घातक महामारी बनता क्षयरोग

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डॉ. रामानुज पाठक, सतना
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कोविड-19 के बाद वर्ष 2022 में विश्वभर में होने वाली मौतों का दूसरा प्रमुख कारण क्षय रोग(तपेदिक/टीबी) था।
क्षयरोग के कारण ह्यूमन इम्यूनो डेफ़िशियेन्सी वायरस (एचआईवी)/एक्वायर्ड इम्यूनोडेफिशिएंसी सिंड्रोम (एड्स) की तुलना में लगभग दोगुनी मौतें होती हैं। प्रत्येक वर्ष 100 लाख से अधिक लोग क्षय रोग से पीड़ित होते हैं। तपेदिक/ टीबी (ट्यूबरक्लोसिस) एक संक्रामक बीमारी है जो आमतौर पर फेफड़ों पर हमला करती है। धीरे-धीरे ये दिमाग या रीढ़ सहित शरीर के बाकी हिस्सों में भी फैल सकती है। शरीर में तपेदिक (टीबी) की बीमारी की शुरुआत माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक जीवाणु के संक्रमण के कारण होती है। शुरुआत में तो शरीर में कोई लक्षण नहीं दिखते हैं, लेकिन जैसे-जैसे यह संक्रमण बढ़ता जाता है, मरीज की परेशानियां भी बढ़ने लगती हैं। जिन लोगों के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है, उन्हें टीबी का खतरा ज्यादा रहता है। टी. बी. के प्रमुख लक्षण है, तीन सप्‍ताह से ज्‍यादा खांसी, बुखार विशेष तौर से शाम को बढने वाला बुखार, छाती में दर्द, वजन का घटना,भूख में कमी, बलगम के साथ खून आना। वर्ष 2022 में विश्वभर में कुल मामलों में क्षय रोग (तपेदिक/टीबी) से प्रभावित होने वाले शीर्ष 30 देशों की सामूहिक भागीदारी 87 प्रतिशत थी।

शीर्ष देशों में भारत के अतिरिक्त, इंडोनेशिया, चीन, फिलीपींस, पाकिस्तान, नाइजीरिया, बांग्लादेश और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य शामिल हैं। वर्ष 2022 में वैश्विक स्तर पर 750 लाख क्षय रोग (तपेदिक/टीबी) से पीड़ित लोगों का निदान किया गया, जो वर्ष 1995 से विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वैश्विक तपेदिक निगरानी शुरू करने के बाद से दर्ज किया गया सबसे बड़ा आँकड़ा है।2022 में तपेदिक दुनिया का दूसरा प्रमुख संक्रामक रोग है जो मौत का कारण बना हुआ है। रपट के अनुसार, टी.बी. उपचार का कवरेज बढ़कर टी.बी. के अनुमानित मामलों के 80 प्रतिशत तक पहुँच गया है। यह विगत वर्ष की तुलना में 19 प्रतिशतअधिक है।यह भी सच है कि भारत के प्रयासों से वर्ष 2015 से 2022 में टी.बी. के मामलों में 16 प्रतिशत की कमी आई है जो टी.बी. के मामलों में वैश्विक कमी की दर (8.7प्रतिशत) से लगभग दोगुनी है। इसी अवधि के दौरान भारत सहित वैश्विक स्तर पर टी.बी. से मृत्यु दर में 18 प्रतिशत की कमी आई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने टी.बी. मृत्यु दर को वर्ष 2021 के 4.94 लाख से घटाकर 2022 में 3.31 लाख कर दिया है। यह एक वर्ष में 34 प्रतिशत से अधिक की कमी है। इस रपट के अनुसार, टी.बी. निदान को लेकर भारत की गहन रणनीतियों से वर्ष 2022 में सर्वाधिक 24.22 लाख टी.बी. रोगियों की पहचान की गई। यह संख्या पूर्व-कोविड स्तरों से अधिक है।

