अयोध्या, उत्तरप्रदेश। सदियों के इंतजार और संघर्ष के बाद अयोध्या भगवान श्री राम के स्वागत के लिए तैयार था। इस अवसर पर सूर्य देवता, भगवान श्री राम मंदिर को अपनी सुनहरी चमक द्वारा प्रकाशित किया। सरयू नदी के तट पर भगवान श्री राम की जन्मभूमि पवित्र अयोध्या में आज 22 जनवरी 2023, सोमवार को भगवान श्री राम के मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का भव्य समारोह आयोजित किया गया, जहां आज भगवान श्री राम के बाल रूप की प्राण प्रतिष्ठा प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के साथ उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय योगी जी, संघ प्रमुख मोहन भागवत , उत्तरप्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल द्वारा की गई।
इस प्राण प्रतिष्ठा को 84 सेकंड के शुभ मुहूर्त में सम्पन्न किया गया। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने भगवान श्री राम की मूर्ति की आँखों से पट्टी हटाई और काजल करने की रस्म निभाई, जिससे उसमें जीवन और दिव्यता का संचार हुआ। इस समारोह में 7000 से अधिक संतों, साधुओं, धार्मिक नेताओं और विभिन्न क्षेत्रों की प्रमुख हस्तियों की उपस्थिति भी मौजूद थी, जिन्होंने श्रद्धा और खुशी के साथ इस ऐतिहासिक क्षण को देखा।
इस समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 11 दिनों के व्रत को गोविंद देव गिरी जी महाराज के हाथों चरामृत पीकर तोड़ा। आपको बता दें की पिछले 11 दिनों से प्रधानमंत्री व्रत रह रहे थे और जमीन पर सो रहे थे साथ ही भगवान श्री राम से जुड़े विभिन्न तीर्थों का दर्शन कर रहे थे ।
नोट: इस लेख को English या अन्य भाषा में पढ़ने के लिए आप सबसे नीचे footer में Change language के माध्यम से भाषा बदल सकते हैं।
Table of Contents
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण की मुख्य बातें
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा प्राण प्रतिष्ठा का समय सामान्य समय नहीं है बल्कि अमिट स्मृति है। इस कार्य में हुए सदिओं के विलंब के लिए मोदी जी ने प्रभु श्री राम से क्षमा मांगी। उन्होंने कहा राम विवाद के विषय नहीं समाधान की प्रतिमूर्ति हैं। वो आग नहीं ऊर्जा प्रदान करते हैं। उन्होंने संविधान के पहले पेज में राम के चित्र का भी जिक्र किया। उन्होंने पिछले 11 दिनों में सागर से सरयू तक के विभिन्न तीर्थस्थलों की बात भी किया। उन्होंने कहा जिसमें रम जाए वही राम हैं। उन्होंने गिलहरी का उदाहरण देते हुए कहा की कोई छोटा नहीं है सभी का अपना-अपना महत्व है। उन्होंने कहा की रामलला के इस मंदिर का निर्माण भारतीय समाज के शांति, धैर्य, आपसी सद्भाव और समन्वय का प्रतीक है। उन्होंने कहा राम आग नहीं राम ऊर्जा हैं। राम विवाद के नहीं समाधान के विषय हैं। राम सबके हैं। राम वर्तमान ही नहीं अनंतकाल है। उन्होंने कहा रामलला की प्रतिष्ठा मानवीय मूल्यों , सर्वोच्च आदर्शों, वसुधैव कुटुंबकम की प्रतिष्ठा है। सर्वे भवन्तु सुखिनः के संकल्प को साकार रूप मिला है। उन्होंने कहा इन मूल्यों की आवश्यकता पूरे विश्व को है। उन्होंने कहा राम मंदिर का प्रभाव आने वाले हजारों वर्षों तक रहेगा।
