नई दिल्ली। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने हाल ही में कोचिंग संस्थानों के लिए नई गाइडलाइन जारी की है, जिसमें यह निर्देश दिया गया है कि 16 वर्ष से कम उम्र के विद्यार्थियों को कोचिंग केंद्रों में प्रवेश नहीं दिया जाएगा। साथ ही कोचिंग संस्थानों को वेबसाईट बनाना अनिवार्य कर दिया गया है। इसके अलावा, कोचिंग संस्थानों को अपनी फीस, परिणाम, शिक्षकों और सुविधाओं से संबंधित सम्पूर्ण जानकारी बिना किसी भ्रामक विज्ञापन द्वारा प्रस्तुत करनी होगी और दिए गए मानकों के आधार पर ही संस्थान चल सकेंगे। यदि कोई इन दिशानिर्देशों का उल्लंघन करता है, तो उसे आर्थिक दंड के साथ कोचिंग बंद करने का भी प्रावधान है। चलिए विस्तार से इस ख़बर को समझते हैं।
आपको बता दें कि लगातार कोचिंग पढ़ने वाले छात्रों के आत्महत्या का मामला, कोचिंग संस्थानों में आग लगने की घटनाएं, आवश्यक सुविधाओं की कमी, कोचिंग संस्थानों के पढ़ाने के तरीके, अत्यधिक फीस वसूलने, अनैतिक आचरण/दुराचार, भ्रामक प्रचार जैसे कई मामले आए दिन देखने को मिलते रहते हैं।
ये सभी मुद्दों पर संसद में कई बार बहस, चर्चा और सवालों के जरिए सवाल भी उठाया गया है। कई बार कोचिंग केंद्रों को विनियमित करने के लिए आवाज उठाए गए। साथ ही भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने वाले कोचिंग केंद्रों या निजी उच्च शिक्षा संस्थानों के खिलाफ उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत कार्यवाही करने लिए यह मुद्दा समय समय पर लाया जाता रहा। सबसे बड़ी बात आज की अधिकतर कोचिंग संस्था राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के मूल सिद्धांतों के खिलाफ कार्य कर रही हैं।
इन्ही सब सब बातों को देखते हुए उच्चतर शिक्षा विभाग, शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार ने कोचिंग केंद्र के पंजीयन एवं विनियमन हेतु दिशानिर्देश 2024 जारी किया।
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दिशानिर्देशों का उद्देश्य
किसी भी अध्ययन कार्यक्रम, प्रतियोगी परीक्षाओं या शैक्षणिक सहायता के लिए छात्रों को बेहतर मार्गदर्शन और सहायता प्रदान करने के लिए कोचिंग केंद्रों को विनियमन हेतु दिशा निर्देश प्रदान करना।
दिशानिर्देशों की आवश्यकता
- कोचिंग संस्थानों के पंजीकरण और विनियमन के लिए रूपरेखा प्रदान करना
- कोचिंग केंद्र चलाने के लिए न्यूनतम मानक आवश्यकताओं को सुझाव देना।
- कोचिंग केंद्र में नामांकित छात्रों के हितों की रक्षा करना।
- कोचिंग केंद्रों को सह पाठ्यचर्या संबंधी गतिविधियों के साथ-साथ छात्रों के समग्र विकास पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह देना।
- छात्रों के मानसिक कल्याण के लिए कैरियर मार्गदर्शन और मनोवैज्ञानिक परामर्श प्रदान करना।
कोचिंग केंद्र किसे माना जाएगा?
