एयर कंडीशनिंग आधुनिक जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बन गया है, जो गर्मियों के महीनों में चिलचिलाती गर्मी से आराम और राहत प्रदान करता है। एयर कंडीशनिंग, जिसे आम तौर पर एसी के रूप में जाना जाता है, आज बेतहाशा तापमान से राहत का आसान तरीका माना जाता है। एसी एक केंद्रीय प्रणाली है जिसका उपयोग आराम के उद्देश्यों के लिए घर के अंदर तापमान को बदलने के लिए किया जाता है। एयर कंडीशनिंग का उपयोग हवा को ठंडा करने और नमी को कम करने के लिए किया जाता है ताकि रहने, यात्रा करने या काम करने की जगह को अधिक आरामदायक बनाया जा सके। एसी का वैश्विक बाजार प्रतिवर्ष बढ़ता जा रहा है।
एयर कंडीशनिंग एक पारिस्थितिक आपदा बनती जा रही है। एसी का बढ़ता उपयोग ऊर्जा, पर्यावरण और स्वास्थ्य तीनों के लिए संकट बनता जा रहा है। वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में अब हर 100 में 24 परिवारों के पास एसी (एयर कंडीशनर) हैं। रिपोर्ट के अनुसार, भारत विश्व का सबसे तेजी से बढ़ता बाजार है। पिछले 13 साल में तीन गुना एसी इस्तेमाल करने वाले भारतीय परिवारों की संख्या हो गई है। 65% नए एसी छोटे शहरों में लगाए गए हैं। रूम एसी में भारत की घरेलू पहुंच सिर्फ 8% के करीब रही है। देश में एसी इस्तेमाल करने वाले परिवार 2010 से 2023 के बीच तीन गुना हो गए हैं।
वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक 2023 के मुताबिक, एसी का बढ़ता इस्तेमाल देश में कूलिंग एरिया (ठंडक क्षेत्र) बढ़ाने के साथ-साथ बिजली की मांग भी बढ़ा रहा है। एसी, फ्रिज (रेफ्रिजरेटर) और स्पेस कूलिंग की जरूरतें बढ़ने के साथ ही अब पर्यावरण पर उनके प्रभाव को लेकर चिंताएं भी उभर रही हैं। पर्यावरण विशेषज्ञों ने बार-बार बताया है कि जैसे-जैसे अधिक कूलिंग (ठंडक) उपकरण लगाए जाते हैं, वातावरण में गर्मी भी उसी हिसाब से बढ़ती जाती है।
इस साल भारत का घरेलू बाजार करीब 1.1 करोड़ एसी का हो गया है। अभी चीन का बाजार करीब 9 करोड़ एसी का है। अब भारत सबसे तेजी से बढ़ता एसी बाजार है। 2045-2050 तक भारत एसी उपयोग में चीन से आगे निकल जाएगा। एसी उत्पादनकर्ता के एक एमडी के अनुसार, भारत में बेचे जाने वाले 90% से ज्यादा एसी के ग्राहक पहली बार के खरीदार होते हैं। 65% एसी टियर 3-4-5 (छोटे) शहरों में खरीदे जा रहे हैं।
कूलिंग में 10% बिजली की खपत हो रही है। कूलिंग उत्पादों में बिजली की खपत चार साल में 21% तक बढ़ चुकी है। देश में बिजली की मांग में कूलिंग प्रोडक्ट्स की हिस्सेदारी करीब 10% है, जो 2019 के मुकाबले 21% ज्यादा है। दिल्ली की संस्था आईफरिस्ट की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2050 तक भारतीय बाजार में घरेलू एसी की हिस्सेदारी नौ गुना बढ़ने का अनुमान है। इससे कूलिंग के लिए बिजली की मांग में नौ गुना बढ़ोतरी होगी, जो बड़ी मुश्किल खड़ी करेगी और ऊर्जा संकट उत्पन्न होगा। एसी के अतिशय इस्तेमाल से पर्यावरण को बड़े खतरे का अंदेशा है।
