हरित इस्पात पर्यावरण के बेहद अनुकूल

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डॉ. रामानुज पाठक, सतना
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इस्पात विश्व भर में व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली सामग्रियों में से एक है। लौह और इस्पात उद्योग सर्वाधिक मुनाफे का उद्योग है। इस्पात उद्योग की निर्माण कार्य, बुनियादी ढाँचे, ऑटोमोबाइल, इंजीनियरिंग तथा रक्षा जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में अहम भूमिका है।

भारतीय अर्थव्यवस्था में इस्पात सबसे प्रमुख क्षेत्रों में से एक है, वित्त वर्ष 2021-22 में देश की जीडीपी में इस्पात उद्योग की 2% भागीदारी रही है। हमारे जीवन में इस्पात का काफी प्रभाव है – कार जिसे हम चलाते हैं, भवन जिसमें हम कार्य करते हैं, जिस घर में हम रहते हैं और अनेक अन्य पहलू इसमें शामिल हैं। विद्युत पावर लाइन टावर, प्राकृतिक गैस पाइप लाइनें, मशीन उपकरण आदि में इस्पात का प्रयोग होता है जिसकी सूची बहुत लम्बी है। घरों में हमारे परिवारों को सुरक्षित रखने, हमारे जीवन को सुविधाजनक बनाने में इस्पात का महत्वपूर्ण स्थान है। इसका फायदा निसंदेह स्पष्ट है। इस्पात अत्यधिक महत्वपूर्ण, बहुकार्यात्मक और सर्वाधिक अनुकूलनीय है। यदि इस्पात नहीं होता तो मानव जाति का विकास संभव नहीं होता। इस्पात के बल पर और सहज प्रयोग से विकसित अर्थव्यवस्था का आधार रखा गया था।

इस्पात का विविध प्रयोग क्रमशः इस्पात का अनुकूलनीय मापदण्ड है। इस्पात (स्टील), लोहा, कार्बन तथा कुछ अन्य तत्वों का मिश्र धातु है। इसकी तन्य शक्ति अधिक होती है जबकि प्रति टन मूल्य कम होने के कारण यह भवनों, अधोसंरचना, औजार, जलयान, वाहन, और मशीनों के निर्माण में प्रयुक्त होता है। गर्म और ठंडी अवस्था में रूपान्तरण, वेल्ड करने योग्य, यांत्रिक रूप से उपयुक्त – सख्त, मजबूत, कम घिसने वाला, जंग प्रतिरोधी, ताप प्रतिरोधी – उच्च तापमान पर भी कम विकृति आदि इस्पात के प्रमुख गुण हैं। हाल ही में जिस अटल समुद्र सेतु का मुंबई में उद्घाटन भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा किया गया है, उसमें इतना इस्पात का उपयोग किया गया है कि उससे चार हावड़ा ब्रिज (सेतु) बनाए जा सकते हैं, और 17 एफिल टॉवर बनाए जा सकते हैं। अटल समुद्र सेतु जिसकी लंबाई 21 किलोमीटर से भी अधिक है, इस पुल निर्माण में 1.2 लाख टन इस्पात का इस्तेमाल किया गया है।

भारत वर्तमान में कच्चे इस्पात का दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, जहाँ 31 मार्च 2022 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष के दौरान 1200 लाख टन कच्चे इस्पात का उत्पादन हुआ था। देश में इसका 80 प्रतिशत से अधिक भंडार ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश के उत्तरी क्षेत्रों में है।भिलाई (छत्तीसगढ़), दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल), बर्नपुर (पश्चिम बंगाल), जमशेदपुर (झारखंड), राउरकेला (ओडिशा), बोकारो (झारखंड) महत्त्वपूर्ण इस्पात उत्पादक केंद्र हैं। भारत वर्ष 2021 में (106.23 मीट्रिक टन) में तैयार इस्पात का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता रहा, विश्व इस्पात एसोसिएशन के अनुसार, चीन सबसे बड़ा इस्पात उपभोक्ता है।

