कृपांक सदैव से उत्तीर्ण होने के लिए दिए गए अंक होते थे लेकिन यदि कृपांक किसी छात्र को सर्वश्रेष्ठ मेधावी बना दें तो कृपांक की एक नई परिभाषा ही गढ़ जाएगी। भारत की दूसरी सबसे कठिन और सबसे प्रतिष्ठित चिकित्सा प्रवेश परीक्षा जिसे नीट (नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट) के नाम से जाना जाता है, इस प्रतिष्ठित प्रवेश परीक्षा में भारत के भविष्य तकरीबन 23 लाख से अधिक तरुण युवा-युवतियां अपने पूर्ण मनोयोग से कुशल चिकित्सक बनने के लिए बैठते हैं। कई साल तैयारी करते हैं और उनके पीछे उनके परिवार के माता-पिता, दादा-दादी, भाई-बहन समर्पित रहते हैं।
इस नीट प्रवेश परीक्षा के आयोजक एनटीए (नेशनल टेस्टिंग एजेंसी) ने इस साल प्रवेश परीक्षा के समय पूर्व घोषित नतीजों से इसकी प्रतिष्ठा को तार-तार कर दिया और लाखों छात्रों की विश्वसनीयता को चकनाचूर कर दिया। इस कठिनतम चिकित्सा प्रवेश परीक्षा नीट के इतिहास में कभी भी चार छात्रों से ज्यादा प्रथम स्थान अर्थात फर्स्ट रैंक नहीं हासिल की। इस बार अति से कहीं ज्यादा एक साथ 67 छात्रों ने पूर्णांक 720 अंक अर्जित कर प्रथम स्थान अर्थात फर्स्ट रैंक हासिल की। पर दुखद यह है कि पूर्णांक प्राप्तांक बन जाने के बावजूद उन छात्रों को मनचाहा चिकित्सा संस्थान एम्स दिल्ली नहीं मिल पाएगा। परिणामों ने एक ओर जहां परीक्षा आयोजन कराने वाली संस्था एनटीए की प्रतिष्ठा धूल-धूसरित की, वहीं आम खास सबको घोर आश्चर्य में डाल दिया कि यह कैसे संभव हो सकता है। ज्ञात हो कि एक ही परीक्षा केंद्र से एक-दो नहीं पूरे-पूरे छह टॉपर जिनको 720 में से 720 अंक प्राप्त हुए हैं, वो भी अनुक्रमांक की एक ही सीरीज 230 से प्रारंभ होती है। सर्वश्रेष्ठ मेधावी छात्र बकौल एनटीए वास्तविक रूप से केवल 17 हैं लेकिन 50 से ज्यादा कृपांक प्राप्त छात्र टॉपर बन गए। कृपांक से टॉपर बनाने वाला एनटीए हंसी और कोप का पात्र बन गया है।
देश की सबसे बड़ी और दूसरी सबसे मुश्किल परीक्षा नीट (एनईईटी यूजी) पर बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा। 5 मई 2024 को नीट की परीक्षा के दिन से ही नीट एग्जाम (चिकित्सा प्रवेश परीक्षा) 2024 पर एक-एक करके बड़े गंभीर आरोप लगते जा रहे हैं। पहले नीट पेपर लीक और अब चिकित्सा प्रवेश परीक्षा परिणाम (नीट रिजल्ट स्कैम) का मामला।आखिरकार एनटीए ने अपनी चुप्पी तोड़ी है और नीट यूजी 2024 के प्रवेश परीक्षा परिणाम के संदर्भ में सिलसिलेवार जवाब प्रस्तुत किए हैं, लेकिन आधे-अधूरे और असंतुष्ट करने वाले। इसे एनटीए की सफाई भी कह सकते हैं। कुल 4 बड़े आरोप हैं और उन सभी पर एनटीए का जवाब आया है।
पहला आरोप: नीट यूजी कट ऑफ 2024 इतना हाई कैसे? जब से मेडिकल एंट्रेंस के लिए नेशनल एंट्रेंस कम एलिजिबिलिटी टेस्ट यानी नीट की शुरुआत हुई है, पहली बार कटऑफ इतनी हाई (ऊंचा) गया है। इसके जवाब में एनटीए ने कहा है कि नीट कट ऑफ कैंडिडेट्स की ओवरऑल परफॉर्मेंस पर निर्भर करती है। कटऑफ बढ़ने का मतलब है कि परीक्षा कंपटीटिव (प्रतिस्पर्धात्मक) थी और बच्चों ने बेहतर परफॉर्म किया। बीते कुछ सालों में नीट पास करने वालों के एवरेज मार्क्स (औसत अंक) पर गौर करें तो सामान्य (जेनरल) के लिए नीट क्वालिफाईंग मार्क्स सत्र 2020 में 297.18 थे। वहीं 2021 में 286.13 अंक थे। 2022 में 259 अंक क्वालीफाइंग थे जबकि 2023 में 279.41 अंक तथा 2024 में सामान्य वर्ग (जनरल कैटेगरी) के लिए 323.55 अंक क्वालीफाइंग हैं।