एसी जैसे उत्पादों से ओजोन परत को बड़ा नुकसान हो रहा है। हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (एचएफसी) कूलेंट्स में इस्तेमाल की जाने वाली मुख्य गैस है। ये ओजोन परत को नुकसान पहुंचा रही हैं। भारत ने एचएफसी को चरणबद्ध तरीके से कम करने के लिए मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत किगाली संशोधन पर दस्तखत कर रखे हैं। लेकिन, कूलिंग उपकरणों का इस्तेमाल साल दर साल बढ़ने की वजह से ये लक्ष्य मुश्किल हो गया है। एसी यूनिट्स में वृद्धि से जलवायु को बड़ा खतरा है। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में एयर कंडीशनिंग यूनिट्स की संख्या इतनी तेजी से बढ़ रही है कि वर्ष 2022 तक भारत में प्रयोग की जा रही एयर कंडीशनिंग यूनिट्स की संख्या पूरी दुनिया में उपयोग की जा रही एयर कंडीशनिंग यूनिट्स की संख्या का चौथाई हिस्सा हो चुकी है। तथा इसके चलते जलवायु को और अधिक खतरा हो सकता है।
शीतलक (रेफ्रिजरेंट) जिनका प्रयोग कूलिंग के लिए किया जाता है, ग्लोबल वार्मिंग के लिए प्रमुख कारकों में से एक है और यदि इन्हें नियंत्रित नहीं किया गया तो ये वैश्विक तापमान में 0.5 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि कर सकते हैं। रॉकी माउंटेन इंस्टीट्यूट द्वारा तैयार की गई ‘सॉल्विंग द ग्लोबल कूलिंग चैलेंज’ नामक रिपोर्ट के अनुसार, एक ऐसे तकनीकी समाधान की आवश्यकता है जो इस प्रभाव को 1/5 हिस्से तक कम करने में मदद करे और एयर कंडीशनिंग इकाइयों के संचालन के लिए आवश्यक बिजली की मात्रा में 75% तक कमी सुनिश्चित कर सके।
रिपोर्ट के मुताबिक, उभरती अर्थव्यवस्थाओं में पांच गुना वृद्धि के साथ-साथ वर्ष 2050 तक लगभग 50 अरब रूम एयर कंडीशनर लगाए जाने का अनुमान है जो वर्तमान में स्थापित यूनिट्स की संख्या का लगभग चार गुना होगा। एक तकनीकी समाधान न केवल बिजली ग्रिड पर पड़ने वाले बोझ को कम करेगा बल्कि 109 ट्रिलियन रुपए (1.5 खरब डॉलर) की बचत करेगा। हाइड्रोफ्लोरोकार्बन को हटाना भारत जैसे पर्यावरण हितैषी देश की प्राथमिकता में रहा है।
भारत उन 107 देशों में से एक है जिन्होंने वर्ष 2016 में उस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे जिसका उद्देश्य वर्ष 2045 तक हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (एचएफसी) नामक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस को काफी हद तक कम करना और वर्ष 2050 तक वैश्विक तापमान में होने वाली 0.5 डिग्री सेल्सियस की संभावित वृद्धि को रोकने के लिए कदम उठाना था। हाइड्रोफ्लोरोकार्बन्स गैसों का एक परिवार है जिसका उपयोग मुख्यतः घरों और कारों में प्रयोग किए जाने वाले एयर कंडीशनर में रेफ्रिजरेंट्स के रूप में किया जाता है। एचएफसीएस ग्लोबल वार्मिंग में लगातार योगदान देती हैं। फ्लोरीन और हाइड्रोजन के परमाणुओं से बनाई गईं हाइड्रोफ्लोरोकार्बंस गैसें धरती को सूर्य के विकिरण से बचाने वाली ओजोन परत को नुकसान पहुंचाती हैं।
यूरोप में 2023 की शुरुआत से ही फ्लोरिनेटेड गैसों के इस्तेमाल को धीरे-धीरे बंद करने की शुरुआत की जा चुकी है। इन गैसों को हाइड्रोफ्लोरोकार्बंस, परफ्लोरोकार्बंस, सल्फर हेक्साफ्लोराइड और नाइट्रोजन ट्राइफ्लोराइड ‘एफ गैसों’ में ही आती हैं। यह जानना आवश्यक है कि एफ गैसें एल्यूमिनियम प्रोसेसिंग के समय भारी मात्रा में बनती हैं। इनका इस्तेमाल एयर कंडीशनर, रेफ्रिजरेटर, हीट पंप, एयरोसोल्स और प्रेशर स्प्रे में किया जाता है। एफ गैसें अन्य ग्रीनहाउस गैसों के मुकाबले ज्यादा तापमान सोखती हैं। एफ गैसें 50 हजार साल तक वायुमंडल में बनी रहती हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक, एफ गैसें हमारे वायुमंडल में करीब 50,000 साल तक बनी रह सकती हैं।