वे संस्थान जिसमें 50 से अधिक छात्रों को कोचिंग, शिक्षा या मार्गदर्शन दिया जाता है। हालांकि इसमें खेल, थिएटर, परामर्श,संगीत, नृत्य एवं अन्य रचनात्मक गतिविधियाँ शामिल नहीं की गयी है। इसमें केवल स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तर पर किसी भी अध्ययन कार्यक्रम या प्रतियोगी परीक्षाओं या छात्रों को शैक्षणिक सहायता के लिए कोचिंग प्रदान करने वाले संस्थान ही शामिल किये गए हैं। 50 से कम छात्रों को पढ़ाने वाले शिक्षकों या होम ट्यूशन देने वाले शिक्षकों को कोई समस्या नहीं होगी। कमजोर बच्चे इनकी मदद ले सकते हैं।
कोचिंग केंद्र के संचालन के लिए शर्तें
पंजीकरण के लिए सरकार ने विभिन्न शर्तें रखी हैं जिसे मानना अनिवार्य होगा चलिए जानते हैं ये शर्तें क्या होगी-
- कोई भी कोचिंग ग्रैजुएशन से कम योग्यता वाले शिक्षकों की नियुक्ति नहीं करेगा।
- छात्रों या अभिभावकों को कोचिंग केंद्र में नामांकन कराने के लिए भ्रामक वादे, अच्छे रैंक लाने की या सफलता प्राप्त करने की गारंटी नहीं देगा।
- कोचिंग संस्थान 16 से कम आयु के छात्रों का दाखिला नहीं करेंगे। छात्रों का एडमिशन माध्यमिक स्कूल परीक्षा के बाद ही किया जाना चाहिए।
- कोचिंग की गुणवत्ता, उसमें दी जाने वाली सुविधाओं या उस कोचिंग केंद्र या वहाँ से पढ़ने वाले छात्रों द्वारा प्राप्त परिणाम के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी दावे से संबंधित किसी भी भ्रामक विज्ञापन को प्रकाशित नहीं करेगा या प्रशासन में शामिल नहीं होगा।
- यदि संस्थान में बैठने की जगह पर्याप्त नहीं है तो छात्रों का दाखिला नहीं हो सकेगा।
- संस्थान अनैतिक एवं दुश्चरित्र शिक्षकों की मदद नहीं लेंगे।
- संस्थान का अपना एक वेबसाइट होगा जिसमे शिक्षकों की योग्यता, पाठ्यक्रम, पूरा होने की अवधि, छात्रावास की सुविधाएं( यदि हो तो), ली जाने वाली फीस, कोचिंग प्राप्त करने वाले कुल छात्रों की संख्या और अंततः सफल छात्रों की संख्या आदि का विस्तृत विवरण देना होगा।
- जितने समय तक छात्र कोचिंग और छात्रावास में रहेगा, उतने समय की फीस काटकर बाकी जमा फीस 10 दिनों के अंदर लौटनी होगी।
- सुरक्षा एवं सभी आवश्यक सुविधा जैसे प्राथमिक सुरक्षा किट, स्वच्छ परिसर एवं जल, सीसीटीवी, पुरुषों एवं महिलाओं के लिए अलग-अलग शौचालय आदि की व्ययस्था करना अनिवार्य है।
- छात्रों के स्कूल लगने के समय में कोचिंग नहीं चलाया जाएगा। साथ ही एक दिन में 5 घंटे से अधिक की क्लास नहीं होगी, ना बहुत सुबह, ना ही बहुत शाम में कोचिंग चलाई जाएगी।
- मूल पाठ्यक्रम के अलावा छात्रों के समग्र व्यक्तित्व विकास के लिए विभिन्न गतिविधियां एवं पाठ्यक्रम संचालित की जाएंगी जिससे बच्चों को तनाव से बचने में मदद मिले और पूरी तरह स्वस्थ रह सकें।
- बच्चों को उनके क्षमता के आधार पर अन्य कैरियर विकल्पों से अवगत कराया जाए।
इस प्रकार और भी बहुत से निर्देश दिए गए हैं जिसका पालन करना अनिवार्य है।
शर्तों के उल्लंघन पर दंड
यदि संस्थान पंजीकरण या सामान्य शर्तों के किसी भी नियम का उल्लंघन करता है है तो पहली बार 25000 रुपये का, दूसरी बार 100000 रुपये का तथा अगर इसके बाद नियमों की अवहेलना करता है तो उसका पंजीकरण रद्द कर दिया जाएगा। हालांकि प्रभावित संस्थान आदेश के 30 दिनों के भीतर अपील कर सकता है।
छात्रों के आत्महत्या का जिम्मेदार कौन?
केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय का यह फैसला स्वागत योग्य है लेकिन यह सरकार, विद्यालयों, परिवार एवं समाज के सामने कई प्रश्न भी खड़ा करता है। जरा सोचने की बात है आखिर ये नौबत आई कैसे? हमें पता चलेगा कि विद्यालय अपना काम ठीक तरीके से नहीं कर पा रहे हैं। निजी विद्यालय फीस तो बहुत लेते हैं पर जैसा वादा करते हैं, कभी भी अपने छात्रों पर उतना ध्यान नहीं देते, उन पर काम नहीं करते। ज़्यादातर सरकारी विद्यालयों और अध्यापकों का तो हाल और बुरा है। ACER रिपोर्ट में बताया गया कि 7 वी 8 वी तक के विद्यार्थियों को बेसिक गणित भी नहीं आता। अब आप ही बताइए क्या होगा बच्चों का, एक तरफ उनके ऊपर परिवार और समाज की ओर से अधिक अंक लाने का दबाव, बच्चों के बीच में तुलना, असफलता को श्राप मानने की आदत, बेहतर कैरियर, बढ़ती प्रतियोगिता और भी कई तरह के दबाव की वजह से उसे स्कूल से अतिरिक्त कोचिंग लेने पर विवश होना पड़ता है। बहुत कम परिवार ऐसे होंगे जो अपने बच्चों को शिक्षा में व्यक्तिगत रूप से मदद कर पाते हैं। ज़्यादातर बच्चों के लिए कौशल विकास, व्यक्तित्व विकास, खेल आदि अन्य गतिविधियों से दूर रखा जाता है। जाहिर सी बात है बच्चे मानसिक तनाव में होंगे ही। कई बच्चे अपने अंदर चल रही उथल- पुथल, अपनी समस्या को अपनों के सामने नहीं रख पाते, उन्हे डर लगता है कि कहीं हमें डाट, मार ना मिल जाए, निकम्मा, कामचोर न कह दिया जाए। कुछ बच्चे बहुत संवेदनशील होते है, खुद को नुकसान पहुंचा लेते है और आत्महत्या कर लेते हैं।
आपको बता दें की राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अकड़ों के अनुसार पिछले पाँच सालों में छात्रों के आत्महत्या के मामले बढ़ते ही जा रहें है। 2021-22 में प्रतिदिन 35 से अधिक बच्चे औसतन साल में 13000 से अधिक बच्चे आत्महत्या किये हैं। सबसे ज़्यादा महाराष्ट्र में बच्चों की मौत या आत्महत्या हुई है।
आगे की राह
यह समस्या अकेले छात्र या कोचिंग संस्थान का नहीं है बल्कि सरकार, परिवार, स्कूल, समाज एवं सभी हितग्राही शामिल हैं जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बच्चों से जुड़े हैं। अतः सभी के सहयोग एवं प्रयासों से ही इस परिस्थिति से निपट जा सकता है। कुछ सुझाव हैं जिससे परिवर्तन लाया जा सकता है-
- सरकार को शिक्षा संस्थानों जैसे सरकारी स्कूल, कॉलेज आदि को बेहतर करने के लिए पर्याप्त संस्थागत तंत्र को विकसित करना होगा।
- छात्रों के लिए शिक्षकों के साथ ही अभिभावकों का भावनात्मक सहयोग उपलब्ध करना होगा, बच्चों से बातचीत करके,उन्हे समय दे कर समस्याओं को सुलझना होगा।
- पैरेंट एजुकेशन पर भी बहुत ज़्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है, जिससे वे बच्चों के समस्त पहलू से अवगत हो सकें और उन्हे सहयोग कर सके।
- बच्चों के समग्र व्यक्तित्व विकास के लिए प्रयास करना होगा।
- मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर करने के लिए ध्यान देना पड़ेगा।
- कुछ एवं थोड़े समय की असफलता को हमें प्रोत्साहित करना होगा, इसे सीखने का एक जरिया मानकर आगे बढ़ना होगा।
- बच्चों को उनके क्षमता एवं रुचि के हिसाब से कैरियर में आगे बढ़ने को प्रोत्साहित करना होगा, ना की परिवार एवं समाज की अपेक्षाओं के अनुरूप। हमें सिर्फ मेडिकल, आइआइटी, और सिविल सेवाओं की तैयारी ही नहीं इसके अलावा भी कैरियर के विकल्प चुनने में सहायता करनी होगी।
इस तरह हम कुछ सावधानी रखकर, आवश्यक सुधार करके इस समस्या से निपट सकने में सक्षम होंगे और बच्चों के बेहतर भविष्य की ओर कदम उठा सकेंगे।
सुझाव :
- जन अभ्युदय सेवा फाउंडेशन के कैरियर गाइडेंस और मेंटरशिप प्रोग्राम से जुड़ने के लिए क्लिक करें
- स्वामी विवेकानन्द: भारत के युवाओं के लिए एक आदर्श लेख को पढ़ें।
FAQs
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम क्या है ?