मोदी जी ने इस पवित्र समय को सही समय बताया है। उन्होंने अगले 1000 साल के भारत (समर्थ, सक्षम, भव्य, दिव्य) के नीव नीव रखने की बात कही। साथ ही देव से देश और राम से राष्ट्र के चेतना की बात रखी। उन्होंने माता शबरी और निषाद राज का उदाहरण देते हुए कहा की सब अपने हैं। प्रत्येक भारतीय के बीच बंधुत्व, समरसता और सबके प्रयास की बात को बताया। जटायु का उदाहरण देकर धर्म और अपने कर्तव्य को निष्ठा से करने की बात कही। उन्होंने देशवासियों से राष्ट्र निर्माण के लिए अपने जीवन का पल पल लगाने की बात कही , स्व से समस्त, अहम से वयम होने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने युवा शक्ति से आग्रह किया कि अपने विरासत को याद रखते हुए आधुनिकता के माध्यम से अपने देश को वैभवशाली और विकसित बनाना है। हमें इस अवसर को चूकना नहीं है, बैठना नहीं है हमें अपने ऊर्जा और मेहनत से भारत के नवप्रभात को लिखना है, भारत को समृद्ध बनाना है। उन्होंने विकसित भारत के अपने प्रतिबद्धता को बार-बार दोहराया है और कहा कि हम रुकने वाले नहीं हैं।
सरसंघ चालक मोहन भागवत के भाषण की मुख्य बातें
उन्होंने कहा की आज रामलला के साथ भारत का स्व लौट कर आया है। उन्होंने मोदी जी को तपस्वी कहा साथ ही भारत की जनता को भी कठिन तप और परिश्रम करने की जरूरत को भी बताया। उन्होंने राम राज्य की बात भी कही जिसमें उन्होंने नागरिकों को निर्दम्भ होने के साथ ही धर्म के चार अंग सत्य, करुणा, सुचिता और तप की बात भी विस्तार से की। उन्होंने गांधीजी के एक कथन- “दुनिया के पास हर किसी की ज़रूरत के लिए पर्याप्त है, लेकिन हर किसी के लालच के लिए पर्याप्त नहीं है।”(The world has enough for everyone’s need, but not enough for everyone’s greed.) की बात करते हुए लोगों को कड़ी मेहनत के साथ अपनी क्षमतानुसार सेवा करने को कहा। उन्होंने समता और समावेशिता को अपनाने पर बल दिया।
श्री राम मंदिर की वास्तुकला
श्री राम मंदिर का वास्तुकार चंद्रकांत बी. सोमपुरा हैं, जिनकी सहायता उनके दो बेटों, निखिल सोमपुरा और आशीष सोमपुरा ने की है। इस मंदिर का निर्माण लार्सन एंड टूब्रो (एलएंडटी) कंपनी द्वारा किया जा रहा है और इसकी प्रोजेक्ट मैनेजमेंट कंपनी टाटा कंसल्टिंग इंजीनियर्स लिमिटेड (टीसीईएल) है। इस मंदिर के डिजाइन सलाहकार आईआईटी चेन्नई, आईआईटी बॉम्बे, आईआईटी गुवाहाटी, सीबीआरआई रुड़की, एसवीएनआईटी सूरत, एनजीआरआई हैदराबाद हैं।
इस मंदिर का निर्माण भारतीय नागर शैली में किया जा रहा है, जो उत्तरी भारत की मंदिर वास्तुकला की एक प्रमुख शैली है। श्री राम मंदिर का निर्माण इसी शैली में किया जा रहा है, जिसमें तीन मंजिला मंदिर है, जिसकी लंबाई 380 फीट, चौड़ाई 250 फीट और ऊंचाई 161 फीट है। इस मंदिर में 392 स्तंभ और 44 दरवाजे हैं। इसके दरवाजे सागौन की लकड़ी से बने हैं और सोने की चढ़ाई हुई हैं। इस मंदिर की आयु 2500 वर्ष की अनुमानित है।
मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व की ओर है, जो राम के जन्म की दिशा है। मंदिर के चारों ओर परिक्रमा पथ है, जहाँ से भक्त मंदिर के चारों ओर प्रदक्षिणा कर सकते हैं। मंदिर के अंदर पांच मंडप हैं, जो इस प्रकार हैं:
नृत्य मंडप: यह मंदिर का प्रवेश मंडप है, जहाँ भक्तों का स्वागत होता है। इस में राम के जीवन के विभिन्न दृश्यों को नृत्य के माध्यम से दर्शाया गया है।
