हनुमानगढ़ी के लड्डू को मिला जीआई टैग (Geographical Indication)। विस्तार से जानिए जीआई टैग के बारे में-

भगवान राम के जन्मभूमि अयोध्या के हनुमानगढ़ी के बेसन के लड्डू को जीआई टैग (Geographical Indication Tag) मिला है। यह एक प्रकार का बौद्धिक संपदा अधिकार है, जो किसी विशेष भौगोलिक क्षेत्र से संबंधित उत्पादों की पहचान और संरक्षण के लिए दिया जाता है। हनुमानगढ़ी के लड्डू को जीआई टैग मिलने का ऐलान 8 जनवरी 2024 को किया गया था। इसके लिए काशी के जीआई विशेषज्ञ डॉ. रजनीकांत ने आवेदन किया था। इस लड्डू को जीआई टैग मिलने के बाद इसकी विश्वसनीयता बढ़ जाएगी और इसकी मांग घरेलू और विदेशी बाजारों में बढ़ जाएगी।

जब 22 जनवरी को अयोध्या में रामलाल विराजमान होने वाले है उसके कुछ दिन पहले यह ख़बर अयोध्यावासियों के लिए गर्व की बात है। हनुमानगढ़ी के लड्डू को भगवान राम और हनुमान की कृपा का प्रतीक माना जाता है, और इसे उसकी मिठास के लिए काफी पसंद किया जाता है। इसे स्थानीय लोगों के बीच एक विशेष स्थान मिला है। ये लड्डू बेसन और शुद्ध देसी घी से बनाए जाते हैं, और उनका स्वाद और खुशबू बेहद शानदार होती है।  तिरुपति के लड्डू को भी यह टैग मिला हुआ है।

आपको बता दें की अभी हाल ही में 2 जनवरी 2024 को मयूरभंज जिले के सिमिलिपाल काई चटनी को भौगोलिक पहचान टैग (Geographical Indication) मिला था। यह चटनी लाल बुनकर चींटियों से बनी होती है। मयूरभंज काई सोसाइटी लिमिटेड द्वारा वस्तु के भौगोलिक संकेत (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 के तहत पंजीकरण के लिए 2020 में आवेदन किया गया था।

क्या है जीआई टैग-

जीआई टैग (GI Tag) का फुल फॉर्म “भौगोलिक संकेतक(Geographical Indication) टैग” है। यह ऐसे उत्पादों को दिया जाता है जो किसी विशेष भौगोलिक क्षेत्र से उत्पन्न होते हैं और उनकी गुणवत्ता, प्रतिष्ठा या विशेषताएं उस क्षेत्र के कारण जानी जाती हैं। जीआई टैग उत्पादों की पहचान और संरक्षण के लिए एक बौद्धिक संपदा अधिकार है।

जीआई टैग की शुरुआत विश्व व्यापार संगठन (WTO) ने की थी। WTO के सदस्य देश इस टैग का उपयोग करते हैं। भारत में, संसद ने उत्पाद के पंजीकरण और संरक्षण को लेकर दिसंबर 1999 में अधिनियम पारित किया था, जिसे जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स (रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन) एक्ट, 1999 कहा जाता है। इसे 2003 में लागू किया गया था। दार्जिलिंग चाय जीआई टैग पाने वाला पहला भारतीय उत्पाद था। अब तक 432 से ज़्यादा जीआई टैग दिए जा चुके हैं। यह टैग औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग के द्वारा दिया जाता है जो वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा संचालित किया जाता है। सबसे अधिक जीआई टैग वाले राज्य कर्नाटक, तमिलनाडु , उत्तर प्रदेश , केरल और महाराष्ट्र हैं।

जीआई टैग के लाभ-

  • जीआई टैग से हमारे उत्पाद की पहचान और विश्वसनीयता बढ़ती है, जिससे हमें अच्छा मूल्य मिलता है।
  • जीआई टैग से हमारे उत्पाद की नकली या अनधिकृत बिक्री से बचाव होता है, जिससे हमारा नुकसान नहीं होता है।
  • जीआई टैग से हमारे उत्पाद को देश और विदेश में प्रचार और प्रसार मिलता है, जिससे हमारा व्यापार और टूरिज्म बढ़ता है।
  • जीआई टैग से हमारी परंपरागत ज्ञान, कला और संस्कृति को सम्मान और संरक्षण मिलता है, जिससे हमारी पीढ़ियों को इसका लाभ मिलता है।

जीआई टैग के दो प्रकार होते हैं: भारतीय मूल के और विदेशी मूल के

भारतीय मूल के जीआई टैग वे होते हैं जो भारत के किसी विशेष क्षेत्र या राज्य से उत्पन्न हुए उत्पादों को दिए जाते हैं। उदाहरण के लिए, दार्जिलिंग चाय, मैसूर सुपारी, ओडिशा रसगुल्ला, कंडांगी साड़ी और कश्मीर केसर भारतीय मूल के जीआई टैग वाले उत्पाद हैं।

विदेशी मूल के जीआई टैग वे होते हैं जो भारत में आयातित या उत्पादित हुए उत्पादों को दिए जाते हैं, जो किसी अन्य देश के किसी विशेष क्षेत्र से संबंधित होते हैं। उदाहरण के लिए, स्कॉच व्हिस्की, शैंपेन, नापा वैली वाइन, आदि  विदेशी मूल के जीआई टैग वाले उत्पाद हैं।अभी तक विदेशी जीआई टैग की संख्या 31 है।

जीआई टैग का उत्पादों के आधार पर वर्गीकरण –

जीआई टैग वाले उत्पादों को विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है, जैसे कृषि, खाद्य सामग्री, हस्तशिल्प, निर्माण, निर्मित उत्पाद आदि। उदाहरण के लिए, कुछ प्रसिद्ध जीआई टैग वाले उत्पाद निम्नलिखित हैं:

  • कृषि: कश्मीर केसर, असम काजी नेमु, गिर केसर आम, शाही लीची, दार्जिलिंग चाय, बंगानापल्ले आम, नागपुर संतरा, वायनाड काली मिर्च, नाशिक अंगूर आदि।
  • खाद्य सामग्री: तिरुपति लड्डू, बंदर लड्डू, ओडिशा रसगुल्ला, बनारसी लंगड़ा, श्रीविल्लीपुतुर पालकोवा, फेनी, मक्की की रोटी, गुजराती खाखरा, रोहतक जलेबी आदि।
  • हस्तशिल्प: मधुबनी चित्रकला, बस्तर ढोकरा, चंदेरी साड़ी, बोब्बिली वीणा, उप्पदा जामदानी साड़ी, बंगला पाट, चंपा सिल्क साड़ी, बिदरी वर्क, तंजावुर पेंटिंग आदि।
  • निर्माण: तेलंगाना के तंदूर, डिंडीगुल ताले, नागौरी हरड़, अजरख प्रिंट, बागरु ब्लॉक प्रिंट, ब्लू पॉटरी, चन्नपट्टना खिलौने, नाखुनी चावल, बिहारी खाजा आदि।
  • निर्मित उत्पाद: अल्लाहाबाद सुर्खी, फिरोजाबाद ग्लास, कांचीपुरम सिल्क, कोल्हापुरी चप्पल, नागपुर तारकाशी, बिहारी जरी, बंगलौर रोज़, चेन्नई संगीतम्, गोवा काष्ठ शिल्प आदि।

 

 

 

 

 

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