एफ गैसों को लेकर आमतौर पर ज्यादा चर्चा नहीं होती है। हालांकि, जलवायु पर इनका काफी बुरा असर पड़ता है। रेफ्रिजरेटर और एयर कंडीशनर में क्लोरो-फ्लोरो कार्बन या सीएफसी का इस्तेमाल किया जाता है। ये गैस ओजोन परत को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाती है। सीएफसी से निकलने वाली क्लोरीन गैस ओजोन के तीन ऑक्सीजन परमाणुओं में से एक के साथ अभिक्रिया करती है। क्लोरीन का एक परमाणु ओजोन के एक लाख अणुओं को खत्म करता है। नतीजतन ओजोन परत लगातार पतली होती रहती है। ओजोन परत क्षय से कई व्याधियां इंसानों और अन्य जीवों में जन्म लेती हैं जैसे कैंसर आदि। भारत, चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप हाइड्रोफ्लूरोकार्बन्स के उपयोग में 2045 तक 85% तक कमी लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
हाल ही में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग तथा ऊर्जा मंत्रालय समेत भारत में कई विभागों ने एक अमेरिकी संस्थान रॉकी माउंटेन इंस्टीट्यूट और प्रौद्योगिकी पर समाधान उपलब्ध कराने वाली कंपनी कंज़र्वेशन एक्स लैब्स के साथ साझेदारी की घोषणा की थी। इस साझेदारी के जरिए वैश्विक शीतलन पुरस्कार का गठन किया जाएगा जिसका उद्देश्य दुनिया भर की शोध प्रयोगशालाओं को अत्यधिक कुशल शीतलन प्रौद्योगिकियाँ विकसित करने हेतु प्रेरित करना है। दो साल की प्रतियोगिता अवधि के दौरान 21 करोड़ रुपए (तीस लाख डॉलर) पुरस्कार के रूप में आवंटित किए जाएंगे। अंतिम सूची में शामिल 10 प्रतिस्पर्धी प्रौद्योगिकियों में से प्रत्येक प्रौद्योगिकी को उनके अभिनव आवासीय शीतलन प्रौद्योगिकी डिज़ाइनों और प्रोटोटाइप के विकास का समर्थन करने के लिए मध्यवर्ती पुरस्कारों के रूप में 1.4 करोड़ रुपए (2,00,000 डॉलर) तक की राशि प्रदान की जाएगी।
एसी पर्यावरण के लिए इतना खतरनाक क्यों है इसे इसकी संरचना और कार्यप्रणाली से समझा जा सकता है। एयर कंडीशनिंग तंत्र कई घटकों के साथ एक ठंडा वातावरण बनाने में मदद करता है, बदले में वातावरण में एचएफसीएस और सीएफसी तथा फ्रीऑन जैसी जहरीली गैस छोड़ता है। इवेपोरेटर कॉइल, यह हिस्सा एयर कंडीशनर सिस्टम की इनडोर यूनिट के अंदर होता है, और यह वह घटक है जिसमें रेफ्रिजरेंट द्रव होता है जो हवा से गर्मी को अवशोषित करने के लिए वाष्पित हो जाता है। यह “एयर कंडीशनिंग” का मुख्य हिस्सा है – क्योंकि एक खराब इवेपोरेटर कॉइल एक एयर कंडीशनर को बेकार कर देगा। कंप्रेसर, एयर कंडीशनिंग इकाई का यह हिस्सा बाहर होता है और रेफ्रिजरेंट गैस पर दबाव डालने और उसे कंडेनसर कॉइल तक ले जाने का काम करता है। कंडेनसर कॉइल, एयर कंडीशनर का यह हिस्सा भी बाहर स्थित होता है, क्योंकि यह गर्मी को वापस बाहर छोड़ने के लिए जिम्मेदार होता है।
