भारत में बीमा समावेशिता बढ़ाने की आवश्यकता

शिक्षा का अधिकार अधिनियम और स्कूलों का विलय
डॉ. रामानुज पाठक, सतना
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भारत सरकार की मंशानुसार, भारत के बीमा क्षेत्र के नियामक के प्रमुख द्वारा 2047 तक सभी का बीमा, अर्थात सार्वभौमिक बीमा (ऑल इन वन बीमा पॉलिसी) करने का इरादा किया गया है। इसके साथ ही, प्रतिकूल झटकों के जोखिमों को दृष्टिगत रखते हुए, आबादी के एक बड़े हिस्से को बीमा के दायरे में लाने का नया खाका पेश किया गया है, जिसे ‘बीमा वाहक योजना’ नाम दिया गया है।बीमा वाहक का लक्ष्य स्थानीय आबादी के साथ जुड़कर देश के प्रत्येक क्षेत्र में बीमा की पहुँच और जागरूकता को बढ़ाना है। बीमा वाहक पहल से ही भारत भर में प्रत्येक ग्राम पंचायत में लोगों की विविध आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को पूरा करने हेतु बीमा समावेशन को बढ़ाने, जागरूकता बढ़ाने, और बीमा प्रस्तावों को अपनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान करेगा।

वैश्विक महामारी कोविड-19 के बाद, बीमा के प्रति लोगों की धारणा बदल रही है और अब लोग इसे स्वीकार करने लगे हैं। वास्तव में, बीमा “आग्रह” की वस्तु है, यह बात दीगर है कि बीमा कंपनियां अक्सर बीमा उत्पाद को “डर” की वस्तु बनाकर बेंचती रही हैं। एक और बात है कि आम भारतीय बीमा को “बचत” की दृष्टि से देखता रहा है, जबकि बीमा को “सुरक्षा” की दृष्टि से देखा जाना चाहिए था। कोविड महामारी के बाद बीमा को “सुरक्षा और बचत” दोनों दृष्टि से देखा जाने लगा है।

भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) द्वारा देश के “व्यापक सुरक्षा अंतराल” को पाटने के मकसद से किए जा रहे इस “यूपीआई-जैसे पल” का केन्द्रबिंदु एक सरल ‘ऑल-इन-वन’ बीमा पॉलिसी की परिकल्पना है। जीवन और आम बीमाकर्ताओं के वास्ते तैयार की जा रही यह समग्र ‘बीमा विस्तार’ योजना लोगों को चिकित्सकीय आपात स्थिति, दुर्घटना, चोरी या परिवार में किसी की मृत्यु की स्थिति में शीघ्र मौद्रिक (आर्थिक) सहायता प्रदान करेगी।

बीमा के फायदों के बारे में जागरूकता अभी भी काफी कम है, इस मद्देनजर, नियामक ने हर घर की महिला मुखिया को संकट के समय ऐसी योजना के काम आ सकने के बारे में शिक्षित करने के लिए एक महिला-नेतृत्व वाली ग्राम सभा-स्तरीय पहल का प्रस्ताव दिया है। ‘बीमा सुगम’ नाम का एक नया प्लेटफॉर्म बीमा कंपनियों एवं वितरकों को एकीकृत करेगा ताकि ग्राहकों को शुरुआत में एक ही छत के नीचे सारी खरीदारी (वन-स्टॉप शॉप) का अनुभव दिया जा सके और आगे चलकर दावों के निपटारे संबंधी सेवा को सुविधाजनक बनाया जा सके। नियामक का मानना है कि राज्यों की डिजिटल मृत्यु रजिस्ट्रियों को इस प्लेटफॉर्म से जोड़ने से जीवन बीमा के दावों को चंद घंटों या एक दिन में ही निपटाया जा सकेगा।

