह इलाका केवल पैदल या घोड़ों से ही गम्य है, जिससे भारी उपकरणों और अतिरिक्त बलों की आवाजाही धीमी हो जाती है।
- तकनीकी सहायता: सुरक्षा बल आतंकियों का पता लगाने के लिए न केवल मानव खुफिया तंत्र पर निर्भर हैं, बल्कि ड्रोन, थर्मल इमेजर और अन्य आधुनिक निगरानी उपकरणों का भी व्यापक उपयोग कर रहे हैं। संदिग्ध ठिकानों की घेराबंदी की जा रही है और हर आने-जाने वाले रास्ते पर कड़ी नाकेबंदी है।
- खुफिया इनपुट: स्थानीय स्तर पर खुफिया जानकारी जुटाने पर विशेष जोर दिया जा रहा है ताकि आतंकियों को पनाह देने वाले ओवरग्राउंड वर्कर्स (OGWs) और उनके मददगारों की पहचान की जा सके। घटनास्थल से बरामद बिना नंबर प्लेट वाली बाइक और अन्य सुरागों के आधार पर जांच आगे बढ़ाई जा रही है। पूरे अनंतनाग जिले (Anantnag District) सहित दक्षिण कश्मीर में हाई अलर्ट है और सुरक्षा व्यवस्था अत्यंत कड़ी कर दी गई है।
पाकिस्तान के खिलाफ भारत के 5 बड़े और कड़े फैसले
पहलगाम हमले में पाकिस्तान स्थित आतंकी गुटों की संलिप्तता के स्पष्ट प्रमाण मिलने और TRF द्वारा जिम्मेदारी लिए जाने के बाद, भारत सरकार ने केवल कश्मीर घाटी में आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई तक ही सीमित न रहते हुए, पाकिस्तान के खिलाफ अभूतपूर्व रूप से कड़े राजनयिक और रणनीतिक कदम उठाने का फैसला किया है। CCS की बैठक के बाद सरकार ने निम्नलिखित पांच बड़े निर्णयों की घोषणा की, जो सीमा पार आतंकवाद (Cross-border Terrorism) को लेकर भारत के बदलते और आक्रामक रुख को दर्शाते हैं:
- दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायोग बंद: भारत सरकार ने नई दिल्ली स्थित पाकिस्तान उच्चायोग को तत्काल प्रभाव से बंद करने का आदेश दिया है। सभी पाकिस्तानी राजनयिकों और कर्मचारियों को अगले 48 घंटों के भीतर भारत छोड़ने को कहा गया है। यह एक अत्यंत कठोर राजनयिक कदम है, जो दर्शाता है कि भारत अब पाकिस्तान के साथ सामान्य राजनयिक संबंध बनाए रखने को तैयार नहीं है, जब तक कि वह अपनी धरती से संचालित आतंकवाद पर लगाम नहीं लगाता।
- प्रभाव: इस कदम से दोनों देशों के बीच औपचारिक राजनयिक संचार लगभग समाप्त हो जाएगा। वीज़ा और कांसुलर सेवाओं पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। यह अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को भी एक कड़ा संदेश भेजेगा कि भारत, पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद के निरंतर समर्थन को अब बर्दाश्त नहीं करेगा। अतीत में भी तनाव के समय राजनयिकों को निष्कासित किया गया है, लेकिन उच्चायोग को पूरी तरह बंद करना एक असाधारण कदम है।
- पाकिस्तानी नागरिकों को भारत छोड़ने का आदेश: सरकार ने भारत में मौजूद सभी पाकिस्तानी नागरिकों (राजनयिकों के अलावा) को अगले 48 घंटों के भीतर देश छोड़ने का आदेश जारी किया है। इसमें छात्र, व्यवसायी, रिश्तेदार और अन्य श्रेणियों के नागरिक शामिल हो सकते हैं।
- प्रभाव: यह एक अत्यंत संवेदनशील और मानवीय दृष्टिकोण से जटिल कदम है। इससे उन आम पाकिस्तानी नागरिकों को भारी असुविधा होगी जिनका आतंकवाद से कोई लेना-देना नहीं है। हालांकि, सरकार का तर्क है कि मौजूदा सुरक्षा स्थिति और पाकिस्तान के शत्रुतापूर्ण रवैये को देखते हुए यह कदम राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security) के हित में आवश्यक है। इसके क्रियान्वयन में कई लॉजिस्टिक और मानवीय चुनौतियां आ सकती हैं।
- सिंधु जल समझौता निलंबित: संभवतः सबसे दूरगामी और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, भारत सरकार ने 1960 की सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty – IWT) के क्रियान्वयन को तत्काल प्रभाव से निलंबित (Suspend) करने का निर्णय लिया है। यह संधि भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी प्रणाली की छह नदियों के पानी के बंटवारे को नियंत्रित करती है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि संधि को रद्द (Cancel) नहीं किया गया है, बल्कि उसके संचालन को निलंबित किया गया है।