विस्तार वाल्व, वाष्पक और संघनित्र कुंडलियों के बीच स्थित, एयर कंडीशनिंग इकाई का यह भाग रेफ्रिजरेंट की मात्रा को नियंत्रित करने का काम करता है, जिससे घर के अंदर ठंडी हवा का निरंतर प्रवाह बना रहता है। रेफ्रिजरेंट, रेफ्रिजरेंट वह तरल पदार्थ है जो सिस्टम के माध्यम से घूमता है और अंदर की हवा से गर्मी को अवशोषित करता है। यह एयर कंडीशनिंग सिस्टम के सबसे पारिस्थितिक रूप से खतरनाक हिस्सों में से एक है।
आज अस्पतालों, बहुमंजिला इमारतों और बड़े शॉपिंग मॉल सेंटरों में केंद्रीकृत एसी की व्यवस्थाएं हैं जो पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद नुकसान पहुंचा रहे हैं। एयर कंडीशनर से निकलने वाली ठंडी हवा विभिन्न श्वसन संबंधी समस्याएं पैदा कर सकती है, जैसे कंजेशन, गला सूखना और खांसी, खासकर अस्थमा या एलर्जी वाले व्यक्तियों में। ऐसे लोगों की श्वसन नलिकाएं संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकती हैं। एयर कंडीशनिंग के सबसे प्रचलित दुष्प्रभावों में से एक सूखी आंखें हैं। जब एयर कंडीशनर चलता है, तो यह कमरे में नमी के स्तर को कम कर देता है। नतीजतन, हमारी आँखों में नमी अधिक तेज़ी से वाष्पित हो जाती है, जिससे सूखापन, खुजली और असुविधा होती है। जो लोग पहले से ही सूखी आँखों या अन्य आँखों की समस्याओं से पीड़ित हैं, वे इस समस्या के लिए विशेष रूप से अतिसंवेदनशील होते हैं।
एयर-कंडीशन वाले वातावरण में लंबे समय तक रहने से हम सुस्त और ऊर्जाहीन महसूस कर सकते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि ठंडा तापमान हमारी चयापचय दर को कम कर सकता है और हमारे शरीर की प्राकृतिक प्रक्रियाओं को धीमा कर सकता है। इसके अतिरिक्त, ताजी हवा के संचार की कमी से थकान और उनींदापन की भावना पैदा हो सकती है। एयर कंडीशनिंग हवा में नमी के स्तर को कम कर सकती है, जो बदले में हमारे जलीकरण (हाइड्रेशन) के स्तर को प्रभावित कर सकती है। जब हवा शुष्क होती है, तो हमारा शरीर श्वसन और पसीने के माध्यम से अधिक तेज़ी से नमी खो देता है। अगर हम पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ पीकर इसकी भरपाई नहीं करते हैं, तो इससे निर्जलीकरण (डिहाइड्रेशन) हो सकता है। लंबे समय तक निर्जलीकरण से कई तरह के स्वास्थ्य परिणाम हो सकते हैं, जैसे सिरदर्द, शुष्क त्वचा और चक्कर आना।
एयर कंडीशनिंग का एक और आम दुष्प्रभाव है त्वचा का रूखा या खुजलीदार होना। जब हवा में नमी की कमी होती है, तो इससे हमारी त्वचा नमी खो सकती है और रूखी, परतदार और चिड़चिड़ी हो सकती है। यह विशेष रूप से उन व्यक्तियों के लिए सच है जिन्हें पहले से ही एक्जिमा जैसी त्वचा संबंधी समस्याएं हैं। एयर कंडीशनिंग कुछ व्यक्तियों में सिरदर्द को बढ़ावा दे सकती है। ठंडे इनडोर वातावरण और गर्म आउटडोर वातावरण के बीच अचानक तापमान परिवर्तन सिर में रक्त वाहिकाओं को संकुचित और तेजी से फैलने का कारण बन सकता है, जिससे सिरदर्द हो सकता है। इसके अतिरिक्त, ठंडी, शुष्क हवा के लंबे समय तक संपर्क में रहने से साइनस में जमाव हो सकता है और माइग्रेन बढ़ सकता है।