पूंजी संबंधी जरूरतों से जुड़े मानदंडों को आसान बनाने और नई कंपनियों को बाजार में प्रवेश देने वाला एवं विशेष क्षेत्रों की अनछुई जरूरतों को पूरा करने की इजाजत देने के लिए एक विधायी पहल भी विचाराधीन है। एक समय मरणासन्न हालत में पहुंच चुके सार्वजनिक क्षेत्र की अगुवाई वाले इस उद्योग में निजी कंपनियों के प्रवेश के दो दशक बाद, भारत की बीमा पैठ (जीडीपी के बरक्स प्रीमियम भुगतान का अनुपात) बढ़ी है और यह 2001-02 में 2.7 फीसदी से बढ़कर 2021-22 में 4.2 फीसदी हो गई थी। दरअसल, 2009-10 में 5.2 फीसदी के स्तर से पिछले एक दशक में मात्रात्मक गिरावट आई है और गैर-जीवन बीमा पॉलिसियों का अभी एक फीसदी का आंकड़ा पार करना बाकी है।

भारत में बीमा समावेशिता बढ़ाने की आवश्यकता

भारत की विशाल आबादी और वित्तीय साक्षरता के खराब स्तरों को देखते हुए, यथास्थिति से आगे बढ़ने की अनिवार्यता निर्विवाद है। इस कवायद में राज्य सरकारों को शामिल करने और राज्य-स्तरीय बैंकिंग समितियों के समान निकाय स्थापित करने के भारतीय बीमा नियामक विकास प्राधिकरण(आईआरडीएआई )के कदम से जागरूकता और दायरे के स्तर को बढ़ाने के लिए जिलेवार रणनीति बनाने में मदद मिलेगी। इस उद्योग से जुड़ी कंपनियों को भी बड़े शहरों से परे देखने की जरूरत है और ‘बीमा विस्तार’ योजना उस मात्रा को उत्प्रेरित कर सकती है जिनकी उन्हें सुविधाजनक क्षेत्र से बाहर जाकर हासिल करने की जरूरत है।

इन सबसे भी आगे बढ़कर, केन्द्र सरकार को स्वास्थ्य और जीवन बीमा प्रीमियम पर 18 फीसदी के जीएसटी शुल्क पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। स्वास्थ्य संबंधी सुरक्षा खरीद सकने वाले लोग इतना ज्यादा कर चुका सकते हैं, यह धारणा एक ऐसे देश में बेमानी है जहां स्वास्थ्य संबंधी एक आपदा किसी परिवार को गरीबी रेखा से नीचे धकेल दे सकती है।भारत अगले दशक में दुनिया का छठा सबसे बड़ा बीमा बाजार बनने की राह पर है, जहाँ सामान्य स्थानीय मुद्रा के संदर्भ में बीमा प्रीमियम प्रति वर्ष 14 फीसदी के औसत से बढ़ रहा है। हालाँकि, बीमा क्षेत्र को कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ रहा है जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है। बीमा व्यवसाय में भारत का स्थान विश्व में दसवाँ है। वैश्विक जीवन बीमा बाजार में भारत का अंश 2019 के दौरान 2.73 था। पिछले वर्ष की तुलना में भारत में जीवन बीमा प्रीमियम 9.63 प्रतिशत बढ़ा जबकि वैश्विक जीवन बीमा प्रीमियम में 1.18 फीसदी वृद्धि हुई।

गैर-जीवन बीमा व्यवसाय में भारत का स्थान विश्व में 15वाँ है। वैश्विक गैर-जीवन बीमा बाजार में भारत का अंश 2019 के दौरान 0.79 फीसद था। पिछले वर्ष की तुलना में भारत में गैर-जीवन बीमा प्रीमियम 7.98 फीसद बढ़ा जबकि वैश्विक गैर-जीवन बीमा प्रीमियम में 3.35 फीसद वृद्धि हुई। 2019 के दौरान वैश्विक तौर पर कुल प्रीमियम में जीवन बीमा प्रीमियम का अंश 46.34 फीसद था तथा गैर-जीवन बीमा प्रीमियम 53.66 फीसद था। तथापि, भारत के लिए जीवन बीमा व्यवसाय का अंश 74.94 फीसद पर अत्यधिक रहा जबकि गैर-जीवन बीमा व्यवसाय का अंश 25.06 फीसद था।