दूसरा आरोप: 719 और 718 नंबर कैसे मिले? अभी तक के नीट यूजी के परिणामों में कभी भी ऐसे अंक नहीं आए। नीट पूर्णांक 720 अंकों का होता है। हर सवाल 4 अंक का होता है। गलत उत्तर के लिए 1 अंक कटता है (नकारात्मक मूल्यांकन)। अगर किसी स्टूडेंट ने सभी सवाल सही किए तो उसे 720 में से 720 मिलेंगे। अगर एक सवाल का उत्तर नहीं दिया, तो 716 मिलेंगे। अगर एक सवाल गलत हो गया, तो उसे 715 मिलने चाहिए। लेकिन 718 या 719 कैसे मिल सकता है? इसके जवाब में एनटीए द्वारा कहा गया है कि पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ उच्च न्यायालय में कई याचिकाएं लगाई गईं जिनमें बच्चों ने 5 मई की परीक्षा में कुछ सेंटर्स (केंद्रों) पर समय बर्बाद होने की शिकायत की थी। एनटीए ने सीसीटीवी फुटेज चेक करने और जांच करने के बाद पाया कि कैंडिडेट्स (प्रतिभागी छात्रों) की गलती नहीं थी। ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय के 13 जून 2018 के निर्णय के आधार पर उन बच्चों को लॉस ऑफ टाइम (समय बर्बादी) के लिए कंपनसेटरी मार्क्स (कृपांक) दिए गए। 718 और 719 पाने वाले दो कैंडिडेट (प्रतिभागी छात्र) उन्हीं में से हैं। यद्यपि नीट के नियम निर्देशिकाओं में ऐसा कहीं लिखा नहीं है कि कृपांक किसे और कितने अंक दिए जाएंगे, यहीं एनटीए की नियत में खोट दिखता है।
तीसरा आरोप: नीट यूजी टॉपर एक ही एग्जाम सेंटर (परीक्षा केंद्र) से कैसे? नीट टॉपर लिस्ट पीडीएफ में 6 कैंडिडेट का रोल नंबर सीरीज एक ही है। यानी उनका नीट एग्जाम सेंटर एक ही था। इनमें से 4 को टोटल 720, 1 को 719 और एक को 718 अंक मिले हैं। आरोप लगे कि उस सेंटर पर जरूर कुछ गड़बड़ी की गई है। इसके जवाब में एनटीए ने कहा है कि नीट आंसर-की 2024 में फीजिक्स (भौतिकी) के एक सवाल पर 13,373 चैलेंज मिले थे। ये एनसीईआरटी की नई और पुरानी किताब के कारण था। विषय विशेषज्ञों (सब्जेक्ट एक्सपर्ट्स) ने एक की जगह दो ऑपशन सही बताए। टॉप करने वाले 67 में से 44 को रिवाइज्ड आंसर-की और 6 को समय गंवाने के कारण नीट कंपनसेटरी मार्क्स (कृपांक) दिए गए। नीट टॉपर्स पूरे देश से आए हैं। लेकिन बड़ी चालाकी से एनटीए ने यह नहीं बताया कि उसी झज्जर बहादुरगढ़ के परीक्षा केंद्र में ही पेपर देरी से या अनियमितता पूर्वक दिया गया, फिर कृपांक देने का कौन सा नियम लगाया गया है। वैसे तो नीट यूजी 2024 परीक्षा के दिन ही नीट पेपर लीक की खबरें आने लगी थीं जिसमें कुछ हद तक सच्चाइयां भी थीं। बिहार समेत अन्य राज्यों में जांच भी शुरू हो गई, जो अब भी जारी है और भविष्य में जांच के नाम पर गोलमाल होना अवश्यंभावी है।
लेकिन एनटीए ने इन आरोपों को तब खारिज कर दिया था। अब नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ने कहा है कि एनटीए ने गड़बड़ी करने वालों के खिलाफ केस दर्ज किए हैं। कुछ केस राज्यों की पुलिस के पास भी दर्ज हैं। जहां भी जरूरत है, एनटीए इन जांच एजेंसियों को नीट यूजी 2024 केसेस के मामलों में पूरा सहयोग दे रहा है। हालांकि, इन इन्वेस्टिगेशंस (जांच पड़ताल) के नतीजे आने अभी बाकी हैं। एनटीए पेपर लीक का कोई भी मामला नकारता है। जबकि कुछ निजी कोचिंग संस्थान के संचालकों और कुछ चिकित्सकों के गिरोहों ने 50 लाख तक मोटी रकम के बदले नीट यूजी 2024 का हुबहू पेपर अभ्यर्थियों को उपलब्ध कराया था। इसके पुख्ता सबूत जांच एजेंसियों के पास हैं।
