नदी और मानव का संबंध मानव इतिहास के प्रारंभ से ही रहा है। पाषाण युग से प्राचीन संस्कृतियों के साक्ष्य नदी के किनारों पर खोजे गए हैं, और समय के साथ नदियों के किनारे कई सभ्यताएँ विकसित हुई हैं। भारत में नदियों को पवित्र माना जाता है और उन्हें मॉं का दर्जा दिया गया है। यद्यपि, मानवीय गतिविधियाँ अब नदियों के अस्तित्व को खतरे में डाल रही हैं। नदियों ने सदियों से भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, और यहां तक कि धार्मिक समारोहों और शास्त्रों में भी इसका उल्लेख किया गया है। गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु, और कावेरी नदियों के महत्व पर जोर दिया गया है, प्रत्येक नदी के बारे में माना जाता है कि उसके अपने विशिष्ट शुद्धिकरण गुण हैं। श्री रामचरित मानस में वर्णित है कि – “गंग सकल मुद मंगल मूल। सब सुख करणी हरि सब सुला” – अर्थात् वह अनंत सुख प्रदान करती हैं और सभी प्रकार के दुखों को मिटा देती हैं। ऋग्वेद, रामायण, महाभारत, स्कंदपुराण एवं अन्य ब्राह्मण ग्रंथों में गंगा की महिमा का वर्णन किया गया है।
भारत नदियों का देश है। यहाँ छोटी और बड़ी प्रकार की लगभग 4000 से अधिक नदियाँ हैं। हिमालय की नदियों में, ग्लेशियर प्राथमिक जल स्रोत के रूप में काम करते हैं, जिसमें पिघलने वाली बर्फ साल भर प्रवाह सुनिश्चित करती है। इसके विपरीत, प्रायद्वीपीय नदियाँ अधिकांशतः वर्षा जल पर निर्भर हैं। गर्मियों में, इन जलमार्गों की मात्रा में कमी देखी जा सकती है, जिससे वे केवल धाराओं के रूप में बहते हैं। सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र, यमुना, चंबल, बेतवा, सोन, कोसी और घाघरा हिमालय प्रणाली से संबंधित कुछ ही नदियाँ हैं, जबकि प्रायद्वीपीय जल निकासी प्रणाली में नर्मदा, महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, ताप्ती, साबरमती, माही, सुबर्णरेखा और लूनी जैसी नदियाँ शामिल हैं। सिंधु नदी प्रणाली में सिंधु, सतलुज, झेलम, चिनाब, रावी और ब्यास शामिल हैं, जिन्हें पंचनद के रूप में जाना जाता है। इस बीच, गंगा नदी प्रणाली में गंगा, यमुना, चंबल, घाघरा, गंडक, कोसी, बेतवा और रामगंगा शामिल हैं। अंत में, प्रायद्वीपीय महानदी प्रणाली में महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, नर्मदा, ताप्ती, माही, लूनी और बहुत कुछ शामिल हैं।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट द्वारा हाल ही में जारी पर्यावरण की स्थिति रिपोर्ट 2023 के अनुसार भारत की लगभग 46 प्रतिशत नदियाँ, जिनमें गंगा जैसे प्रमुख जल निकाय शामिल हैं, में प्रदूषण की स्थिति चिंताजनक है। रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश सबसे अधिक प्रदूषित नदियाँ हैं, जबकि उत्तर प्रदेश और पंजाब जैविक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) प्रदूषण के स्तर के मामले में शीर्ष पर हैं। भारत के 30 राज्यों में कुल 279 नदियाँ, जो देश की 46 प्रतिशत नदियाँ हैं, प्रदूषण से पीड़ित हैं। हालांकि यह आंकड़ा 2018 के आंकड़ों की तुलना में मामूली सुधार को दर्शाता है, जहां 31 राज्यों की 323 नदियां प्रदूषित थीं, किन्तु समग्र स्थिति अभी भी बहुत चिंताजनक बनी हुई है। लगभग 55 प्रदूषित नदियों के साथ महाराष्ट्र शीर्ष पर है, इसके बाद 19 के साथ मध्य प्रदेश है। बिहार और केरल में प्रत्येक में 18 प्रदूषित नदियाँ हैं, जबकि उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में