बीते 7 नवंबर को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लू एच ओ) ने ‘वैश्विक तपेदिक (टीबी) रपट-2023’ जारी किया। यह रपट भारत में और विश्व स्तर पर टी.बी. की रोकथाम, निदान एवं उपचार सेवाओं में महत्त्वपूर्ण सुधार को रेखांकित करती है। यह रपट मुख्यतः डब्ल्यू.एच.ओ. द्वारा एक निश्चित समयांतराल में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मंत्रालयों से एकत्र किए गए डाटा पर आधारित है। वर्ष 2023 में विश्व की 99 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या और टी.बी. के मामलों वाले 192 देशों व क्षेत्रों ने आंकड़ा रिपोर्ट किया। वैश्विक स्तर पर वर्ष 2022 में अनुमानतः 106 लाख लोग टी.बी. से बीमार हुए। यह संख्या वर्ष 2021 में 103 लाख से अधिक है। भारत में इस बीमारी से हर साल लगभग चार लाख भारतीयों की मौत होती है और इससे निपटने में सरकार सालाना लगभग 24 अरब डॉलर यानी लगभग 17 लाख करोड़ रुपये खर्च करती है। दुनियाभर के कुल मरीजों में टीबी के दो तिहाई मामले आठ देशों में मौजूद हैं. पहले स्थान पर है भारत, यहां 27 फीसद टीबी मरीज हैं, दूसरे स्थान पर चीन का नाम है, दुनिया के कुल मरीजों का 9 फीसद चीन में पाए जाते हैं। वहीं इंडोनेशिया में 8 फीसद, फिलिपींस में 6 फीसद, पाकिस्तान में 6 फीसद नाइजीरिया में 4 फ़ीसद, बांग्लादेश में 4 फीसद और दक्षिण अफ्रीका में 3 फीसद टीबी के मरीज हैं।

डब्ल्यूएचओ के अनुसार पूरी दुनिया के अनुमानित मामलों के एक चौथाई से ज्यादा मरीजों के साथ भारत टीबी रोगियों के मामले में पहले स्थान पर है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार भारत में हर साल लगभग 30 लाख नए टीबी के मामले दर्ज किए जाते हैं, जिसमें से एक लाख मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट के मामले होते हैं । टीबी के कारण भारत में हर साल चार लाख भारतीयों की मौत होती है।
डब्ल्यू.एच.ओ. के भौगोलिक क्षेत्रों में वर्ष 2022 में टी.बी. के अधिकांश मामले दक्षिण-पूर्व एशिया (46 प्रतिशत), अफ्रीका (23प्रतिशत) एवं पश्चिमी प्रशांत (18प्रतिशत) से थे, जबकि पूर्वी भूमध्य सागर (8.1प्रतिशत), अमेरिका (3.1प्रतिशत) व यूरोप (2.2प्रतिशत) से कम मामले सामने आए। रपट के अनुसार, वर्ष 2022 में 750 लाख लोगों में टी.बी. का निदान किया गया जो वर्ष 1995 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) द्वारा वैश्विक टी.बी. निगरानी शुरू करने के बाद से सर्वाधिक है।


भारत, इंडोनेशिया एवं फिलीपीन्स वर्ष 2020 व 2021 में टी.बी. से पीड़ित नए मामलों की संख्या में वैश्विक कमी के 60 प्रतिशत से अधिक के लिए ज़िम्मेदार थे। हालाँकि, इन सभी देशों में वर्ष 2022 में 2019 की तुलना में अधिक मामले सामने आए हैं। टी.बी. से निपटने के वैश्विक प्रयासों ने वर्ष 2000 के बाद से 750 लाख से अधिक लोगों की जान बचाई है। वर्ष 2015 से 2022 तक टी.बी. से संबंधित मृत्यु में 19प्रतिशत की शुद्ध कमी आई जो डब्ल्यू.एच.ओ. के वर्ष 2025 तक 75प्रतिशत की कमी एवं टी.बी. रणनीति के लक्ष्य से काफी कम है। लगभग 50प्रतिशत टी.बी. रोगियों एवं उनके परिवारजनों को अत्यधिक आर्थिक लागत का सामना करना पड़ता है (प्रत्यक्ष चिकित्सा व्यय, गैर-चिकित्सा व्यय एवं अप्रत्यक्ष लागत, जैसे- आय में कमी)। यह डब्ल्यू.एच.ओ. द्वारा टी.बी. की समाप्ति के लक्ष्य में मुख्य चुनौती है। टी.बी. पर पहली संयुक्त राष्ट्र उच्च-स्तरीय बैठक की राजनीतिक घोषणा में वर्ष 2018-2022 के लिए निर्धारित लक्ष्य पूरे नहीं किए जा सके हैं।