एनटीए का गैर जिम्मेदाराना कथन है कि चिकित्सा (मेडिकल) प्रवेश परीक्षा नीट यूजी 2024 का परिणाम पिछले पांच वर्षों में सबसे बेहतर रहा है, जिसका एक बड़ा कारण यह है कि इस बार का पेपर पहले के वर्षों की तुलना में आसान था। नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) का कहना है कि जब पेपर आसान होता है तो ऐवरेज मार्क्स (औसत अंक) भी ज्यादा हो जाते हैं और कटऑफ भी बढ़ जाती है। 2024 के रिजल्ट में ऐसा ही देखने को मिला है। इसके साथ ही इस बार अब तक सबसे ज्यादा 23.33 लाख छात्रों ने नीट यूजी 2024 का एग्जाम (परीक्षा) दिया था। यक्ष प्रश्न यह है कि परीक्षा की गंभीरता और शुचिता विश्वसनीयता की दृष्टि से वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन में ऐसा प्रश्न पत्र ही क्यों बनाया गया जिसमें एक दो नहीं, पूरे 67 छात्रों को प्रथम स्थान (फर्स्ट रैंक) हासिल हुआ। नीट यूजी परीक्षा कितनी बड़ी और कठिन परीक्षा है, इन आंकड़ों से समझिए।
नीट 2024 के अंतिम चरण की परीक्षा केंद्र की रिपोर्ट 2 मई 2024 को उनके नीट 2024 एडमिट कार्ड (प्रवेश पत्र) पर जारी कर दी गई थी। एनटीए ने 24 अप्रैल 2024 को नीट 2024 सिटी सूचना पर्ची जारी की थी। नीट 2024 परीक्षा केंद्र भारत भर के 557 शहरों और भारत के बाहर 14 शहरों में स्थित थे। नीट 2024 सूचना बुलेटिन के अनुसार, परीक्षा किसी भी अंतरराष्ट्रीय शहर में आयोजित नहीं की जानी थी। हालाँकि, एनटीए ने बाद में घोषणा की कि नीट 2024 परीक्षा 5 मई 2024 को 14 अंतरराष्ट्रीय शहरों में भी आयोजित की जाएगी। 2024 में नीट परीक्षा केंद्रों की कुल संख्या लगभग 5,000 थी। भारतीय शहरों की कुल संख्या में 69 की वृद्धि हुई। दूसरी ओर, तीन भारतीय शहरों, मालेगांव, रायरंगपुर और फैजाबाद को नीट परीक्षा शहरों की सूची से हटा दिया गया था।
नीट 2024 के लिए पंजीकरण भाषानुसार उम्मीदवारों की संख्या अंग्रेज़ी में 1476024, गुजराती में 49638, असमिया में 4063, हिंदी में 258827, बंगाली में 42663, कन्नड़ में 1193, पंजाबी में 96, मलयालम में 1510, मराठी में 2368, ओडिया में 822, तमिल में 31965, अंग्रेजी और हिंदी में 1734851, उर्दू में 1910, तेलुगु में 1264, क्षेत्रीय भाषाओं में 137492 छात्रों ने पंजीकरण कराया था। ज्ञात हो कि नीट यूजी परीक्षा 13 भाषाओं में संपन्न होती है।
नीट के लागू होने से पहले अलग-अलग संस्थानों (केंद्र अथवा राज्य सरकारों के अधीन, निजी व अन्य) में अलग-अलग चिकित्सा प्रवेश परीक्षाओं का आयोजन करना पड़ता था। अलग-अलग प्रवेश परीक्षाओं से छात्रों को होने वाली समस्याओं के साथ, सभी परीक्षाओं के पाठ्यक्रम में भिन्नता और प्रवेश परीक्षाओं में गड़बड़ी या भ्रष्टाचार आदि समस्याएँ बनी रहती थीं। पिछले कुछ वर्षों में देश में निजी मेडिकल कॉलेजों और मानद विश्वविद्यालयों (डीम्ड यूनिवर्सिटीज) की संख्या में वृद्धि हुई है। इन संस्थानों ने देश के स्वास्थ्य क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान भी दिया है, परंतु बहुत से ऐसे संस्थानों में प्रवेश परीक्षाओं में भारी अनियमितताओं तथा भ्रष्टाचार के मामले सामने आते रहे थे। देश के अलग-अलग भागों में मेडिकल संस्थानों में प्रवेश के भिन्न मानक का होना मेडिकल क्षेत्र के विकास में एक बड़ी बाधा रही है। प्रवेश परीक्षा और इसके पाठ्यक्रम के अलग होने के साथ अन्य नियमों के संदर्भ में भी मतभेद उत्पन्न होने लगे थे, जिससे संस्थानों की निगरानी प्रक्रिया बहुत ही जटिल हो गई थी।