प्रत्येक में 17 हैं। रिपोर्ट में राजस्थान, गुजरात, मणिपुर और पश्चिम बंगाल की भी पहचान की गई है। एसओई रिपोर्ट में जिन खतरनाक पहलुओं पर चर्चा की गयी है, उनमें से एक कई दूषित नदी स्थलों में जैविक ऑक्सीजन की मांग (बीओडी) का स्तर है, जो अनुमेय सीमा से 10 गुना अधिक है। बीओडी पानी की गुणवत्ता का एक आवश्यक संकेतक है, और जो मानक स्तर से अधिक है, ऑक्सीजन के स्तर में कमी और कार्बनिक पदार्थों को हटाने के लिए अतिरिक्त ऑक्सीजन की तत्काल प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। रिपोर्ट के अनुसार बीओडी संदूषण के मामले में उत्तर प्रदेश सबसे खराब स्थिति का सामना कर रहा है।
तेजी से हो रही जनसंख्या वृद्धि के कारण घरेलू, औद्योगिक और कृषि के क्षेत्र में नदियों के जल की मांग बढ़ी है जिसके कारण इसकी गुणवत्ता प्रभावित हुई है। उद्योगों का प्रदूषण और अपरिष्कृत कचरे को नदियों में डालने से वे प्रदूषित हो रही हैं। इसे उचित उपचार के बिना पानी में डालने से जल प्रदूषण से होने वाली गंभीर बीमारियों का प्रकोप हो सकता है, जैसे कि टाइफाइड, हैजा और अन्य। आर्सेनिक-प्रदूषित पानी के सेवन से शरीर के अंगों जैसे रक्त, नाखून और बालों में आर्सेनिक जमा हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप त्वचा संबंधी विकार हो जाते हैं। जीवाणु क्रिया अपशिष्ट जल में पारा यौगिकों को अत्यधिक जहरीले मिथाइलमेरकरी में परिवर्तित करती है, जिससे अंगों, होंठों और जीभ की सुन्नता, बहरापन, दृष्टि का धुंधलापन और मानसिक विक्षिप्तता हो सकती है। जल निकायों के पारा प्रदूषण से मनुष्यों में मिनमाटा (न्यूरोलॉजिकल सिंड्रोम) रोग होता सीसे के यौगिकों से रक्ताल्पता, सिरदर्द, मांसपेशियों में कमज़ोरी और मसूड़ों के चारों ओर एक नीली रेखा बन जाती है। कैडमियम से दूषित पानी इटाई इटाई रोग का कारण बन सकता है, जिसे आउच-आउच रोग (एक दर्दनाक हड्डी और जोड़ों की बीमारी) के साथ-साथ फेफड़े और यकृत के कैंसर के रूप में भी जाना जाता है।
केंद्र एवं राज्य सरकारें नदियों के संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा रही है। भारत में प्रमुख नदियों के किनारे पेड़ लगाने के प्रयास किए जा रहे हैं। साथ ही यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि नदी के सभी हिस्सों में पर्यावरणीय प्रवाह बना रहे। जल संरक्षण तकनीकों को अधिक किफायती बनाना और रिचार्ज ज़ोन की सुरक्षा करना ज़रूरी कदम हैं। स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन, नमामि गंगे परियोजना, नमामि देवी नर्मदे, और नर्मदा सेवा जैसी विभिन्न योजनाओं कार्यान्वित किया जा रहा है। केन-बेतवा लिंक परियोजना शुरू करने का निर्णय एक सराहनीय कदम है। इन योजनाओं के सफल क्रियान्वयन से ही भविष्य में नदियों के अस्तित्व को संरक्षित एवं संवर्धित किया जा सकेगा। भारत जैसे देश में जहाँ की अधिकांश जनसंख्या जीविका के लिये कृषि पर निर्भर है, वहां सिंचाई, नौसंचालन और जलविद्युत निर्माण के लिये नदियों को संरक्षित रखना हम सबका कर्त्तव्य है। “नद्य रक्षति रक्षित:, नद्य हन्ति हन्त:” नदी उनकी रक्षा करेगी जो इसकी रक्षा करते हैं। भारतीय सनातन संस्कृति में वर्णित नदी के प्रति अटूट श्रद्धा एवं प्रेम पुनः स्थापित करने के साथ प्रत्येक जन मानस को योगदान देना होगा तभी नदियां सदानीरा बनी रहेंगी।
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