इस्पात का अन्य पदार्थों से तुलना की जाय तो इसकी उत्पादन-लागत कम है। एलुमिनियम को बनाने में जितना उर्जा लगती है उसका लगभग 25% उर्जा से लोह अयस्क से लोहा बनता है। इस्पात पर्यावरण-मित्र है, इसको पुन:चक्रित (रिसाइकिल) किया जा सकता है। भूगर्भ में 5.6% लौह तत्त्व विद्यमान है अत: इसका कच्चा माल का आधार भी मजबूत है। इस्पात का उत्पादन अन्य सभी अलौह पदार्थों के कुल उत्पादन से भी 20 गुना अधिक है।सब मिलाकर इस्पात के लगभग 2000 किस्मों का विकास हुआ है जिसमें 1500 प्रकार के इस्पात उच्च ग्रेड के हैं। तथापि विभिन्न प्रकार के गुणधर्म वाले इस्पात के नये ग्रेडों के विकास की असीम संभावनाएँ हैं।

हमारे जीवन में इस्पात के उपयोग का महत्वपूर्ण स्थान है और आने वाले वर्षों में इसका उपयोग होता रहेगा। इस्पात एक कारण से हमारे जीवन में हर जगह है। इस्पात एक महान सहयोगी है, जो वृद्धि और विकास को आगे बढ़ाने के लिए अन्य सभी सामग्रियों के साथ मिलकर काम कर रहा है। इस्पात पिछले 100 वर्षों की प्रगति की नींव है। अगली 100 चुनौतियों का सामना करने के लिए भी इस्पात उतना ही तैयार है।एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था को एक स्वस्थ इस्पात उद्योग की आवश्यकता होती है जो रोजगार प्रदान करे और विकास को आगे बढ़ाए। प्रति व्यक्ति औसत विश्व इस्पात उपयोग 2001 में 150 किलोग्राम से लगातार बढ़कर 2020 में लगभग 230 किलोग्राम तक पहुंच चुका है, जिससे दुनिया अधिक समृद्ध हो गई है।

इस्पात का उपयोग हर महत्वपूर्ण उद्योग में किया जाता है; ऊर्जा, निर्माण, ऑटोमोटिव और परिवहन, बुनियादी ढाँचा, पैकेजिंग और मशीनरी। 2050 तक, हमारी बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए इस्पात का उपयोग वर्तमान स्तर की तुलना में लगभग 20% बढ़ने का अनुमान है। गगनचुंबी इमारतें इस्पात से ही संभव होती हैं। आवास और निर्माण क्षेत्र आज इस्पात का सबसे बड़ा उपभोक्ता है, जो उत्पादित इस्पात का 50% से अधिक उपयोग करता है। विश्व स्तर पर, 60 लाख से अधिक लोग इस्पात उद्योग के लिए काम करते हैं।

इस्पात उद्योग पर्यावरणीय जिम्मेदारी से समझौता नहीं करता है। इस्पात दुनिया की सबसे अधिक पुनर्चक्रित सामग्री है और 100% पुनर्चक्रण योग्य है। इस्पात कालातीत है। हमने इस्पात उत्पादन तकनीक में उस स्तर तक सुधार किया है जहां केवल विज्ञान की सीमाएं ही सुधार करने की हमारी क्षमता को सीमित करती है। हमें इन सीमाओं को आगे बढ़ाने के लिए एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता है। चूँकि दुनिया अपनी पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान ढूंढ रही है, ये सभी इस्पात पर निर्भर हैं।

इस्पात उद्योग में उपयोग किए जाने वाले लगभग 90% पानी को साफ किया जाता है, ठंडा किया जाता है और स्रोत में वापस कर दिया जाता है। सबसे अधिक हानि वाष्पीकरण के कारण होती है। नदियों और अन्य स्रोतों में लौटाया गया पानी अक्सर निकाले जाने की तुलना में अधिक स्वच्छ होता है।पिछले 50 वर्षों में एक टन इस्पात का उत्पादन करने के लिए उपयोग की जाने वाली ऊर्जा में लगभग 60% की कमी आई है। इस्पात दुनिया में सबसे अधिक पुनर्नवीनीकृत सामग्री है, 2021 में लगभग 6800 लाख टन का पुनर्चक्रण किया गया।