रंग मंडप: यह मंदिर का सबसे बड़ा मंडप है, जहाँ भक्तों को बैठने की व्यवस्था है। इस में राम के जीवन के विभिन्न रंगों को चित्रित किया गया है।
सभा मंडप: यह मंदिर का राजसभा मंडप है, जहाँ राम के राज्य के विषयों पर चर्चा होती है। इस में राम के राज्य के विभिन्न पहलुओं को दर्शाया गया है।
प्रार्थना मंडप: यह मंदिर का प्रार्थना मंडप है, जहाँ भक्तों को राम के चरणों में अपनी प्रार्थना अर्पित करने का अवसर मिलता है। इस में राम के उपदेशों को दर्शाया गया है।
कीर्तन मंडप: यह मंदिर का कीर्तन मंडप है, जहाँ भक्तों को राम के नाम का कीर्तन करने का अवसर मिलता है। इस में राम के नाम के विभिन्न रूपों को दर्शाया गया है।
श्रीराम मंदिर के मुख्य गर्भगृह में श्रीराम लला (प्रभु श्री राम के बाल रूप) की मूर्ति स्थापित है, जो 60 मिलियन वर्ष पुरानी शालिग्राम शिला (नेपाल के गंडकी नदी से लाई गई) से बनी है। इस मूर्ति को भगवान विष्णु का एक प्रतीक माना जाता है। इस मूर्ति में भगवान विष्णु के सभी अवतारों की नक्कासी भी की गई है। इस मूर्ति के चारों ओर श्री राम के परिवार के अन्य सदस्यों की मूर्तियां भी हैं, जैसे कि सीता, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, हनुमान आदि।
श्री राम का सांस्कृतिक और साहित्यिक पहलू
श्री राम मंदिर का सांस्कृतिक और साहित्यिक पहलू भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना कि वास्तुकला। यह मंदिर श्री राम के जीवन, चरित्र और उपदेशों को दर्शाता है, जो हमारे लिए आदर्श और प्रेरणा का स्रोत हैं। श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने अपने हर कर्तव्य को निष्ठा, न्याय, धर्म और प्रेम से निभाया। उन्होंने अपने परिवार, प्रजा, गुरु, मित्र और शत्रु के प्रति भी उचित आचरण और भाव दिखाए। उन्होंने अपने वचन का पालन किया। उन्होंने अपने शत्रु रावण को भी मारने के बाद उसकी तारीफ की और उसके भाई विभीषण को राज्य का उत्तराधिकारी बनाया।
श्री राम की कथा को रामायण के रूप में संस्कृत में लिखा गया है, जो वाल्मीकि ऋषि द्वारा रचित है। रामायण हिंदुओं का एक पवित्र ग्रंथ है। यह एक महाकाव्य है, जिसमें 24,000 श्लोक और सात काण्ड हैं। यह राम के जन्म, बाल्य, विवाह, वनवास, सीता के हरण, रावण के वध, राज्याभिषेक और अंतिम गमन के बारे में बताता है।
रामायण के अलावा, श्री राम के बारे में अन्य साहित्यिक ग्रंथ भी हैं, जैसे कि रामचरितमानस, रामोपाख्यान, अध्यात्म रामायण, अनंद रामायण, कृत्तिवास रामायण, रामावतारचरित, रामश्लेष, रामगीता आदि। इन ग्रंथों में राम को विभिन्न भाषाओं, शैलियों, दृष्टिकोणों और परम्पराओं में प्रस्तुत किया गया है। इन ग्रंथों का उद्देश्य राम के जीवन और उपदेशों को लोकप्रिय और सरल बनाना है, ताकि लोग उनसे शिक्षा ले सकें।
श्री राम को केवल भगवान के रूप में नहीं, बल्कि एक महान व्यक्तित्व के रूप में भी देखना चाहिए। उनसे हमें धैर्य, सहनशीलता, साहस, निष्काम कर्म, भक्ति, भ्रातृत्व, पत्नीव्रता, राजनीति, युद्ध, शासन और शांति के बारे में कुछ सीखने को मिलता है अगर हम उनके गुणों को अपने जीवन में अमल करते हैं तो निश्चित ही हमारा देश महानता की ओर अग्रसित होगा और तमाम तरह की बुराइयों का अंत होगा।
