सामाजिक समरसता का पर्व होली

गणतंत्र दिवस
प्रो. रवीन्द्र नाथ तिवारी 
( क्षेत्रीय निदेशक, म.प्र. भोज (मुक्त) विश्वविद्यालय )

सामाजिक और सांस्कृतिक पर्व राष्ट्र की जीवंतता, निरंतरता एवं देश की पहचान के शाश्वत अंग हैं। खिलखिलाती प्रकृति के साथ मनाए जाने वाला होली पर्व हमारा शाश्वत त्यौहार ही है, जो परस्पर राग-द्वेष, वैमनस्यता के भाव को समाप्त कर सामुदायिक बहुलता में सामाजिक समरसता का भाव प्रवाहित करता है। जब हम विविधता में एकता की बात करते हैं तो उसके मूल में सामाजिक समरसता का ही भाव रहता है। सामाजिक समरसता के मुख्य घटक शांतिपूर्ण सहअस्तित्व, सहिष्णुता, सहयोग, बंधुत्व, आत्मीयता, सर्वहित और पारस्परिक निर्भरता है। भारत में प्राचीन काल से ही विभिन्न धार्मिक एवं सामाजिक कार्यक्रम जैसे यज्ञ, अनुष्ठान एवं पर्व, समाज में समरसता स्थापित करते रहे हैं। इन पर्वों में सभी के सहयोग के कारण समाज में समरसता बढ़ती है। विभिन्न प्रकार के धार्मिक ग्रंथ जैसे वेद, पुराण, उपनिषद् आदि मनुष्य को एक-दूसरे प्रति सद्भावना एवं प्रेम करना सिखाते हैं।

भारत में प्राचीन काल से ही संयुक्त परिवार प्रथा प्रचलन में रही है, जो लोगों में भावनात्मक सहयोग, चरित्र निर्माण एवं भावी पीढ़ी के समुचित विकास में सहायक रही है। भारत त्योहारों और उत्सवों का देश है। यह लगभग 121 भाषाएँ, 1652 बोलियाँ एवं 06 ऋतुओं वाला देश है जो विश्व पटल पर विविधता का अद्वितीय एवं सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है। भारत के प्रमुख त्योहारों में विशेष रूप से इंद्रधनुषी छटा बिखेरने वाला होली पर्व दुनिया का एकमात्र ऐसा त्योहार है जो सामुदायिक बहुलता में समरसता से जुड़ा है। इस पर्व में परस्पर मेल-मिलाप का जो आत्मीय भाव अंतर्मन में उमड़ता है वह सांप्रदायिक और जातीय भेदभाव को मिटाकर, सद्भाव उत्पन्न करता है।

होली वसंत ऋतु में फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला पर्व है। यह पर्व वसंत का संदेशवाहक है तथा पर्व के प्रमुख अंग हैं राग और संगीत। होली पर्व बसंत पंचमी से प्रारम्भ होकर शीतलाष्टमी के साथ संपन्न होता है। इस पर्व में भारतीय परिवार के तात्विक दर्शन की भावना अंतर्निहित है, अर्थात् होली सांस्कृतिक महत्व के दर्शन नैतिक, धार्मिक और सामाजिक आदर्शों को मिलाकर सामाजिक समरसता स्थापित करने का कार्य करती है। होली पर्व में कृषि, समाज, अर्थ और सद्भाव के आयाम का एक मिश्रण है इसलिए यह सृजन के बहुआयामों से जुड़ा होने के साथ-साथ सामुदायिक बहुलता के आयाम से भी जुड़ा है।

वैदिक काल में होली पर्व को नवान्नेष्टि यज्ञ कहा गया है क्योंकि यह वह समय होता है जब खेतों से पका अनाज काटकर घरों में लाया जाता है। जलती होली में जौ और गेहूं की बालियां तथा चने के बूटे भूनकर प्रसाद के रूप में बांटे जाते हैं। यह लोक-विधान, अन्न के परिपक्व और आहार के योग्य हो जाने का प्रमाण है इसलिए वेदों में इसे नवान्नेष्टि यज्ञ कहा गया है। होली का पर्व हिरण्यकश्यप की बहन होलिका से जुड़ा है। होलिका को भगवान ब्रह्मा जी द्वारा आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। होली को बुराई पर अच्छाई के प्रतीक रूप में माना जाता है इसलिए जब वह अपने भतीजे प्रहलाद को विकृत एवं क्रूर मानसिकता के चलते गोद में बैठाकर प्रज्वलित आग में प्रविष्ट हुई तो खुद जलकर खाक हो गई, लेकिन भक्त प्रहलाद बच गए।

होली का सांस्कृतिक महत्व ‘मधु’ अर्थात ‘मदन’ से भी जुड़ा है इसलिये होली को ‘मदनोत्सव’ भी कहा गया है। हिंदी साहित्य में इस मदनोत्सव को वसंत ऋऋतु का प्रेमाख्यान माना गया है। यह एक ऐसा समय होता है जब प्रकृति अपने प्राकृतिक परिवेश में नई वनस्पतियों को रचती है। होली के दिन सभी लोग अपने पुराने गिले- शिकवे भूलकर गले मिलते हैं और एक-दूसरे को गुलाल लगाकर आपसी भाईचारे व सौहार्द का संदेश देते हैं। होली का त्यौहार राधा और कृष्ण की प्रेम कहानी से भी जुड़ा हुआ है। होली के दिन वृन्दावन, राधा और कृष्ण के इसी रंग में डूबा हुआ होता है। होली का वर्णन जैमिनि के पूर्वमीमांसा सूत्र और कथक ग्रहय सूत्र में भी है। प्राचीन भारत के मंदिरों की दीवारों पर भी होली की मूर्तियां मिली हैं। विजयनगर की राजधानी हंपी में 16वीं सदी के एक मंदिर में होली के कई दृश्य हैं जिसमें राजकुमार एवं राजकुमारी अपने दासों सहित एक दूसरे को रंग लगा रहे हैं।

होली सामाजिक समरसता का संदेश देती है। स्वरूप और रंग अलग हों, लेकिन ब्रज से लेकर अवध और मिथिला तक संदेश एक ही है। यह अग्नि की पूजा का पर्व भी है, यानी उस शक्ति की पूजा सर्वशक्तिमान है और हमें कष्टों से मुक्ति दे सकती है। यह उत्सव के उल्लास में आनंद की खोज का पर्व भी है। होली के रंगों का केवल भौतिक ही नहीं, बल्कि आत्मिक महत्व भी है। रंग हमारी उमंग में वृद्धि करते हैं और हर रंग का मानव जीवन से गहरा अंतरसंबंध जुड़ा हुआ है। वास्तव में होली भारतीय जनमानस में उमंग एवं उत्साह के संचार के साथ-साथ भारतीय सनातन संस्कृति तथा सामाजिक समरसता का संवाहक है।

होली के पावन पर्व पर समस्त नागरिकों को कोटि-कोटि बधाई एवं शुभकामनाएं।

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