राष्ट्र का 75वां गणतंत्र दिवस

गणतंत्र दिवस
-प्रो. रवीन्द्र नाथ तिवारी ( शिक्षाविद् )

गणतंत्र का 75वां वर्ष विभिन्न पहलुओं में देश की यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। भारत अमृतकाल में विकास की अभूतपूर्व ऊंचाइयों की ओर अग्रसर है। भारत में लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली का इतिहास विश्व में सर्वाधिक प्राचीनतम है, जिसका आरंभ पूर्व वैदिक काल से ही हो गया था।

    भारतवर्ष लोकतंत्र की जननी है। प्राचीनकाल में भारत में सुदृढ़ लोकतांत्रिक व्यवस्था विद्यमान थी। इसके साक्ष्य प्राचीन साहित्य, सिक्कों, अभिलेखों, विदेशी यात्रियों एवं विद्वानों के वर्णन में इस तथ्य के प्रमाण मिलते हैं। वर्तमान संसद की भाँति प्राचीन समय में परिषदें थी जिनकी कार्यप्रणाली वर्तमान संसदीय प्रणाली से मिलती-जुलती थी। गणराज्य या संघ की नीतियों का संचालन इन्हीं परिषदों द्वारा होता था। इसके सदस्यों की संख्या विशाल थी, जिनकी वर्तमान संसदीय सत्र की भाँति ही परिषदों के अधिवेशन नियमित रूप से होते थे। प्राचीन गणतांत्रिक व्यवस्था में आजकल की तरह ही शासक एवं शासन के अन्य पदाधिकारियों के लिए निर्वाचन प्रणाली थी। योग्यता एवं गुणों के आधार पर इनके चुनाव की प्रक्रिया आज के समय से भिन्न थी। ऋग्वेद तथा कौटिल्य साहित्य ने चुनाव पद्धति की पुष्टि की है। 

   ऋग्वेद, अथर्ववेद और पुराणों में अनेकों बार गणतंत्र शब्द का उल्लेख हुआ है। राजा एवं उसके सहयोगियों से बनने वाले समूह को ‘समिति’ नाम से जाना जाता था तथा बैठकों में राजा की उपस्थिति अनिवार्य थी। इसी प्रकार तीन प्रकार की सभाओं का वर्णन मिलता है जिसमें विद्यार्थसभा (शिक्षा संबंधी), धर्मार्य सभा (न्याय संबंधी), राजाय सभा (शासन प्रशासन से संबंधित) के माध्यम से शासन संचालन के प्रमाण मिलते हैं। समिति के समान ही सभा भी शासन संचालन का माध्यम थी। महाभारत के शांति पर्व में जनसदन का उल्लेख है। शांति पर्व में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को गणराज्य का महत्व समझाते हुए कहा “जनता के साथ सीधे जुड़ाव का माध्यम गणतंत्र है।” बौद्ध काल में शाक्य, कोलिओ, लिच्छवि, वज्जी, पिप्पलवन, अलल्पवन सभी प्रजातांत्रिक गणराज्य के उदाहरण हैं।

भारत बहुरंगी विविधता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत में धनी है जो समय के साथ परिवर्तित और परिष्कृत होती आयी है। पिछले 75 वर्षों में भारत ने बहुआयामी सामाजिक और आर्थिक प्रगति की है। भारत कृषि में आत्मनिर्भर बन चुका है तथा वर्तमान में विश्व के सबसे औद्योगीकृत देशों में प्रमुख है। भारतीय अर्थव्यवस्था आज विश्व की 5 वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। विश्व में भारत एकमात्र राष्ट्र है जिसने प्रत्येक वयस्क नागरिक को स्वतंत्रता के पहले दिन से ही मतदान का अधिकार दिया है। 560 छोटी रियासतों का भारत संघ में विलय पश्चात् वर्तमान भारतीय गणराज्य ने स्वरूप लिया। किसी भी एक देश में बोली जाने वाली भाषाओं की सबसे अधिक संख्या भारत में है। लगभग 29 भाषाएं और 1,650 बोलियां भारत के लोग बोलते हैं। आजादी के पश्चात् भारत ने लगभग सभी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। आर्यभट्ट से शुरू हुआ भारतीय अंतरिक्ष अभियान आज चांद और मंगल की ऊंचाइयों तक जा पहुंचा है।

   पिछले साढ़े सात दशकों में, भारत ने कृषि, भारी उद्योग, सिंचाई, ऊर्जा उत्पादन, परमाणु ऊर्जा क्षमता, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, जैव प्रौद्योगिकी, दूरसंचार, समुद्र विज्ञान और विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान में उल्लेखनीय विकास हासिल किया है। आज भारत एक आईटी महाशक्ति, सबसे बड़ा वैज्ञानिक जनशक्ति और सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क है। भारत ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। भारत ने 1998 में पोखरण परमाणु परीक्षण कर अपने को परमाणु सम्पन्न शक्ति राष्ट्र स्थापित किया है। विक्रम साराभाई ने भारत को अंतरिक्ष के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धियां दिलाई। मिसाइलमैन डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ने अग्नि, पृथ्वी, त्रिशूल, नाग जैसी मिसाइलों का निर्माणकर भारत को इस क्षेत्र में विश्व के देशों में अग्रणी स्थान पर स्थापित किया। 

    भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा सड़कों का जाल (स्वर्णिम चतुर्भुज योजना) एवं नदियों को जोड़ने की योजना ने देश के उत्तरोत्तर विकास में नये कीर्तिमान स्थापित किये हैं।  श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा, नारी शक्ति वंदन अधिनियम, राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 का क्रियान्वयन, विकसित भारत अभियान, चंद्रयान 3 और आदित्य एल1 इत्यादि दर्शाते हैं कि भारत अपनी संकल्प शक्ति से वैश्विक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है। भारत में लोकतंत्र की सफलता का रहस्य यह है कि भारत के जनमानस में स्वाभाविक रूप से लोकतंत्र का भाव अविछिन्न रूप से विद्यमान है। भारतीय संस्कृति में मानव मन का जितना गहन अध्ययन हुआ है उतना अन्यत्र नहीं दिखता। भारत की समृद्ध परंपरा से उद्भूत अध्यात्म इसका कारण है।

     ऋवेद का मंत्र “संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्। समानो मन्त्रः समितिः समानी।” अर्थात हम एक दिशा में चलें, एक समान बोलें, सभी के मनोभाव को जानें, हमारी समिति समान हो, सभी का मंत्र (लक्ष्य) एक हो। गणतंत्र दिवस के अवसर पर राष्ट्र के प्रत्येक जनमानस के मन में ‘स्व’ का भाव जागृत होने पर भारत वैश्विक मंच पर आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक और राजनीतिक महाशक्ति के रूप में पूरे विश्व का मार्गदर्शन कर सकेगा।

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