बीमा व्यापन और सघनता दो मापीय आधार हैं जिनका उपयोग किसी भी देश में बीमा क्षेत्र के विकास के स्तर का निर्धारण करने के लिए अन्य बातों के बीच प्रायः किया जाता है। जबकि बीमा व्यापन का मापन जीडीपी की तुलना में बीमा प्रीमियमों के प्रतिशत के तौर पर किया जाता है, बीमा सघनता का परिकलन जनसंख्या की तुलना में प्रीमियमों केअनुपात (प्रति व्यक्ति प्रीमियम) के रूप में किया जाता है।

बीमा व्यापन जो 2001 में 2.71 फीसद था, लगातार बढ़कर 2019 में 3.76 फीसद हो गया है (जीवन 2.82 फीसद और गैर-जीवन 0.94 फीसद)। इसी वर्ष के दौरान बीमा व्यापन एशिया की कुछ उभरती अर्थव्यवस्थाओँ अर्थात् मलेशिया, थाईलैंड और चीन में क्रमशः 4.72, 4.99 और 4.30 फीसद था। भारत में बीमा सघनता 2001 में 11.5 अमेरिकी डालर थी, जो 2019 में 78 अमेरिकी डालर तक पहुँच गई ।वैश्विक तौर पर बीमा व्यापन और सघनता 2019 में क्रमशः जीवन खंड के लिए 3.35 फीसद और 379 अमेरिकी डालर तथा गैर-जीवन खंड के लिए 3.88 फीसद और 439 अमेरिकी डालर थी। (स्रोतः स्विस सिगमा के विभिन्न अंक)

राजकोषीय वर्ष 2019-20 के दौरान, जीवन बीमा उद्योग ने पिछले वित्तीय वर्ष के रु. 5,08,132 करोड़ की तुलना में 12.75 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए रु. 5,72,910 करोड़ की प्रीमियम आय अभिलिखित की है। जबकि नवीकरण प्रीमियम जीवन बीमाकर्ताओं द्वारा प्राप्त कुल प्रीमियम के 54.75 फीसद के लिए कारण रहा है, नये व्यवसाय ने शेष 45.25 फीसद का अंशदान किया है।अन्य देशों की तुलना में भारत में बीमा प्रवेश दर निम्न है। यह बीमा के प्रति कम जागरूकता और उसके प्रति लोगों में भरोसे की कमी के कारण है। भारत की लगभग 65फीसदी आबादी (90 करोड़ से अधिक) देश के ग्रामीण भागों में निवास करती है। लेकिन ग्रामीण भारत के केवल 8-10 फीसद को ही जीवन बीमा कवरेज प्राप्त है।

भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आई आर डी ए आई) के अनुसार, भारतीय बीमा उद्योग की पैठ सकल घरेलू उत्पाद के 5फीसदी से भी कम है। पैठ के मामले में भारत वैश्विक औसत (सकल घरेलू उत्पाद के 7फीसद) से बहुत पीछे है। भारत में बीमा क्षेत्र उत्पाद नवाचार में सुस्त रहा है। कई बीमा कंपनियाँ लगभग एक जैसे उत्पादों की पेशकश करती हैं, जिससे बाज़ार में विविधता की कमी की स्थिति बनती है। भारत में बीमा क्षेत्र में धोखाधड़ी, एक बड़ी चुनौती है। बीमा धोखाधड़ी में झूठे दावे, गलत बयानी और अन्य अवैध गतिविधियाँ शामिल हैं।