ऐतिहासिक रूप से भारतीय सामाजिक व्यवस्था में शिक्षा का स्थान सबसे ऊंचा रहा है। देश के विभिन्न क्षेत्रों में स्थापित सभी निजी संस्थान स्वयं को गैर-लाभकारी और जनहित के उद्देश्य से प्रेरित बताकर स्थापित किए गए हैं। परंतु अध्ययनों से पता चलता है कि वर्तमान में इनमें से कई संस्थानों का उद्देश्य मात्र व्यावसायिक ही रह गया है। वर्ष 2010 में भारतीय चिकित्सा परिषद (मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया/एमसीआई) पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद इसमें सुधार करने के लिये एक शासक मंडल (बोर्ड ऑफ गवर्नर्स) की नियुक्ति की गई थी। इस बोर्ड ने देश के सभी मेडिकल संस्थानों में स्नातक और परास्नातक कक्षाओं में दाखिले के लिये नीट की अवधारणा प्रस्तुत की थी।
वर्ष 2013 में एक सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने नीट को ‘राज्य और मेडिकल कॉलेजों के प्रबंधन के अधिकारों में हस्तक्षेप’ के आधार पर इस व्यवस्था को असंवैधानिक बताया था। हालाँकि वर्ष 2016 में एक पुनर्विचार याचिका की सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने नीट को पुनः मान्यता प्रदान कर दी थी। परंतु इसके बाद भी उच्चतम न्यायालय में इस संदर्भ में कई याचिकाएँ लंबित थी, जिनमें नीट की व्यवस्था को चुनौती दी गई थी। अतः नीट के माध्यम से दाखिले की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाकर तथा संस्थानों द्वारा लिये जाने वाले शुल्क को कुछ सीमा तक नियंत्रित कर शिक्षा के व्यवसायीकरण को रोकने में सहायता प्राप्त होगी, ऐसा कल्याणकारी सरकारों का मानना था।
निजी संस्थानों की अनियमितताओं के कारण भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र और मेडिकल शिक्षा पर प्रश्न उठने लगे थे, इसीलिए नीट के माध्यम से पूरे देश में शिक्षा के मानक में सुधार लाने में सहायता प्राप्त करने का जनकल्याणकारी उद्देश्य रहा है। सरकार का मानना था कि नीट के लागू होने से छात्र संस्थान द्वारा दी जा रही शिक्षा की गुणवत्ता और अन्य पहलुओं की जाँच करने के बाद ही उसका चुनाव करेंगे। ऐसे में इस व्यवस्था के लागू होने से संस्थान भी अपनी गुणवत्ता में सुधार लाने को विवश होंगे। नीट के माध्यम से निजी संस्थानों में भ्रष्टाचार के मामलों और छात्रों के दाखिले की प्रक्रिया पर बेहतर निगरानी की जाती रही है।
यद्यपि जबसे पूरे देश में चिकित्सा संस्थानों में प्रवेश एक ही परीक्षा नीट के माध्यम से किया जाने लगा तो बहुत से निजी चिकित्सा संस्थानों और कई राज्य सरकारों ने एक स्वर में इसका विरोध भी किया था। संस्थानों की आपत्ति न्यायालयों में याचिकाओं द्वारा लगाई गई थी। देश के कई शिक्षण संस्थानों द्वारा उच्चतम न्यायालय में दी गई याचिका में यह आरोप लगाया गया था कि नीट की बाध्यता लागू होने से ऐसे संस्थानों को संविधान के अनुच्छेद 29 (1) और 30 के तहत प्राप्त अधिकारों का हनन होता है। क्षेत्रीय भाषाओं से जुड़े संस्थानों ने अंग्रेज़ी और क्षेत्रीय भाषाओं के अनुवाद से जुड़ी समस्याएँ रखी थीं। क्षेत्रीय भाषाओं से जुड़े संस्थानों के अनुसार, नीट शहरों और आर्थिक रूप से मज़बूत परिवारों से आने वाले बच्चों को बढ़त प्रदान करती है तथा कोचिंग संस्थानों पर बच्चों की निर्भरता की मानसिकता को बढ़ावा देती है।
