असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक विजयादशमी पर्व

गणतंत्र दिवस
प्रो. रवीन्द्र नाथ तिवारी 
(शिक्षाविद् )

भारत एक भौगोलिक और सांस्कृतिक विविधता वाला देश है, जहां विभिन्न त्यौहार लगभग पूरे वर्ष मनाए जाते हैं। इन त्यौहारों में से दशहरा, जिसे विजयादशमी भी कहा जाता है, प्रमुख है। यह पर्व अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है और सांस्कृतिक एकता को दर्शाता है। दशहरा आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। यह त्यौहार शक्ति की आराधना, विशेष रूप से देवी दुर्गा की पूजा के लिए महत्वपूर्ण है। दशहरा नवरात्रि के नौ दिनों की पूजा के पश्चात आता है, जिसमें शक्ति की उपासना की जाती है।

दशहरे का धार्मिक महत्व मुख्यतः भगवान राम की रावण पर विजय के साथ जुड़ा हुआ है। जब भगवान राम ने रावण का वध किया, तो इस विजय को सत्य और न्याय की महत्ता के रूप में देखा गया, और तभी से दशहरे को विजयादशमी के रूप में मनाया जाने लगा। इस अवसर पर रामलीला का आयोजन किया जाता है, जिसमें भगवान राम की कथा का मंचन होता है। दशहरे के दिन रावण, उसके भाई कुंभकर्ण और पुत्र मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन को बेहद शुभ माना जाता है, और इसे नए कार्यों की शुरुआत के लिए विशेष माना जाता है।

विजयादशमी, भारत की आध्यात्मिक धरोहर और सांस्कृतिक परंपराओं का जीवंत उदाहरण है। विजयादशमी पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसकी सांस्कृतिक और कृषि आधारित विशेषताएं भी इसे अद्वितीय बनाती हैं। भारत, जो एक कृषि प्रधान देश है, इस समय फसल कटाई के मौसम में प्रवेश करता है। किसान अपनी मेहनत के फलस्वरूप घरों में अन्न और धन लाकर अत्यधिक प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। इस भरपूर उपज के लिए कृतज्ञता प्रकट करने और आराध्य देवी-देवताओं के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने के लिए वे दशहरे के अवसर पर विशेष पूजा-अर्चना करते हैं।

भारत के विभिन्न हिस्सों में दशहरा अपने-अपने सांस्कृतिक रंगों में रचा-बसा है। कश्मीर में, नौ दिन की नवरात्रि माता रानी को समर्पित होती है। इस दौरान लोग झील के मध्य स्थित माता क्षीरभवानी मंदिर के दर्शन कर उनकी कृपा के लिए प्रार्थना करते हैं। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू का दशहरा उत्सव बेहद प्रसिद्ध है। कुल्लू में दशहरा सात दिनों तक मनाया जाता है, जहाँ ग्रामीण लोग रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर अपने देवताओं की झांकी निकालते हैं, संगीत बजाते हैं और उत्साहपूर्वक नृत्य करते हुए सांस्कृतिक धरोहर का जश्न मनाते हैं। बंगाल, ओडिशा और असम में दशहरा को दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है।

बंगाल की दुर्गा पूजा को यूनेस्को की सांस्कृतिक विरासत की सूची में शामिल किया गया है। नौ दिनों तक चलने वाले इस उत्सव के पश्चात दशमी के दिन विशेष पूजा होती है, जिसमें महिलाएं देवी दुर्गा के माथे को सिन्दूर से सजाती हैं। इस अनुष्ठान के बाद देवी की मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है, जिसे “विजय यात्रा” के रूप में मनाया जाता है। गुजरात में दशहरा का पर्व गरबा और डांडिया के साथ मनाया जाता है। नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान लोग देवी दुर्गा की पूजा करते हैं, और रात में गरबा और डांडिया रास के जरिए उत्सव मनाते हैं। महाराष्ट्र में भी दशहरा का पर्व विशेष महत्त्व रखता है। यहां नौ दिनों तक देवी दुर्गा की पूजा होती है, और दसवें दिन ज्ञान की देवी सरस्वती की स्तुति की जाती है। इस दिन को नए कार्यों की शुरुआत के लिए शुभ माना जाता है, और लोग अपनी पुस्तकों और उपकरणों की पूजा करते हैं, ताकि वे ज्ञान और समृद्धि प्राप्त कर सकें।

तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में दशहरे का विशेष रूप से लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा की पूजा से संबंध है। पहले दिन धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी की आराधना की जाती है, दूसरे दिन विद्या और कला की देवी सरस्वती का पूजन होता है, और अंतिम दिन शक्ति की देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। कर्नाटक के मैसूर का दशहरा उत्सव विशेष रूप से प्रसिद्ध है, जहां शहर की सड़कों को रंग-बिरंगी रोशनी से सजाया जाता है और हाथियों की सवारी के साथ एक भव्य जुलूस निकाला जाता है।

छत्तीसगढ़ के बस्तर में दशहरे का उत्सव अनोखे ढंग से मनाया जाता है। यह त्यौहार 75 दिनों तक चलता है, जो श्रावण मास की अमावस्या से शुरू होकर आश्विन मास की शुक्ल त्रयोदशी तक चलता है। इस दौरान देवी दंतेश्वरी की पूजा की जाती है और जोगी-बिठाई तथा रैनी (विजयदशमी) जैसे प्रमुख अनुष्ठान होते हैं। इस परंपरा की शुरुआत पंद्रहवीं शताब्दी में हुई थी। उत्सव का समापन मुरिया दरबार और ओहाड़ी उत्सव के साथ होता है, जहां भगवान विष्णु को समर्पित नीले फूलों वाले पौधे की पूजा की जाती है।

विजयादशमी के दिन ही 1925 में विश्व के सबसे बड़े सामाजिक संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना हुई थी, और इस दिन शक्ति के महत्व को याद करते हुए शाखाओं पर प्रतीकात्मक शस्त्र पूजन किया जाता है। नागपुर में संघ के मुख्यालय में सरसंघचालक का वार्षिक उद्बोधन होता है, जिसमें संघ की दिशा और दशा पर चर्चा होती है। इसे ‘बौद्धिक’ कहा जाता है, जहां राष्ट्रहित के कार्यों पर विचार होते हैं।

दशहरा भारत के विभिन्न राज्यों में अपनी अनूठी परंपराओं और रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है, जो देश की सांस्कृतिक समृद्धि और धार्मिक विविधता को दर्शाता है। विजयादशमी के अवसर पर आयुध पूजा या “अस्त्र पूजा” की परंपरा देवी दुर्गा और महिषासुर के युद्ध से जुड़ी है। कथा के अनुसार, महिषासुर को परास्त करने के लिए सभी देवताओं ने अपने हथियार देवी दुर्गा को सौंपे। दस भुजाओं वाली दुर्गा ने नौ दिनों तक युद्ध कर दशमी के दिन महिषासुर का वध किया। युद्ध के बाद, अस्त्र-शस्त्रों की पूजा की गई, उन्हें देवताओं को लौटाया गया, जो वीरता और शक्ति का प्रतीक है। आयुध पूजा न केवल अस्त्रों का सम्मान करती है, बल्कि यह सत्य की विजय और शक्ति की उपासना का भी प्रतीक है। साथ ही भगवान श्रीराम का यही भावनात्मक आदर्श आज भी हमारा पथ प्रदर्शक है।

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