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, एक कानून है, जो भारत में उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा और संरक्षण के लिए बनाया गया है। इस अधिनियम के तहत, उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों का जागरूक होना, अपनी शिकायतों को प्रस्तुत करना, और अनुचित व्यापारिक व्यवहार, त्रुटि, कमी, अधिक मूल्य, आदि से बचने का अधिकार है। इस अधिनियम में, उपभोक्ता संरक्षण परिषद, उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, और उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण की स्थापना की गई है, जो उपभोक्ताओं की सहायता, सलाह, और न्याय के लिए जिम्मेदार हैं। इस अधिनियम का उद्देश्य उपभोक्ताओं को आत्मनिर्भर बनाना, उनकी आवाज उठाना, और उनकी शिकायतों का समाधान करना है।
Department of Consumer Affairs website
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 एक नया कानून है, जो भारत में शिक्षा के क्षेत्र में बड़े बदलाव लाने का उद्देश्य रखता है। इस नीति के अंतर्गत, शिक्षा के स्तर, गुणवत्ता, समावेशीता, अनुसंधान, और नवाचार को बेहतर बनाने के लिए कई पहल की गई हैं। कुछ मुख्य पहलों में निम्नलिखित शामिल हैं:
शिक्षा के संरचना में परिवर्तन: अब शिक्षा की संरचना 5+3+3+4 होगी, जिसमें 5 वर्ष का बाल विकास और प्रारंभिक शिक्षा, 3 वर्ष का प्राथमिक शिक्षा, 3 वर्ष का माध्यमिक शिक्षा, और 4 वर्ष का उच्च शिक्षा शामिल होंगे।
शिक्षा के भाषा में लचक: अब शिक्षा की भाषा का चयन विद्यार्थियों और शिक्षकों के अनुसार होगा, और विभिन्न भाषाओं को सम्मान और समर्थन दिया जाएगा।
शिक्षा के पाठ्यक्रम में नवीनता: अब शिक्षा के पाठ्यक्रम में अधिक व्यावहारिक, सृजनात्मक, और अन्वेषणात्मक तत्व शामिल किए जाएंगे, और विद्यार्थियों को अपनी रुचि के अनुसार विषय चुनने की आजादी दी जाएगी।
शिक्षा के गुणवत्ता में सुधार: अब शिक्षा के गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए शिक्षकों की योग्यता, प्रशिक्षण, और वेतन को बेहतर बनाया जाएगा, और शिक्षा के प्रदाताओं को नियमित रूप से मूल्यांकन और समीक्षा का सामना करना पड़ेगा।
शिक्षा के अनुसंधान और नवाचार में बढ़ोतरी: अब शिक्षा के अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान फ़ंड (National Education Research Fund) बनाया जाएगा, और विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को अधिक स्वायत्तता और सहयोग दिया जाएगा।
इस नीति का लक्ष्य है कि भारत को एक ज्ञान समृद्ध, समाजवादी, और वैश्विक नेतृत्व करने वाला देश बनाए, जो अपनी प्राचीन संस्कृति और मूल्यों का सम्मान करता है।
ACER रिपोर्ट क्या है?
ACER रिपोर्ट या Annual Status of Education Report एक वार्षिक सर्वेक्षण है, जो भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों के शिक्षा की स्थिति को जांचता है। इस सर्वेक्षण को प्रथम नामक एक गैर-सरकारी संगठन द्वारा आयोजित किया जाता है। इस सर्वेक्षण में बच्चों के नामांकन, उपस्थिति, गणित, भाषा, और संज्ञानात्मक कौशल का मूल्यांकन किया जाता है। इस सर्वेक्षण का उद्देश्य शिक्षा के क्षेत्र में चुनौतियों को पहचानना और सुधार के लिए सुझाव देना है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो क्या है ?
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) एक केंद्रीय संगठन है, जो भारत में अपराध और अपराधियों की सूचना का संग्रह, विश्लेषण, और प्रकाशन करता है। इसका उद्देश्य भारतीय पुलिस को सूचना प्रौद्योगिकी से समर्थ बनाना और कानून व्यवस्था को प्रभावी बनाना है। इसने विभिन्न ऑनलाइन सेवाएं जैसे कि अपराध एवं अपराधी ट्रैकिंग नेटवर्क और सिस्टम (CCTNS), वाहन चोरी की सूचना (Vahan Samanvay), अपराधियों की नकली नोटों की सूचना (FICN), आदि शुरू की हैं।
कोचिंग दिशानिर्देश से संबंधित ज़्यादा जानकारी के लिए आप नीचे दिए गए पीडीएफ़ को विस्तार से पढ़ सकते हैं-