राम मंदिर के निर्माण से आर्थिक लाभ
राम मंदिर बनने से अयोध्या और उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था में बड़ा सुधार होने की उम्मीद है। इससे पर्यटन, रोजगार, राजस्व और निवेश में वृद्धि होगी। हाल ही में एसबीआई (State Bank of India) ने अपने एक रिपोर्ट में बताया है कि उत्तर प्रदेश में एक साल में 25000 करोड़ का अतिरिक्त कर प्राप्त हो सकेगा। कुछ रिपोर्टों के अनुसार, अयोध्या में पर्यटकों की संख्या में भी 5 करोड़ से ज्यादा का इजाफा हो सकता है। राम मंदिर के निर्माण से अयोध्या की जीडीपी 500 अरब डॉलर को पार कर सकती है। इससे उत्तरप्रदेश का 1 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना आसान हो जाएगा।
FAQs
मंदिर निर्माण की नागर शैली
नागर शैली एक प्राचीन भारतीय मंदिर स्थापत्य कला की शैली है, जो मुख्य रूप से उत्तर भारत में प्रचलित है। इस शैली का नाम नगर से लिया गया है, क्योंकि इसमें बने मंदिर शहरों या नगरों में ही स्थित होते थे। इसमें मंदिर का निर्माण एक ऊंचे चबूतरे पर किया जाता है। मंदिर का मुख्य भाग गर्भगृह होता है, जहां मुख्य देवता की मूर्ति रखी जाती है। गर्भगृह के ऊपर एक वक्रीय या घुमावदार शिखर होता है, जिसे शिखर, कलश, अमलक या शिरोमणि कहते हैं। गर्भगृह के सामने एक या अधिक मंडप होते हैं, जो प्रवेश द्वार, सभा स्थल, नृत्य स्थल या पूजा स्थल के रूप में कार्य करते हैं। मंदिर के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ होता है, जिससे श्रद्धालु देवता के चारों ओर चक्कर लगा सकते हैं। मंदिर के स्तंभों, दीवारों और शिखरों पर देवी-देवताओं, नागों, गण, अप्सराओं, नवग्रहों, फूलों, पशु-पक्षियों और अन्य आकृतियों की नक्काशी बनी होती है।
नागर शैली के कुछ प्रसिद्ध उदाहरण: खजुराहो के मंदिर, कोणार्क का सूर्य मंदिर, भुवनेश्वर के लिंगराज मंदिर, जगन्नाथ मंदिर, पुरी, दिलवाड़ा के जैन मंदिर आदि
मंदिर निर्माण की द्रविड़ शैली
यह शैली दक्षिण भारत में प्रचलित है। इसमें मंदिर का निर्माण एक विशाल चबूतरे पर किया जाता है। मंदिर का मुख्य भाग गर्भगृह होता है, जहां मुख्य देवता की मूर्ति रखी जाती है। गर्भगृह के ऊपर एक शिखर होता है, जिसे विमान या गोपुरम कहते हैं। शिखर का आकार समतल या श्रृंखला आकार का होता है। गर्भगृह के सामने एक या अधिक मंडप होते हैं, जो प्रवेश द्वार, सभा स्थल, नृत्य स्थल या पूजा स्थल के रूप में कार्य करते हैं। मंदिर के चारों ओर एक चहारदीवारी होती है, जिसमें एक या अधिक गोपुरम होते हैं, जो मंदिर के प्रवेश द्वार होते हैं। मंदिर के स्तंभों, दीवारों और शिखरों पर देवी-देवताओं, नागों, गण, अप्सराओं, नवग्रहों, फूलों, पशु-पक्षियों और अन्य आकृतियों की नक्काशी बनी होती है।
द्रविड़ शैली के कुछ प्रसिद्ध उदाहरण: तंजावुर का बृहदीश्वर मंदिर, महाबलीपुरम के सप्त पगोड़े, रामेश्वरम का रामनाथस्वामी मंदिर, मदुराई का मीनाक्षी मंदिर, हम्पी के विजयनगर मंदिर आदि
मंदिर निर्माण की वेसर शैली