एयर कंडीशनिंग हमारे श्वसन तंत्र पर हानिकारक प्रभाव डाल सकती है, खास तौर पर उन लोगों के लिए जिन्हें श्वसन संबंधी कोई बीमारी है। ठंडी और शुष्क हवा वायुमार्ग को परेशान कर सकती है, जिससे खांसी, छींक और गले में तकलीफ जैसे लक्षण हो सकते हैं। एलर्जी या अस्थमा से पीड़ित लोगों को एयर-कंडीशन वाले वातावरण में लक्षण और भी खराब हो सकते हैं। एयर कंडीशनिंग सिस्टम धूल, पराग और मोल्ड जैसे एलर्जी के लिए प्रजनन स्थल हो सकते हैं। यदि ठीक से रखरखाव न किया जाए, तो ये एलर्जी हवा में फैल सकती हैं और छींकने, खांसने, आँखों से पानी आने और नाक बंद होने जैसी एलर्जी प्रतिक्रियाओं को बढ़ा सकती हैं। एलर्जी और अस्थमा से पीड़ित व्यक्ति विशेष रूप से एसी के प्रति संवेदनशील होते हैं, जो उनके लक्षणों को खराब कर सकते हैं और श्वसन संकट का कारण बन सकते हैं।
एसी ध्वनि प्रदूषण में भी योगदान दे सकती है। एयर कंडीशनर की लगातार गुनगुनाहट नींद के पैटर्न को बाधित कर सकती है और विशेष रूप से रात के समय में परेशानी का कारण बन सकती है। लगातार उच्च स्तर के शोर के संपर्क में रहने से नींद में खलल पड़ सकता है, तनाव का स्तर बढ़ सकता है और समग्र स्वास्थ्य में गिरावट आ सकती है। एयर कंडीशनिंग सिस्टम संभावित रूप से संक्रामक रोगों के प्रसार में योगदान दे सकते हैं। जब उचित रूप से रखरखाव और सफाई नहीं की जाती है, तो वे जीवाणु, विषाणु और कवक को आश्रय दे सकते हैं। ये सूक्ष्मजीव हवा में प्रसारित हो सकते हैं, जिससे रहने वालों में श्वसन संक्रमण और बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। ज्ञात हो कि कोविड महामारी में एसी में रहने वाले लोगों पर कोविड विषाणु का संक्रमण तेजी से हुआ था। संक्रामक रोगों के फैलने के जोखिम को कम करने के लिए एयर कंडीशनिंग इकाइयों का नियमित रखरखाव और सफाई महत्वपूर्ण है।
एयर कंडीशनिंग अनजाने में इनडोर वायु प्रदूषण में योगदान दे सकती है। बंद जगहों में हवा के घूमने से धूल, पालतू जानवरों की रूसी, वाष्पशील कार्बनिक यौगिक और हवा में मौजूद रसायन जैसे प्रदूषक जमा हो सकते हैं। इन प्रदूषकों को सांस के जरिए अंदर लेने से श्वसन संबंधी जलन, एलर्जी और अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। इनडोर वायु गुणवत्ता को बेहतर बनाने और स्वास्थ्य पर एयर कंडीशनिंग के नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए उचित वेंटिलेशन और एयर फिल्ट्रेशन सिस्टम जरूरी हैं। एसी में बैठने से शारीरिक तापमान कृत्रिम तरीके से ज्यादा कम हो जाता है जिससे कोशिकाओं में संकुचन होता है और सभी अंगों में रक्त का संचार बेहतर तरीके से नहीं हो पाता, जिससे शरीर के अंगों की क्षमता प्रभावित होती है। एसी का तापमान बहुत कम होने पर मस्तिष्क की कोशिकाएं भी संकुचित होती हैं जिससे मस्तिष्क की क्षमता और क्रियाशीलता प्रभावित होती है। इतना ही नहीं, आपको लगातार चक्कर आने की समस्या भी हो सकती है।
प्रश्न यह उठता है कि आखिर एसी का विकल्प क्या है। ऐसे समय में वृक्षारोपण कार्यक्रम पर विशेष ध्यान देकर एसी पर निर्भरता कम की जा सकती है क्योंकि वृक्ष प्राकृतिक रूप से तापमान में गिरावट लाते हैं। इमारतों की निर्माण प्रौद्योगिकियां भी एसी पर निर्भरताकम कर सकती हैं। ग्रीस में सेंटोरिनी जैसे शहर शहरी ताप द्वीप प्रभाव को रोकने में मदद करते हैं क्योंकि उनकी अधिकांश इमारतें और आवास सफेद रंग से रंगे होते हैं, जो गर्मी को रोकते हैं।
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