(लेखक, प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस शासकीय आदर्श विज्ञान महाविद्यालय रीवा में प्राचार्य हैं)
भारत में हाल के दिनों में बाढ़ से तबाही का मंजर देखने को मिल रहा है। जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों के साथ-साथ गुजरात, राजस्थान जैसे मैदानी राज्यों में भी बारिश के कारण बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई, जिससे जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है। मध्यप्रदेश के कई हिस्सों में भी भारी वर्षा के कारण नदी-नाले उफान पर हैं। मालवा, बुंदेलखंड, बघेलखंड, विंध्य सभी क्षेत्रों में बड़ी और छोटी नदियां उफान पर हैं। इन घटनाओं से बाढ़ का संकट और गंभीर होता जा रहा है। मानसून का असमान वितरण देश के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है। कहीं अत्यधिक वर्षा से बाढ़ का संकट उत्पन्न हुआ है, तो कहीं अत्यल्प वर्षा से सूखे और जल संकट की स्थिति बन रही है। यह स्थिति मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन का परिणाम मानी जा रही है, जिसने मानसून की नियमितता और प्रकृति दोनों को प्रभावित किया है। मानसून पहले की तरह संतुलित और दीर्घकालिक न होकर अल्प समय में अत्यधिक वर्षा की प्रवृत्ति में बदल गया है। पहले ऐसी घटनाएं केवल पहाड़ी और हिमालयी क्षेत्रों में सामान्य मानी जाती थीं, लेकिन अब यह स्थिति मैदानी इलाकों में भी तेजी से देखने को मिल रही है। उत्तर भारत, मध्य भारत और यहां तक कि पश्चिमी मैदानों में भी कुछ ही घंटों की बारिश में शहरों की सड़कें और निचले इलाके जलमग्न हो जाते हैं। इससे न केवल शहरी बाढ़ की घटनाएं बढ़ी हैं, बल्कि कृषि, परिवहन और बुनियादी सेवाएं भी बुरी तरह प्रभावित हो रही हैं। यह बदलाव संकेत देता है कि भारत को अब पारंपरिक मानसूनी समझ के बजाय जलवायु अनुकूल रणनीतियों को अपनाने की आवश्यकता है।
एशियाई विकास बैंक के अनुसार, भारत में जलवायु आपदाओं में बाढ़ सबसे अधिक विनाशकारी साबित होती है। पिछले वर्षों में बाढ़ से भारत को भारी जान-माल की क्षति हुई है। केंद्रीय जल आयोग और डीटीई-सीएसई डेटा सेंटर के अनुसार, वर्ष 1952 से 2018 के बीच हर साल बाढ़ ने देश को प्रभावित किया। इस अवधि में लगभग 1.09 लाख लोगों की मृत्यु हुई, 81 मिलियन से अधिक घरों को नुकसान पहुंचा और 258 मिलियन हेक्टेयर फसल बर्बाद हुई। कुल आर्थिक क्षति लगभग 4.69 ट्रिलियन रुपये आंकी गई है। एसबीआई की रिसर्च ने बताया कि 2023 में उत्तर भारत में बाढ़ से अनुमानित 10,000-15,000 करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान होगा। हाल के वर्षों में भी बिहार, असम, उत्तराखंड, हिमाचल, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्यों में बाढ़ की घटनाओं ने जनजीवन, बुनियादी ढांचे और कृषि को गंभीर रूप से प्रभावित किया है।
बाढ़ तब आती है जब नदी की जलवाहिका में जल प्रवाह उसकी वहन क्षमता से अधिक हो जाता है और पानी आसपास के इलाकों में फैलने लगता है। यह स्थिति झीलों से जल निकासी, हिमनदों के पिघलने, मृदा अपरदन और लगातार भारी वर्षा से और गंभीर हो जाती है। शहरी क्षेत्रों में कंक्रीट का अधाधुंध विस्तार, खराब जल निकासी व्यवस्था, नदियों में गाद व कचरे की सफाई की कमी, और ग्रीनबेल्ट क्षेत्रों में अतिक्रमण जलभराव को बढ़ाते हैं। व्यवस्थित बसाहट का न होना, अवैध कॉलोनियां, अवैज्ञानिक कृषि व जल स्रोतों का अवरोध भी जिम्मेदार हैं। हाल की घटनाएं यह दर्शाती हैं कि हमें सतत शहरी नियोजन, जल निकासी व्यवस्था के सुधार और जलवायु अनुकूल रणनीतियों को अपनाने की आवश्यकता है, ताकि बाढ़ के खतरे को कम किया जा सके।
बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा से होने वाली क्षति को प्रभावी नियंत्रण और प्रबंधन से काफी हद तक कम किया जा सकता है। निवारक उपायों का उद्देश्य स्थायी समाधान प्रदान करना है, जिससे बाढ़ और जलभराव की स्थिति उत्पन्न ही न हो। इसके तहत नदियों, सहायक नदियों एवं नालों पर उपयुक्त स्थानों पर चेक डैम और जलाशयों का निर्माण आवश्यक है। इससे वर्षा जल को जलग्रहण क्षेत्र में ही रोका जा सकता है, जिससे निचले क्षेत्रों में बाढ़ की संभावना घटेगी और भू-क्षरण में भी कमी आएगी। साथ ही, यह उपजाऊ भूमि के कटाव को भी रोकता है और भूजल स्तर पुनर्भरण में सहायक होता है। बाढ़ को आबादी वाले क्षेत्रों से दूर रखने के लिए नदियों के किनारे मजबूत तटबंध बनाए जाने चाहिए। नगर नियोजन इस प्रकार हो कि निचले क्षेत्रों को पार्क, खेल मैदान व हरित पट्टी के लिए सुरक्षित रखा जाए तथा आवासीय व व्यावसायिक निर्माण ऊँचाई वाले क्षेत्रों में हों। जल निकासी की प्रभावी व्यवस्था, नालों की नियमित सफाई, फ्लड गेट्स की स्थापना, वृक्षारोपण, मेड़ों और ट्री शेल्टरबेल्ट जैसी तकनीकों से भी अपवाह को नियंत्रित कर बाढ़ की तीव्रता कम की जा सकती है।
बाढ़ जैसी आपदाओं की तीव्रता और विस्तार को देखते हुए इसके प्रभावी प्रबंधन के लिए भारत सरकार ने बहुस्तरीय ढांचे का विकास किया है। वर्ष 2006 में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का उद्देश्य आपदा से पूर्व तैयारी, आपदा के दौरान त्वरित प्रतिक्रिया तथा दीर्घकालीन रणनीति निर्माण है। आपदा राहत कार्यों के लिए राष्ट्रीय और राज्य आपदा मोचन बल का गठन भी एक महत्वपूर्ण पहल रही है। वर्ष 2016 में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना बनाई गई, जिसका उद्देश्य आपदा जोखिम को न्यूनतम करना है। बाढ़ प्रबंधन के तहत केंद्रीय जल आयोग द्वारा एक व्यापक बाढ़ पूर्वानुमान प्रणाली विकसित की गई है। इसके अंतर्गत वास्तविक समय में निगरानी, पूर्व चेतावनी और क्षति आकलन की क्षमता में पिछले वर्षों में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। निवारक उपाय, नियोजन, तकनीकी नवाचार और जन सहभागिता को एकीकृत किया जाए, तो मानव एवं प्रकृति जनित बाढ़ आपदा को प्रभावी रूप से नियंत्रित किया जा सकता है।