राष्ट्रीय बीमा अकादमी की रपट में जलवायु संबंधी आपदाओं के लिए बीमा प्रसार पर जोर देने को कहा गया है। उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में अनिवार्य प्राकृतिक आपदा बीमा की जरूरत है। सरकार और बीमा नियामक के प्रयासों के बावजूद देश की लगभग 95 फीसदी आबादी का बीमा नहीं है। राष्ट्रीय बीमा अकादमी ने हाल ही में जारी एक रपट में यह जानकारी दी। रपट के मुताबिक, देश की 144 करोड़ आबादी में 95 फीसदी आबादी बीमा के दायरे में नहीं है। देश में आने वाली प्राकृतिक आपदाओं और अन्य जलवायु संबंधी आपदाओं की संख्या में वृद्धि के मद्देनजर बीमा प्रसार को बढ़ाना महत्वपूर्ण है। भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (इरडा) के अध्यक्ष ने यह रपट जारी करते हुए कहा था कि बीमा उद्योग उन कदमों का अनुकरण करे, जिनकी मदद से यूपीआई, बैंक खाते खोलने और साथ ही मोबाइल पहुंच बढ़ाने में भारी सफलता मिल चुकी है।

साथ ही उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में एक अनिवार्य प्राकृतिक आपदा बीमा की जरूरत है और इस रपट में इसकी सिफारिश भी की गई है। सभी के लिए बीमा के लक्ष्य को हासिल करने के लिए ऐसा करना जरूरी है। रपट में यह भी चौकाने वाला तथ्य सामने आया है कि तटीय क्षेत्रों में 77 फीसद के पास बीमा नहीं है। रपट में कहा गया है कि निम्न और मध्यम आय वर्ग के 84 फीसद लोगों और तटीय क्षेत्रों, दूसरी और तीसरी श्रेणी के शहरों के 77 फीसद लोगों के पास बीमा का अभाव है। रपट के मुताबिक, 73 फीसदी आबादी स्वास्थ्य बीमा के दायरे में नहीं है और इस दिशा में सरकार, गैर सरकारी संगठनों और उद्योग समूहों के बीच सहयोग बढ़ने की जरूरत है।

भारत में जीवन बीमा उद्योग का स्वर्णिम भविष्य है, जिसमें अनुकूल जनसाख्यिकी सर्वाधिक बड़ा कारक है। भारत की 68 फीसदी आबादी युवा है, और वर्ष 2020 में इसकी 55 फीसदी आबादी 20-59 आयु वर्ग (कार्यशील आबादी) में थी, जबकि 2025 तक कुल आबादी का 56 फीसदी कार्यशील आबादी तक पहुंचने का अनुमान है। ये एक युवा बीमा की ओर इशारा करते हैं जो भारत में जनसंख्या के व्यापक मध्यवर्गीय विस्तार को दर्शाता है।

2030 तक, भारत में 1 हजार 400 लाख मध्यम-आय वाले और 210 लाख उच्च-आय वाले घर जुड़ जाएंगे, जो भारतीय बीमा क्षेत्र की मांग और वृद्धि को बढ़ावा देंगे। डिजिटल व्यवहार पैटर्न में परिवर्तन के साथ, ग्राहक अब अपनी बीमा जरूरतों के लिए डिजिटल मोड को प्राथमिकता देना शुरू कर रहे हैं। भारत दूसरा सबसे बड़ा इंटरनेट उपयोगकर्ता बाजार है और 2026 तक अनुमान है कि 1 अरब इंटरनेट उपयोगकर्ता बढ़ जाएंगे। इंटरनेट की सहायता से बीमा उत्पाद आम जन को आसानी से विक्रय किए जा सकेंगे।

एक चौंकाने वाला तथ्य यह है कि मौजूदा समय में देश भर में आने वाली कुल उपभोक्ता शिकायतों का पांचवा हिस्सा बीमा क्षेत्र से संबंधित है, और बीमा पॉलिसी के नियमों और शर्तों को सरल, स्पष्ट और समझने योग्य भाषा में बनाए जाने पर उपभोक्ता विवादों में कमी लाई जा सकती है। भारतीय जीवन बीमा निगम दुनिया की चौथी सबसे बड़ी बीमा कंपनी है, और इसने आर्थिक उदारीकरण के एक दशक के बाद वर्ष 2000 में पहली बार निजी क्षेत्र को बीमा के लिए खोला गया था।