2021 में, इस्पात उद्योग के सह-उत्पादों की पुनर्प्राप्ति और उपयोग विश्वव्यापी सामग्री दक्षता दर 97.34 फीसद तक पहुंच गई है। इस्पात नवीकरणीय ऊर्जा प्रदान करने में उपयोग की जाने वाली मुख्य सामग्री है, सौर, ज्वारीय, भूतापीय और पवन ऊर्जा। बावजूद इन सबके कार्बन डाइऑक्साइड के उत्पादन में इस्पात उद्योग तीन सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है। इस्पात निर्माण किसी भी अन्य भारी उद्योग की तुलना में अधिक कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन करता है जिसमें कुल वैश्विक उत्सर्जन का लगभग 8 फीसद शामिल है। नतीजतन, दुनिया भर में इस्पात व्यापारियों को पर्यावरण तथा आर्थिक दोनों दृष्टिकोण से अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए डीकार्बनाइज़ेशन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। तब नए हरित इस्पात उत्पादन की अवधारणा ने जन्म लिया है।

हरित इस्पात का आशय जीवाश्म ईंधन के उपयोग के बिना इस्पात के निर्माण से है। इस्पात मंत्रालय हरित इस्पात को बढ़ावा देकर इस्पात उद्योग में कारण उत्सर्जन कम करना चाहता है यह अंततः हरित घर प्रभाव के लिए जिम्मेदार गैस उत्सर्जन को कम करता है लागत में कटौती करता है और इस्पात की गुणवत्ता में सुधार करता है। हरित इस्पात कोयले से चलने वाले संयंत्रों के पारंपरिक कार्बन गहन निर्माण मार्ग के बजाय नवीकरणीय या निम्न कार्बन ऊर्जा स्रोतों जैसे हाइड्रोजन गैसीकरण या बिजली का उपयोग करके इस्पात का निर्माण है। यहां यह बताना उचित होगा कि इस्पात उद्योग प्रदूषण पैदा करता है क्योंकि यह कोयला और लौह अयस्क का उपयोग करता है जिनके दहन से विभिन्न पाली साइक्लिक एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन (पीएएच)यौगिक तथा ऑक्साइड हवा में उत्सर्जित होते हैं।

इस्पात उत्पादक इकाइयों से निकलने वाले प्रदूषण हैं कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर के ऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइड, पीएम 2.5, अपशिष्ट जल, खतरनाक अपशिष्ट , ठोस अपशिष्ट। कम कार्बन हाइड्रोजन (नीली हाइड्रोजन और हरित हाइड्रोजन) इस्पात उद्योग के कार्बन फुटप्रिंट को कम करने में मदद कर सकती है। अधिक स्वच्छ विकल्पों के साथ प्राथमिक उत्पादन प्रक्रियाओं को प्रतिस्थापित करना कम कार्बन हाइड्रोजन के साथ ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों का प्रयोग, लोह अयस्क के विद्युत अपघटन के माध्यम से प्रत्यक्ष विद्युतीकरण हरित इस्पात उत्पादन के अंग हैं।

संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन कॉप (सीओपी)26 में की गई प्रतिबद्धताओं के मध्य नजर भारतीय इस्पात उद्योग को वर्ष 2030 तक अपने उत्सर्जन को काफी हद तक कम करने और वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन तक पहुंचाने की आवश्यकता है, और वैसे भी यूरोपीय संघ 1 जनवरी 2026 से इस्पात, एल्यूमीनियम, सीमेंट, उर्वरक, हाइड्रोजन और विद्युत की प्रत्येक खेप पर कार्बन टैक्स (कार्बन सीमा समायोजन तंत्र) एकत्र करना शुरू कर देगा। यह भारत द्वारा यूरोपीय संघ को लौह, इस्पात तथा एल्युमीनियम उत्पादों जैसे धातुओं के निर्यात को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा, क्योंकि इन्हें इन उत्पादों को यूरोपीय संघ के “सीबीएएम” तंत्र के तहत अतिरिक्त जाँच प्रक्रियाओं का सामना करना पड़ेगा। सीबीएएम,”फिट फॉर 55 इन 2030 पैकेज” का हिस्सा है, यह यूरोपीय संघ की एक योजना है जिसका उद्देश्य यूरोपीय जलवायु कानून के अनुरूप वर्ष 1990 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को लगभग 55% तक कम करना है।