मेडिकल संस्थानों में एमबीबीएस सीटों के लिये एकीकृत काउंसिलिंग की प्रक्रिया लागू करने के बाद अल्पसंख्यक संस्थानों ने इसका विरोध किया था। इसके माध्यम से संस्थानों की स्वायत्तता को बनाए रखते हुए उनके विनियमन की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने में सहायता न मिलने की बातें कही गई थीं। तब भारत के उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में स्पष्ट किया था कि नीट से किसी भी अल्पसंख्यक संस्थान (भाषाई अथवा धार्मिक) के अधिकारों का उल्लंघन नहीं होता है। तथा नीट की व्यवस्था सभी संस्थानों (गैर सहायता प्राप्त/सहायता प्राप्त, अल्पसंख्यक और अन्य सभी) पर अनिवार्य रूप से लागू होगी। उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा था कि नीट जैसी पहलों का लक्ष्य नियमों में पारदर्शिता, मेरिट और शिक्षण संस्थानों की प्रवेश प्रक्रिया में विद्यमान कमियों को दूर कर सामाजिक व्यवस्था में सुधार करना है।
इनमें से अधिकांश याचिकाओं में संविधान के अनुच्छेद 30 (धर्म और भाषा के आधार पर सभी अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के अनुसार शैक्षणिक संस्थानों को स्थापित और प्रबंधन करने का अधिकार), अनुच्छेद 19 (1) (ग) जो लोगों को किसी भी प्रकार का पेशा, उद्यम या व्यापार करने का अधिकार देता है, और अनुच्छेद 14, 25 तथा 26 के आधार पर आपत्ति ज़ाहिर की गई थी। लेकिन माननीय सर्वोच्च न्यायालय के विद्वान न्यायाधीशों ने सभी संकाओं को निर्मूल साबित कर निर्णय देश हित में दिया था और चिकित्सा प्रवेश परीक्षा में एकरूपता लाने के लिए दृढ़ संकल्प से नीट की स्थापना की थी। यह बात अलग है कि इस कठिन परीक्षा को पहले सीबीएसई आयोजित कराता था बाद में एनटीए को नीट यूजी परीक्षा संचालन की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने ‘क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर बनाम भारत संघ’ शीर्षक वाली रिट याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई करते हुए अपने फैसले में कहा था कि सभी संस्थानों में एमबीबीएस (एमबीबीएस), एमडी (एमडी) या डेंटल कोर्स के लिये ‘राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा’ (नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट – नीट) के माध्यम से प्रवेश दिया जाएगा। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि मेडिकल और दंत चिकित्सा पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए नीट की एक समान परीक्षा निर्धारित करने से अनुच्छेद 19 (1) (ग) के साथ 30 संविधान के 25, 26 और 29 (1) के तहत गैर सहायता प्राप्त/सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक संस्थानों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं होता है।
बहरहाल नीट को सर्वोच्च न्यायालय से मान्यता प्राप्त है और अब चिकित्सा प्रवेश परीक्षा नीट के माध्यम से ही संभव होती है। नीट यूजी 2024 परिणामों में 67 परीक्षार्थियों की नंबर एक रैंक ने नीट की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं। अभी-अभी 4 जून को लोकसभा के आम चुनावों के परिणामों के साथ नीट यूजी 2024 का परिणाम आया। ज्ञात हो कि पहले नीट यूजी 2024 का परिणाम 14 जून को घोषित किया जाना था, लेकिन 10 दिन पहले एनटीए ने परिणाम इस लक्ष्यपूर्ति के उद्देश्य से घोषित किया कि चुनावों के परिणाम की गूंज में एनटीए की अनियमितताएं छुप जाएंगी। इस परिणाम के बाद देश में डॉक्टर बनने के इच्छुक नौजवानों को अलग-अलग मैडिकल कालेजों में दाखिले की स्वीकृति मिलती है।