भारतीय जीवन बीमा निगम का नगदी भंडार 504 अरब डॉलर से अधिक है, और यह जानते हैं कि भारतीय जीवन बीमा निगम सार्वजनिक क्षेत्र की एकमात्र जीवन बीमा कंपनी है जो बीमा क्षेत्र में लाभ कमा रही है। इसकी रैंकिंग में एस एंड पी ग्लोबल मार्केटिंग इंटेलिजेंस के अनुसार, भारतीय जीवन बीमा निगम दुनिया की चौथी सबसे बड़ी बीमा कंपनी है। आर्थिक उदारीकरण के एक दशक के बाद वर्ष 2000 में पहली बार निजी क्षेत्र को बीमा के लिए खोला गया था। एक दुखद पहलू यह है कि भारतीय स्टेट बैंक जीवन बीमा की रिपोर्ट का दावा है कि बीते 5 साल के दौरान 47 फीसदी लोगों ने जीवन बीमा पॉलिसी सरेंडर (समर्पण) कर दी है। राष्ट्रीय बीमा अकादमी के अनुसार 100 व्यक्ति में सिर्फ 13 के पास पर्याप्त जीवन बीमा है।

जलवायु संबंधी आपदाओं के लिए बीमा प्रसार अत्यधिक आवश्यक है। सुकून की बात यह है कि प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, जो भारत सरकार की एक दुर्घटना बीमा योजना है, इसके तहत किसी दुर्घटना के समय मृत्यु या अपंग होने पर बीमा के राशि के लिए दावा किया जा सकता है। इसमें 2 लाख तक का बीमा जोखिम शामिल है। वहीं, राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना चिकित्सा आपात स्थिति में गरीबी रेखा के नीचे के परिवारों को मददगार साबित हुई है, तथा आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बीमा योजना ने तो स्वास्थ्य बीमा के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी बदलाव लाया है। 2018 से प्रारंभ आयुष्मान भारत योजना में देश में एक लाख हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर स्थापित करने एवं 10 करोड़ परिवारों को 5 लाख प्रतिवर्ष के स्वास्थ्य बीमा कवच से जोड़ने का उद्देश्य रखा गया है। दिसंबर 2023 तक लगभग 3 करोड़ 71 लाख 32 हजार 311 आयुष्मान कार्ड बनाए जा चुके हैं। वहीं, 33 लाख 49 हजार 441 लाभार्थी इस योजना का लाभ ले चुके हैं, तथा 480 निजी चिकित्सालय सहित 500 शासकीय चिकित्सालयों में आयुष्मान कार्ड धारी व्यक्तियों का उपचार किया जा रहा है।

राष्ट्रीय बीमा अकादमी एवं बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण, जो भारत में बीमा क्षेत्र की देखरेख करने वाली सर्वोच्च संस्थाएं हैं, इन का मुख्य उद्देश्य बीमा धारकों के हितों की रक्षा करना और बीमा उद्योग को नियंत्रित करना है। इनकी मान्यता है कि बीमा वाहक योजना के द्वारा सन 2047, जब भारत विकसित राष्ट्र का दर्जा प्राप्त कर लेगा, तब सार्वभौमिक बीमा, अर्थात सभी के लिए बीमा सर्व सुलभ हो सके। बीमा आम का सबको व्यापक वित्तीय सुरक्षा प्रदान करें तथा आमजन अपनी संपत्ति की सुरक्षा के लिए बीमा का विकल्प चुन सके। ताकि कोई अप्रत्याशित स्थितियां, आपदा की स्थिति में अपने परिवार की खुशहाली को कायम रख सके और बीमा का ध्येय वाक्य “सुरक्षा और बचत” यथार्थ रूप में परिणित हो सके।

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