हरित इस्पात उद्योग के लिए कई सरकारी पहलें की गई हैं जैसे, राष्ट्रीय इस्पात नीति (एन एस पी) 2017, इस्पात स्क्रैप पुनर्चक्रण नीति, चौथी औद्योगिक क्रांति को अपनाना (उद्योग 4.0), भारत का इस्पात अनुसंधान और प्रौद्योगिकी मिशन, ड्राफ्ट फ्रेमवर्क नीति, स्पेशियालिटी इस्पात के लिए पीएलआई योजना, सम्मलित हैं। हाल ही में आईएसए (इंडियन स्टील अथॉरिटी) इस्पात कॉन्क्लेव 2023′ का चौथा संस्करण आयोजित किया गया था, जिसमें इस्पात कंपनियों को अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए प्रेरित किया गया।

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इस कार्यक्रम में भारत की वृद्धि और विकास में इस्पात उद्योग की बहुमुखी भूमिका को रेखांकित करते हुए ‘स्टील शेपिंग द सस्टेनेबल फ्यूचर’ विषय पर चर्चा की गई थी। वित्त वर्ष 2023 में 1253.2 लाख टन कच्चे इस्पात का उत्पादन और 121.29 मीट्रिक टन उपयोग के लिए तैयार इस्पात उत्पादन के साथ भारत कच्चे इस्पात के मामले में विश्व का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत में इस्पात उद्योग में पिछले दशक में पर्याप्त वृद्धि हुई है, वर्ष 2008 के बाद से इसके उत्पादन में 75 फीसद की वृद्धि हुई है। वित्त वर्ष 2023 में भारत में इस्पात की प्रति व्यक्ति खपत 86.7 किलोग्राम है। लौह अयस्क जैसे कच्चे माल की उपलब्धता और लागत प्रभावी श्रमबल की भारत के इस्पात उद्योग में अहम भूमिका रही है।

2017 में शुरू की गई राष्ट्रीय इस्पात नीति के अनुसार, भारत का लक्ष्य वर्ष 2030-31 तक कच्चे इस्पात की क्षमता को 3000 लाख टन और उत्पादन क्षमता को 255 मीट्रिक टन तथा प्रति व्यक्ति तैयार मज़बूत इस्पात की खपत को 158 किलोग्राम तक पहुँचाना है। विश्व के औसत 233 किलोग्राम की तुलना में भारत में प्रति व्यक्ति इस्पात की खपत 86.7 किलोग्राम है, जो आर्थिक असमानताओं को स्पष्ट रूप से दर्शाता है। प्रति व्यक्ति की कम आय और खपत वाली अर्थव्यवस्थाओं के लिए बड़े पैमाने पर इस्पात संयंत्र की स्थापना करना कम लाभदायक होता है। प्रति व्यक्ति आय काफी अधिक होने के कारण चीन में इस्पात की अधिक मांग होती है, जो वहाँ की अर्थव्यवस्था की सुदृढ़ता को दर्शाती है।

भारत ऐतिहासिक रूप से इस्पात क्षेत्र के लिए प्रौद्योगिकी, अनुसंधान और विकास में निवेश करने में पीछे रहा है। इससे अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान और प्रौद्योगिकी पर निर्भरता बढ़ती है, जिससे अतिरिक्त लागत में वृद्धि होती है। पुरानी तथा प्रदूषणकारी प्रौद्योगिकियाँ इस क्षेत्र को कम आकर्षक बनाती हैं। आधुनिक इस्पात निर्माण संयंत्रों की स्थापना के लिए अत्यधिक निवेश एक बड़ी बाधा है। 1 टन क्षमता वाले संयंत्र की स्थापना में लगभग 7 हजार करोड़ रुपए की लागत विभिन्न भारतीय संस्थाओं के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती है। अन्य देशों की तुलना में भारत में महँगे वित्तीयन एवं ऋण वित्तपोषण पर निर्भरता के कारण उत्पाद की लागत में वृद्धि होती है, जिससे वैश्विक स्तर पर अंततः तैयार इस्पात उत्पाद को लेकर प्रतिस्पर्द्धा कम हो जाती है।