छात्रों के द्वारा सरकारी मैडिकल कालेजों (चिकित्सा महाविद्यालयों) को सबसे अच्छा माना जाता है क्योंकि उसमें फीस और पढ़ाई के खर्चे का दबाव नहीं रहता। इसके बाद देश के निजी मैडिकल कालेजों की सूची बनती है। देश में चिकित्सकों (डाक्टरों) की बहुत जरूरत है। नौजवानों के लिए भी पहली प्राथमिकता डाक्टर बनने की अब भी है। इस बार देशभर से 23.33 लाख छात्रों ने डाक्टर बनने के लिए प्रवेश परीक्षा दी। लेकिन इसमें से 13.16 लाख छात्रों ने काउंसिलिंग के लिए क्वालीफाई किया। इन परिणामों की चौंकाने वाली बात यह है कि इसमें पहले नंबर पर 67 छात्र आए यानी 720 नंबरों में सबने 720 अंक प्राप्त कर लिए। एक और हैरत यह रही कि कुछ छात्रों को 718 और 719 अंक भी मिले। यह कैसे मिले, समझ नहीं आता क्योंकि नीट का पेपर 720 अंकों का होता है। हर सवाल 4 नंबर का होता है और गलत होने पर एक नंबर की नेगेटिव मार्किंग होती है। एक सवाल छोड़ने पर 716 अंक मिलते। एक सवाल गलत हो तो 715, यह 718 या 719 कैसे हो गया?
जिन 67 छात्रों ने 720 अंक ले लिए उनकी योग्यता का मूल्यांकन अब दशमलव से होगा यानी 1 से लेकर 2 के बीच दशमलव पद्धति से छात्र कम कर दिए। हाई स्कोरिंग इम्तिहान (उच्च अंक अर्जित करने की परीक्षा) छात्रों के लिए बड़े दबाव वाला होता है। राजस्थान से 11, तमिलनाडु से 8 और महाराष्ट्र से 7 छात्रों सहित 67 ने 100 प्रतिशत अंक लिए हैं। पूर्णांक प्राप्त करने वाले छात्रों में 14 लड़कियां और 53 लड़के हैं। निश्चय ही देश के सबसे उदीयमान छात्र मैडिकल क्षेत्र में जाना चाहते हैं। अधिक समीचीन होगा कि उनके लिए यथेष्ट कालेजों की व्यवस्था करके इन छात्रों की अत्याधिक दबाव वाली प्रतिस्पर्धा को कम किया जाए।
चौंकाने वाली बात है कि 650 अंक प्राप्त करने वाले छात्रों की संख्या तीन गुना बढ़ गई है। अब 651 अंक प्राप्त करने वाले सामान्य वर्ग के छात्र को भी सरकारी मेडिकल कालेज में दाखिला अनिश्चित है। वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन पद्धति में प्रश्न पत्र के स्वरूप का बड़ा महत्व होता है। यदि एक साथ 67 छात्र पूरे अंक प्राप्त कर लेते हैं, तो परीक्षा पद्धति दूषित कही जाएगी। काउंसलिंग में किसे प्रथम रैंक दी जाएगी? एनटीए की मूल्यांकन और मेरिट लिस्ट की टाई ब्रेकिंग पद्धति अबूझ पहेली है। हजारों की संख्या में न्याय की आस लगाए छात्रों और उनके अभिभावकों, शिक्षकों ने न्यायालय में एनटीए के विरुद्ध याचिकाएं दायर की हैं। अब न्यायालय से ही न्याय की उम्मीद है।
प्रश्न अभी भी अनुत्तरित हैं। ऐसे में क्या नीट यूजी परीक्षा दोबारा आयोजित की जाएगी? क्या 5 मई 2024 को हुई नीट यूजी परीक्षा को रद्द कर दिया जाएगा? क्या एनटीए ने अपने खास लोगों को कृपांक देकर उनके अंक गलत तरीके से बढ़ाए हैं? सवाल लाखों छात्रों के सपनों का है, उनके भविष्य का है। सवाल एनटीए की अदूरदर्शिता और अमानवीयता का है। ऐसी गैर जिम्मेदार संस्था से नीट जैसी परीक्षा संचालन की जिम्मेदारी वापिस होनी चाहिए अन्यथा नीट यूजी परीक्षा से छात्रों का विश्वास उठ जाएगा।