टी.बी. उपचार के लिए लक्षित 400 लाख लोगों में से केवल 84 प्रतिशत लोगों की ही उपचार तक पहुँच हो पाई और टी.बी. निवारक उपचार के लिए लक्षित 300 लाख लोगों में से केवल 52 प्रतिशत ही इसका उपयोग कर पा रहे हैं। वर्ष 2019 से मल्टी-ड्रग रेसिस्टेंट-टीबी (एमडीआर-टीबी) एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट और स्वास्थ्य सुरक्षा के लिये एक गंभीर खतरा बना रहा।मल्टी-ड्रग रेसिस्टेंट ट्यूबरकुलोसिस’ (एमडीआर-टीबी) टीबी का एक प्रकार है, जिसका इलाज दो सबसे शक्तिशाली एंटी-टीबी दवाओं के साथ नहीं किया जा सकता है। ‘एक्स्टेंसिव ड्रग रेसिस्टेंट ट्यूबरकुलोसिस’ (एक्सडीआर-टीबी) टीबी का वह रूप है, जो ऐसे जीवाणु के कारण होता है जो कई सबसे प्रभावी प्रति-टीबी दवाओं के प्रतिरोधी होते हैं। मल्टी ड्रग-प्रतिरोधी टी.बी. (एमडीआर-टीबी) एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बना हुआ है। वर्ष 2022 में अनुमानत: 410,000 लोगों में मल्टीड्रग-प्रतिरोधी या रिफैम्पिसिन-प्रतिरोधी टी.बी. (एमडीआर/आरआर-टीबी) विकसित हुई, किंतु पाँच में से केवल दो लोगों को ही इसका इलाज मिल सका। यूएन एजेंसी (डब्लू एच ओ) के महानिदेशक डॉक्टर टैड्रोस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने जिनेवा में पत्रकारों को संबोधित करते हुए बताया था कि हमें उपलब्ध उपकरणों को और अधिक लोगों तक पहुँचाने की आवश्यकता है लेकिन साथ ही नए साधनों की भी ज़रूरत है,क्योंकि टीबी उपचार के विकल्प सीमित हैं।

डीओटी अर्थात डॉट का उपयोग भी टीबी के उपचार में किया जाता रहा है। डॉट (प्रत्यक्ष-अवलोकित चिकित्सा) का अर्थ है कि एक प्रशिक्षित स्वास्थ्य देखभाल कार्यकर्ता या अन्य नामित व्यक्ति (परिवार के सदस्य को छोड़कर) निर्धारित टीबी दवाएं प्रदान करता है और रोगी को प्रत्येक खुराक निगलते हुए देखता है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि मरीज़ अपनी दवाएँ लें, डीओटी सबसे प्रभावी रणनीति है। मिसिसिपी देखभाल के मानक के रूप में डीओटी को अपनाने वाला पहला राज्य था। अब इसे रोग नियंत्रण केंद्र और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा टीबी के इलाज के लिए मानक के रूप में अनुशंसित किया गया है।


“टीबी के उपचार में इस्तेमाल की जाने वाली कुछ दवाओं का प्रभाव, दवा प्रतिरोध में वृद्धि की वजह से कम हो रहा है।टीबी के विनाशकारी स्वास्थ्य, सामाजिक और आर्थिक परिणामों के बारे में जागरूकता फैलाने और विश्व स्तर पर टीबी महामारी को समाप्त करने के प्रयास के लिये 24 मार्च को विश्व तपेदिक (टीबी) दिवस मनाया जाता है। “प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत”अभियान के तहत भारत का लक्ष्य वर्ष 2025 तक देश से टीबी को खत्म करना है (2030 के वैश्विक लक्ष्य से 5 साल पहले)।”नि-क्षय मित्र” इस पहल का एक घटक है जो टीबी के इलाज के लिये अतिरिक्त निदान, पोषण और व्यावसायिक सहायता सुनिश्चित करता है।
भारत देश में टीबी के वास्तविक बोझ का आकलन करने के लिये अपना स्वयं का राष्ट्रीय टीबी प्रसार सर्वेक्षण आयोजित करता है जो कि दुनिया का अब तक का सबसे बड़ा सर्वेक्षण है।


केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने सर्वेक्षण के साथ-साथ “टीबी हारेगा देश जीतेगा अभियान”भी शुरू किया।
वर्तमान में टीबी के लिये दो टीके वी पी एम (वक्जीने प्रोजेक्ट मैनेजमेंट) 1002 और एमआई पी (माइकोबैक्टरीयम इंडिकस प्रानिल) विकसित और पहचाने गए हैं, जिनका नैदानिक परीक्षण चल रहा है,अभी केवल बेसिल कैलमेट-गुएरिन (बी सी जी) वैक्सीन जिसने अपने खोज के 100 वर्ष पूरे कर लिये हैं और यह वर्तमान में ‘तपेदिक’ (टीबी) की रोकथाम के लिये उपलब्ध एकमात्र वैक्सीन (टीका) है।

बीसीजी के बारे में सबसे रोचक तथ्य है कि यह कुछ भौगोलिक स्थानों पर अच्छा काम करता है, जबकि कुछ जगहों पर इतना प्रभावी नहीं होता है। आमतौर पर भूमध्य रेखा से दूरी बढ़ने के साथ-साथ ‘बीसीजी वैक्सीन’ की प्रभावकारिता भी बढ़ती जाती है।यूके, नॉर्वे, स्वीडन और डेनमार्क में इसकी प्रभावकारिता काफी अधिक है तथा भारत, केन्या एवं मालद्वीप जैसे भूमध्य रेखा पर या उसके आस-पास स्थित देशों में, जहाँ क्षय रोग का भार अधिक है, वहाँ इसकी प्रभावकारिता बहुत कम या कोई प्रभाव नहीं दिखाई देता है। भारत के तपेदिक नियंत्रण हेतु कई प्रयास जारी हैं:जैसे,क्षय रोग उन्मूलन वर्ष 2017-2025 हेतु राष्ट्रीय रणनीतिक योजना (एन एस पी), निक्षय इकोसिस्टम (राष्ट्रीय टीबी सूचना प्रणाली), निक्षय पोषण योजना (एन वाय पी द्वारा वित्तीय सहायता), टीबी हारेगा देश जीतेगा अभियान ।


जैसा कि पूर्व में उल्लेख किया गया है कि वर्तमान में नैदानिक परीक्षण के तीसरे चरण के अंतर्गत टीबी के लिये दो टीके विकसित किये गए हैं – वैक्सीन प्रोजेक्ट मैनेजमेंट 1002 (वी पी एम1002) तथा माइकोबैक्टीरियम इंडिकस प्राणी’ (एमआईपी) देर सबेर अगर ये टीके प्रभावी रूप से टीबी के उपचार में प्रयुक्त होते हैं तो बीसीजी जैसे कम असरकारी टीके पर निर्भरता घटेगी। तपेदिक से पीड़ित कई लोग गुप्त संक्रमण चरण में रहते हैं, लेकिन कुछ में सक्रिय रोग विकसित हो जाता है यद्यपि दोनों चरण उपचार योग्य हैं। इतने सारे प्रयासों के बावजूद भारत में तपेदिक नियंत्रण में आशातीत सफलता नहीं मिल पा रही है। भारत मधुमेह के साथ तपेदिक की वैश्विक राजधानी बनता जा रहा है। ऐसे में जनसंख्या की कार्यक्षमता प्रभावित हो रही है रोग ग्रसित देश की अर्थव्यवस्था किस प्रकार कुलांचें भरते हुए सरपट दौड़ लगा पाएगी बड़ा यक्ष प्रश्न है।

फ़िलहाल, टीबी की रोकथाम के लिए मौजूद एकमात्र वैक्सीन लगभग एक सदी पुरानी है, जोकि युवाओं और वयस्कों के लिए पर्याप्त रक्षा कवच नहीं है, जिनमें टीबी संचारण के अधिकतर मामले सामने आते हैं। कुछ जोखिम कारक, जैसे एचआईवी या मधुमेह जैसी अन्य स्वास्थ्य स्थितियाँ जो प्रतिरक्षा को दबाती हैं, प्रतिकूल परिणामों के जोखिम को बढ़ा सकती हैं। उपचार में देरी करने से भी ठीक होने में चुनौती आती है, इसलिए जीवित रहने की संभावना को अधिकतम करने के लिए शीघ्र उपचार प्राप्त करना महत्वपूर्ण है। और यह सदैव ध्यान रहे टीबी घातक संक्रामक रोग है,भारत को सचेत रहना होगा।

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