- सिंधु जल संधि का विवरण:
- पृष्ठभूमि: 1947 में विभाजन के बाद सिंधु नदी प्रणाली का बेसिन भारत और पाकिस्तान के बीच बंट गया। नदियों के उद्गम भारत में थे, जबकि उनका अधिकांश प्रवाह और कृषि निर्भरता पाकिस्तान में थी। इसे लेकर विवाद उत्पन्न हुआ। विश्व बैंक की मध्यस्थता में नौ साल की बातचीत के बाद 19 सितंबर, 1960 को कराची में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान ने इस संधि पर हस्ताक्षर किए।
- मुख्य प्रावधान: संधि के तहत, सिंधु नदी प्रणाली की छह नदियों को दो भागों में बांटा गया:
- पूर्वी नदियाँ: सतलुज, ब्यास और रावी। इन नदियों का औसत वार्षिक प्रवाह लगभग 33 मिलियन एकड़-फीट (MAF) है। संधि के तहत इन नदियों के पानी पर भारत का पूर्ण अधिकार है।
- पश्चिमी नदियाँ: सिंधु, झेलम और चिनाब। इन नदियों का औसत वार्षिक प्रवाह लगभग 135 MAF है। संधि के तहत इन नदियों का पानी पाकिस्तान को आवंटित किया गया है, लेकिन भारत को इन पर रन-ऑफ-द-रिवर परियोजनाओं (जिनमें पानी का भंडारण सीमित हो) के माध्यम से जलविद्युत उत्पादन, सिंचाई (सीमित) और घरेलू उपयोग का अधिकार है।
- स्थायी सिंधु आयोग (PIC): संधि के क्रियान्वयन, डेटा आदान-प्रदान और विवाद समाधान के लिए दोनों देशों के आयुक्तों का एक स्थायी आयोग स्थापित किया गया। इसकी बैठकें नियमित रूप से होती थीं।
- विवाद समाधान तंत्र: संधि में मतभेदों और विवादों के समाधान के लिए तीन-चरणीय तंत्र (स्थायी आयोग, तटस्थ विशेषज्ञ, मध्यस्थता न्यायालय) का प्रावधान है।
- संधि निलंबित करने के निहितार्थ:
- कानूनी स्थिति: संधि को निलंबित करने का अर्थ है कि भारत फिलहाल इसके प्रावधानों का पालन करने के लिए बाध्य महसूस नहीं कर रहा है, खासकर डेटा साझा करने, PIC की बैठकें आयोजित करने या विवाद समाधान तंत्र में भाग लेने के संदर्भ में। हालांकि, संधि कानूनी रूप से समाप्त नहीं हुई है। इसे एकतरफा रद्द करना कानूनी रूप से अत्यंत जटिल होता, जबकि निलंबन एक कम स्थायी लेकिन गंभीर कदम है।
- पानी के प्रवाह पर तत्काल प्रभाव?: भारत सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह तुरंत पाकिस्तान की ओर बहने वाली पश्चिमी नदियों का पानी नहीं रोकेगी। ऐसा करना तकनीकी रूप से भी चुनौतीपूर्ण है और इसके लिए बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे की आवश्यकता होगी। हालांकि, निलंबन का निर्णय भविष्य में भारत को पश्चिमी नदियों पर अपनी परियोजनाओं (जैसे जलविद्युत, भंडारण) को बिना पाकिस्तानी आपत्ति के आगे बढ़ाने के लिए अधिक स्वतंत्रता दे सकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया: निलंबन का कदम भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चिंता पैदा कर सकता है, खासकर विश्व बैंक (जो संधि का गारंटर है) और अन्य देशों के बीच। पाकिस्तान इसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठा सकता है, लेकिन निलंबन को रद्द करने की तुलना में कम आक्रामक कदम माना जा सकता है।
- दबाव की रणनीति: यह कदम पाकिस्तान पर आतंकवाद को रोकने के लिए दबाव बनाने की एक बड़ी रणनीति का हिस्सा है। भारत यह संकेत दे रहा है कि यदि पाकिस्तान अपनी नीतियां नहीं बदलता है, तो भारत भविष्य में और भी कड़े कदम उठा सकता है, जिसमें संधि से पूरी तरह बाहर निकलना भी शामिल हो सकता है (हालांकि इसकी जटिलताएं बहुत अधिक हैं)।
- PIC और सहयोग पर प्रभाव: निलंबन से स्थायी सिंधु आयोग (PIC) की कार्यप्रणाली और दोनों देशों के बीच तकनीकी स्तर पर होने वाला सहयोग तत्काल रूप से बाधित हो जाएगा।