भारत में इस्पात की चक्रीय मांग के परिणामस्वरूप इस्पात कंपनियों को वित्तीय कठिनाइयाँ का सामना करना पड़ता है, मानसून जैसे तत्त्वों के कारण निर्माण कार्य की गति प्रभावित होती है। कम मांग की अवधि के दौरान इस्पात संयंत्रों की आय और लाभ न्यूनतम होते हैं, जिससे वित्तीय दबाव बढ़ता है, कई मामलों में विनिर्माण कार्य को बंद और स्थगित भी करना पड़ता है। इन सब अवरोधों के बाद भी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाए रखने हेतु अधोसंरचना का विकास भी अति आवश्यक है। इस्पात उद्योग का विकाश भी अपरिहार्य है। भारत सरकार के केंद्रीय इस्पात व उड्डयन मंत्री ने भी कई बार हरित इस्पात पहल को बढ़ावा देने की बात दोहराई है।

इस्पात (स्टील) बनाने में 50% स्क्रैप उपयोग का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। सरकार का हरित इस्पात पहल को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2047 तक स्टील बनाने की प्रक्रिया में कबाड़ की हिस्सेदारी बढ़ाकर 50 प्रतिशत तक करने का लक्ष्य है। इस्पात विनिर्माण में कबाड़ का उपयोग बढ़ाने की बात कही गई है, इसका कारण कबाड़ और अन्य अपशिष्ट उत्पादों के माध्यम से धातु के विनिर्माण से प्रदूषण कम फैलता है। यह हरित इस्पात पहल की दिशा में महत्वपूर्ण कदम होगा।

11वें अंतरराष्ट्रीय सामग्री पुनर्चक्रण सम्मेलन को वर्चुअल(आभासी)माध्यम से संबोधित करते हुए केंद्रीय इस्पात मंत्री ने कहा था कि इस्पात मंत्रालय के दृष्टिकोण पत्र 2047 के अनुसार अगले 25 साल में कबाड़ का प्रतिशत 50 प्रतिशत होगा और शेष 50 प्रतिशत लौह अयस्क के रूप में होगा। विशेषज्ञों के अनुसार कबाड़ का उपयोग न केवल प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग को कम करता है, बल्कि इस्पात विनिर्माण में कार्बन उत्सर्जन में 25 प्रतिशत की कटौती करता है। कार्बन उत्सर्जन को कम करने और हरित इस्पात का उत्पादन करने के लिए भविष्य में अधिक कबाड़ की आवश्यकता होगी, इसके लिए पर्यावरण अनुकूल औपचारिक कबाड़ केंद्रों की जरूरत होगी।

आज देश में लगभग 2.5 करोड़ टन कबाड़ का उत्पादन होता है और लगभग 50 लाख टन का आयात किया जाता है। आगे हरित इस्पात उत्पादन में देशी कबाड़ का 100 फीसद उपयोग किए जाने की संभावना है। रिसाइक्लिंग मटेरियल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष के अनुसार “वर्तमान में देश के कुल इस्पात उत्पादन में कबाड़ का योगदान लगभग 30 से 35 प्रतिशत है। अपनी विशाल आबादी और पर्यावरण को लेकर बढ़ती जागरूकता को देखते हुए, भारत में पुनर्चक्रण में वैश्विक अगुवा बनने की क्षमता है।”

सतत विकास के लिए वैश्विक तापमान कम करने के लिए लौह इस्पात से हरित इस्पात की ओर कदम बढ़ाना सलाह नहीं चेतावनी है। हरित इस्पात पर्यावरण के बेहद अनुकूल भी है।

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