यह शैली उत्तर और दक्षिण भारत की शैलियों का संगम है। इसमें मंदिर का निर्माण एक चबूतरे पर किया जाता है। मंदिर का मुख्य भाग गर्भगृह होता है, जहां मुख्य देवता की मूर्ति रखी जाती है। गर्भगृह के ऊपर एक शिखर होता है, जिसे शिखर, कलश, अमलक या शिरोमणि कहते हैं। शिखर का आकार वक्रीय या घुमावदार होता है। गर्भगृह के सामने एक या अधिक मंडप होते हैं, जो प्रवेश द्वार, सभा स्थल, नृत्य स्थल या पूजा स्थल के रूप में कार्य करते हैं। मंदिर के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ होता है, जिससे श्रद्धालु देवता के चारों ओर चक्कर लगा सकते हैं। मंदिर के स्तंभों, दीवारों और शिखरों पर देवी-देवताओं, नागों, गण, अप्सराओं, नवग्रहों, फूलों, पशु-पक्षियों और अन्य आकृतियों की नक्काशी बनी होती है।
वेसर शैली के कुछ प्रसिद्ध उदाहरण: – खजुराहो के मंदिर, मोदहेरा का सूर्य मंदिर, हलेबीदु के होयसलेश्वर मंदिर, बादामी के चालुक्य मंदिर आदि।
श्री राम लला प्राण प्रतिष्ठा लाइव देंखें
इसे भी पढ़ें:
- भगवान श्रीराम के जीवन से 5 सीख: आज के युवाओं के लिए मूल्यवान ज्ञान
- स्वामी विवेकानन्द: भारत के युवाओं के लिए एक आदर्श
- श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र की वेबसाईट
राम मंदिर का इतिहास
अयोध्या का राम मंदिर एक प्राचीन और पवित्र हिंदू मंदिर है, जो भगवान राम का जन्मस्थान है। इस मंदिर का इतिहास बहुत ही लंबा और विवादित है, जिसमें अनेक निर्माण, ध्वंस, विवाद और न्यायिक फैसले शामिल हैं। इस मंदिर के इतिहास को चार भागों में बांटा जा सकता है:
प्राचीन और मध्यकालीन काल:
इस काल में राम मंदिर का पहला निर्माण राम के पुत्र कुश द्वारा किया गया था, जो बाद में उज्जैन के महाराज विक्रमादित्य ने और भव्य बनाया था। इस काल में अयोध्या में अनेक राजाओं, ऋषियों और तीर्थयात्रियों का आगमन हुआ, जिनमें से कुछ ने अपने अनुभवों और दर्शनों को अपने ग्रंथों में लिखा भी। इस काल में अयोध्या में बौद्ध और जैन मंदिरों का भी निर्माण हुआ था।
मुगल काल:
इस काल में राम मंदिर का ध्वंस मुगल बादशाह बाबर द्वारा किया गया था, जिसने उसकी जगह पर एक मस्जिद, बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया था। इस मस्जिद का पहला उल्लेख जेसुइट मिशनरी जोसेफ टिफेनथेलर की लैटिन पुस्तक में मिलता है, जिसमें उन्होंने बताया है कि मस्जिद का निर्माण रामकोट मंदिर और बेदी, जहां राम का जन्म हुआ था, को तोड़कर किया गया था। इस काल में अयोध्या में अनेक दंगे और विवाद हुए, जिनमें हिंदुओं और मुसलमानों के बीच मस्जिद के अंदर और बाहर की पूजा का मुद्दा था।
अंग्रेज़ी काल:
इस काल में अंग्रेज़ों ने विवाद को रोकने के लिए मुसलमानों को मस्जिद के अंदर और हिंदुओं को राम चबूतरे पर पूजा की इजाजत दी थी। इस काल में पहली बार महंत रघबीर दास ने मस्जिद के पास मंदिर निर्माण के लिए फैजाबाद कोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था।
आधुनिक काल:
इस काल में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के विवाद को लेकर अनेक आंदोलन, दंगे, निर्माण, ध्वंस, खुदाई, अनुसंधान और न्यायिक फैसले हुए। इस काल में सबसे महत्वपूर्ण घटनाएं ये थीं:
- 1949 में मस्जिद के अंदर राम की मूर्तियां रखी गईं, जिसके बाद मस्जिद को बंद कर दिया गया था।
- 1984 में विश्व हिंदू परिषद ने राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन शुरू किया, जिसमें अनेक हिंदू संगठनों और नेताओं ने भाग लिया।