- सरकार का तर्क: भारत सरकार का तर्क है कि जब सीमा पार से लगातार आतंकवाद को बढ़ावा दिया जा रहा हो, निर्दोष नागरिकों की हत्या की जा रही हो, तो ऐसे माहौल में संधि के तहत सहयोग और विश्वास बनाए रखना संभव नहीं है। सरकार का मानना है कि पाकिस्तान संधि की भावना का उल्लंघन कर रहा है, इसलिए भारत को भी इसके क्रियान्वयन को निलंबित करने का अधिकार है। यह कदम पाकिस्तान को एक कड़ा संदेश देने के लिए उठाया गया है कि “आतंकवाद और पानी एक साथ नहीं बह सकते।” उरी (2016) और पुलवामा (2019) हमलों के बाद भी संधि की समीक्षा और पानी को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की बात उठी थी, लेकिन क्रियान्वयन को निलंबित करने का यह निर्णय पहली बार लिया गया है।
- सिंधु जल संधि का विवरण:
- वाघा-अटारी बॉर्डर बंद: भारत ने पंजाब में स्थित वाघा-अटारी अंतर्राष्ट्रीय सीमा को व्यापार और पारगमन सहित सभी प्रकार की आवाजाही के लिए अनिश्चित काल के लिए बंद कर दिया है। समझौता एक्सप्रेस और दिल्ली-लाहौर बस सेवा (यदि चालू हो) को भी निलंबित कर दिया गया है।
- प्रभाव: इससे दोनों देशों के बीच बचा-खुचा जमीनी संपर्क और व्यापार पूरी तरह ठप हो जाएगा। इसका असर सीमावर्ती क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था और उन लोगों पर पड़ेगा जिनकी आजीविका व्यापार और पारगमन पर निर्भर है। यह दोनों देशों के बीच तनाव में भारी वृद्धि का प्रतीक है।
- पाकिस्तानियों का वीजा बंद: भारत सरकार ने अगले आदेश तक सभी श्रेणियों में पाकिस्तानी नागरिकों के लिए भारतीय वीजा जारी करने पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। इसमें पर्यटन, चिकित्सा, शिक्षा, व्यापार और पारिवारिक यात्रा शामिल है।
- प्रभाव: इस कदम से दोनों देशों के बीच लोगों का संपर्क लगभग शून्य हो जाएगा। यह उन हजारों लोगों को प्रभावित करेगा जो चिकित्सा उपचार, शिक्षा या अपने रिश्तेदारों से मिलने के लिए भारत आना चाहते हैं। यह कदम पाकिस्तान पर चौतरफा दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा है।
ये पांचों कदम मिलकर पाकिस्तान के खिलाफ एक अत्यंत कठोर और अभूतपूर्व प्रतिक्रिया का निर्माण करते हैं, जो दर्शाता है कि भारत सरकार की कार्रवाई (Indian Government Action) अब केवल निंदा या सीमित सैन्य अभियानों तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि वह पाकिस्तान को उसकी धरती से पनप रहे आतंकवाद की भारी कीमत चुकाने पर मजबूर करने के लिए कड़े राजनयिक और रणनीतिक विकल्पों का उपयोग करने से भी नहीं हिचकेगी।
NIA जांच: साजिश की तह तक पहुंचने का प्रयास
इस हमले की जटिलता, इसके पीछे संगठित नेटवर्क और सीमा पार आतंकवाद (Cross-border Terrorism) के स्पष्ट लिंक को देखते हुए, गृह मंत्रालय ने औपचारिक रूप से जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंप दी है।
- NIA का अनुभव: एनआईए को विशेष रूप से आतंकी मामलों की जांच के लिए गठित किया गया है और उसके पास पुलवामा हमले सहित कई बड़े आतंकी मामलों की जांच का अनुभव है।
- जांच के पहलू: एनआईए की जांच में निम्नलिखित पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा:
- हमलावरों की सटीक पहचान और उनकी राष्ट्रीयता।
- स्थानीय समर्थन नेटवर्क (OGWs) की पहचान और उनकी भूमिका।
- हथियारों और धन का स्रोत।
- हमले की योजना बनाने और उसे अंजाम देने में TRF और LeT नेतृत्व की भूमिका।
- पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI या सेना के साथ संभावित संबंध।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: एनआईए जांच के दौरान सबूत जुटाने के लिए अन्य देशों, विशेष रूप से अमेरिका और खाड़ी देशों से भी सहयोग मांग सकती है। एनआईए जांच (NIA Investigation) का उद्देश्य न केवल हमलावरों और उनके स्थानीय मददगारों को कानून के दायरे में लाना है, बल्कि पाकिस्तान में बैठे मास्टरमाइंडों को भी बेनकाब करना है।
कूटनीतिक मोर्चा: पाकिस्तान को अलग-थलग करने की रणनीति
सैन्य और राजनयिक कार्रवाइयों के साथ-साथ, भारत सरकार ने पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने के लिए भी कूटनीतिक प्रयास तेज कर दिए हैं।
- सबूत साझा करना: भारत विभिन्न देशों और अंतर्राष्ट्रीय मंचों के साथ पहलगाम हमले में पाकिस्तान की संलिप्तता के सबूत साझा कर रहा है।
- वैश्विक निंदा का लाभ उठाना: अमेरिका, रूस, फ्रांस, यूएई, इज़राइल आदि देशों द्वारा की गई कड़ी निंदा का उपयोग पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए किया जा रहा है।
- FATF और अन्य मंच: भारत फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) जैसे मंचों पर पाकिस्तान को आतंकी फंडिंग रोकने में विफल रहने के लिए जवाबदेह ठहराने का प्रयास जारी रखेगा।
- द्विपक्षीय वार्ता: भारत प्रमुख वैश्विक शक्तियों के साथ द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से पाकिस्तान पर आतंकवाद के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने के लिए दबाव बनाने का आग्रह कर रहा है।
पीड़ितों के प्रति संवेदना और सहायता
इस पूरी कार्रवाई के बीच, सरकार ने पीड़ितों और उनके शोक संतप्त परिवारों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की है और उन्हें हर संभव सहायता का आश्वासन दिया है।
- चिकित्सा देखभाल: घायलों को श्रीनगर के सैन्य और नागरिक अस्पतालों में सर्वोत्तम संभव चिकित्सा देखभाल प्रदान की जा रही है। गंभीर रूप से घायलों को एयरलिफ्ट कर दिल्ली या अन्य प्रमुख शहरों में भी भेजा जा सकता है।
- मुआवजा और सहायता: केंद्र सरकार और संबंधित राज्य सरकारों ने मृतकों के परिवारों के लिए मुआवजे और घायलों के लिए वित्तीय सहायता की घोषणा की है।
- समन्वय और हेल्पलाइन: पीड़ितों की सहायता के लिए जम्मू-कश्मीर प्रशासन, गृह मंत्रालय और विभिन्न राज्य सरकारों के बीच समन्वय स्थापित किया गया है। हेल्पलाइन नंबर (Helpline Numbers) 24×7 सक्रिय हैं।
निष्कर्ष: निर्णायक मोड़ और भविष्य की दिशा
पहलगाम आतंकी हमला भारत के लिए एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है। सरकार द्वारा उठाए गए अभूतपूर्व कदम – विशेष रूप से पाकिस्तानी उच्चायोग को बंद करना और सिंधु जल संधि को निलंबित करना – दर्शाते हैं कि भारत अब आतंकवाद के मुद्दे पर रक्षात्मक रवैया अपनाने को तैयार नहीं है। यह एक नई, अधिक मुखर और आक्रामक नीति की शुरुआत हो सकती है।
हालांकि, इन कड़े कदमों के अपने जोखिम और चुनौतियां भी हैं। सिंधु जल संधि को निलंबित करने के भी दूरगामी परिणाम हो सकते हैं और इससे क्षेत्रीय तनाव बढ़ सकता है। निलंबन को स्थायी रद्दीकरण में बदलने का दबाव बन सकता है, जिसके अपने कानूनी और रणनीतिक निहितार्थ होंगे। राजनयिक संबंध समाप्त होने से संवाद के रास्ते बंद हो जाते हैं। इन सभी पहलुओं पर सावधानीपूर्वक विचार करने और आगे की रणनीति बनाने की आवश्यकता होगी।
आने वाले दिनों और हफ्तों में कश्मीर सुरक्षा स्थिति (Kashmir Security Situation) पर कड़ी नज़र रखनी होगी। सुरक्षा बलों के आतंकवाद विरोधी अभियान (Counter-Terrorism Operations) और तेज होंगे। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि इन ऑपरेशनों के दौरान मानवाधिकारों का उल्लंघन न हो और स्थानीय आबादी का विश्वास बना रहे। साथ ही, पाकिस्तान के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दबाव बनाए रखना और उसे आतंकवाद का समर्थन करने की कीमत चुकाने पर मजबूर करना एक सतत प्रक्रिया होगी।
पहलगाम आतंकी हमला (Pahalgam Terrorist Attack) एक राष्ट्रीय त्रासदी है, लेकिन यह भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security) संकल्प की अग्निपरीक्षा भी है। सरकार की त्वरित और दृढ़ भारत सरकार की कार्रवाई (Indian Government Action) ने एक स्पष्ट संदेश दिया है, लेकिन असली चुनौती इन फैसलों को प्रभावी ढंग से लागू करने और आतंकवाद के इस नासूर को जड़ से मिटाने में है।