- 1986 में फैजाबाद कोर्ट ने हिंदुओं को मस्जिद के अंदर पूजा करने की इजाजत दी, जिसके विरोध में मुसलमानों ने भारतीय बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी बनाई।
- 1989 में अयोध्या में शिलान्यास का आयोजन किया गया, जिसमें राजीव गांधी की सरकार ने सहयोग दिया था।
- 1990 में भारतीय जनता पार्टी के नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने राम रथ यात्रा शुरू की, जिसमें वे सोमनाथ से अयोध्या तक राम की मूर्ति लेकर गए। इस यात्रा के दौरान अनेक राज्यों में हिंसा और दंगे हुए।
- 1992 में 6 दिसंबर को विश्व हिंदू परिषद और भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने बाबरी मस्जिद को तोड़ दिया, जिसके बाद पूरे देश में दंगे फैल गए। इस घटना के बाद केंद्र सरकार ने अयोध्या को राष्ट्रीय रक्षा क्षेत्र घोषित कर दिया और वहाँ की जमीन को अपने अधिकार में ले लिया।
- 2003 में अल्लाहाबाद हाई कोर्ट ने अयोध्या के खुदाई के दौरान मिले अवशेषों का एक रिपोर्ट जारी किया, जिसमें बताया गया कि वहाँ पर एक विशाल हिंदू मंदिर का निर्माण हुआ था, जिसके ऊपर मुगलों ने मस्जिद बनाई थी।
- 2010 में अल्लाहाबाद हाई कोर्ट ने अयोध्या की जमीन को तीन भागों में बांट दिया, जिनमें से एक भाग रामलला को, एक भाग निर्मोही अखाड़ा को और एक भाग सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया। इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई।
- 2019 में 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या की जमीन को रामलला को सौंप दिया और मुसलमानों को एक अन्य जगह पर 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया। इस फैसले को दोनों पक्षों ने स्वीकार किया।
- 2020 में 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास का आयोजन किया, जिसमें वे राम की मूर्ति को भूमि में रखकर उसे पूजा और आरती करते हुए दिखाए गए। इस आयोजन में अनेक धार्मिक और राजनीतिक व्यक्तित्व भी शामिल थे।
- 2024 में आज 22 जनवरी को राम मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा समारोह हुआ, जिसमें राम की मूर्ति को मंदिर में स्थापित करके उसमें जीवन और दिव्यता का प्रवेश कराया गया। इस समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम की मूर्ति का आँखों पर काजल लगाकर उसे अनावरण किया और उसे पुष्प, फल, अक्षत, दूध, घी, शहद, दही, चावल और जल से अभिषेक किया। इस समारोह में अनेक संत, ऋषि, धार्मिक नेता और प्रमुख व्यक्तित्व भी उपस्थित थे, जिन्होंने इस ऐतिहासिक और शुभ अवसर को देखा और अनुभव किया।
इस प्रकार, राम मंदिर का इतिहास बहुत ही रोमांचक और गौरवशाली है, जो हमें अपने धर्म, संस्कृति और राष्ट्र के प्रति गर्व और श्रद्धा का भाव दिलाता है।
राम मंदिर का विरोध
आपको बता दें की जहां एक ओर राम मंदिर बनने की खुशी मनाई जा रही है वहीं इसका विरोध भी बहुत लोग कर रहें है। आज 22 जनवरी को सोशल मीडिया पर #Blackday #BabriMasjid #BabriZindaHai ट्रेंड कर रहा है। साथ में #TamilsPrideRavanaa भी ट्रेंड कर रहा है।
साथियों आप कैसा महसूस कर रहे है? कॉमेंट कर के बताइए।
इसी तरह की महत्वपूर्ण खबरों को विस्तार से जानने के लिए janabhyudaykranti.in पर विज़िट करते रहें और जन अभ्युदय क्रांति न्यूज को पढ़ते रहें। धन्यवाद।