दुनिया के 60 फीसद कुप्रबंधित प्लास्टिक कचरे के लिए सिर्फ 12 देश जिम्मेदार

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डॉ. रामानुज पाठक, सतना
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दशकों पहले विज्ञान के चमत्कार से वैज्ञानिकों ने प्लास्टिक का आविष्कार किया जिसने मानव जीवन को सरल बनाया। लेकिन धीरे-धीरे यह प्लास्टिक अब पर्यावरण के लिये ही दैत्य बन गया है। प्लास्टिक और पॉलीथीन के कारण पृथ्वी और जल के साथ-साथ वायु भी प्रदूषित होती जा रही है। हाल के दिनों में मीठे और खारे दोनों प्रकार के जल में मौजूद जलीय जीवों में प्लास्टिक के रसायन (केमिकल) से होने वाले दुष्प्रभाव नज़र आने लगे हैं। इसके बावजूद प्लास्टिक और पॉलीथीन की बिक्री में कोई कमी नहीं आई है। प्लास्टिक की उत्पत्ति सेलूलोज़ व्युत्पन्न में हुई थी। प्रथम संश्लेषित प्लास्टिक को बेकेलाइट कहा गया और इसे जीवाश्म ईंधन से निकाला गया था।फेंकी हुई प्लास्टिक धीरे-धीरे अपघटित होती है एवं इसके रसायन आसपास के परिवेश में घुलने लगते हैं। यह समय के साथ और छोटे-छोटे घटकों में टूटती जाती है और हमारी खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करती है।

यहाँ यह स्पष्ट करना बहुत आवश्यक है कि प्लास्टिक की बोतलें ही केवल समस्या नहीं हैं, बल्कि प्लास्टिक के कुछ छोटे रूप भी हैं, जिन्हें माइक्रोबिड्स कहा जाता है। ये बेहद खतरनाक तत्त्व होते हैं। इनका आकार 5 मिमी. से अधिक नहीं होता है।इनका इस्तेमाल सौंदर्य उत्पादों तथा अन्य क्षेत्रों में किया जाता है। ये खतरनाक रसायनों को अवशोषित करते हैं। जब पक्षी एवं मछलियाँ इनका सेवन करती हैं तो यह उनके शरीर में चले जाते हैं।भारतीय मानक ब्यूरो ने हाल ही में जैव रूप से अपघटित न होने वाले माइक्रोबिड्स को उपभोक्ता उत्पादों में उपयोग के लिये असुरक्षित बताया है। अधिकांशतः प्लास्टिक का जैविक क्षरण नहीं होता है। यही कारण है कि वर्तमान में उत्पन्न किया गया प्लास्टिक कचरा सैकड़ों-हज़ारों साल तक पर्यावरण में मौजूद रहेगा। ऐसे में इसके उत्पादन और निस्तारण के विषय में गंभीरतापूर्वक विचार-विमर्श किये जाने की आवश्यकता है।


स्थिति यह है कि वर्तमान समय में प्रत्येक वर्ष लाखों टन प्लास्टिक का उपयोग किया जा रहा है। प्रतिवर्ष हम इतनी अधिक मात्रा में एक ऐसा पदार्थ इकठ्ठा कर रहे हैं जिसके निस्तारण का हमारे पास कोई मितव्ययी विकल्प मौजूद नहीं है। यही कारण है कि आज के समय में जहाँ देखो प्लास्टिक एवं इससे निर्मित पदार्थों का ढेर देखने को मिल जाता है।पहले तो यह ढेर धरती तक ही सीमित था लेकिन अब यह नदियों से लेकर समुद्र तक हर जगह नज़र आने लगा है। धरती पर रहने वाले जीव-जंतुओं से लेकर समुद्री जीव भी हर दिन प्लास्टिक निगलने को विवश है। इसके कारण प्रत्येक वर्ष तकरीबन 1 लाख से अधिक जलीय जीवों की मृत्यु होती है।


समुद्र के प्रति मील वर्ग में लगभग 46 हज़ार से अधिक प्लास्टिक के टुकड़े पाए जाते हैं। इतना ही नहीं हर साल प्लास्टिक बैग का निर्माण करने में लगभग 4.3 अरब गैलन कच्चे तेल का इस्तेमाल होता है। एक नए अध्ययन से पता चला है कि 2024 में 2हजार 200लाख टन प्लास्टिक कचरा पैदा होगा,और इस तरह प्लास्टिक कचरा कुप्रबंधन के कारण प्लास्टिक कचरा उत्पादन में लगातार वृद्धि हो रही है।दुनिया के 60फीसद कुप्रबंधित प्लास्टिक कचरे के लिए सिर्फ 12 देश जिम्मेदार हैं, शीर्ष पांच में चीन, अमेरिका, भारत, ब्राजील और मैक्सिको हैं। वैश्विक औसत प्लास्टिक कचरा प्रति व्यक्ति बढ़कर 28किलोग्राम हो जायेगा। स्विस गैर-लाभकारी ईए अर्थ एक्शन द्वारा बीते 11 अप्रैल, 2024 को जारी की गई डे रपट में उल्लेख किया गया है।


यह रिपोर्ट कनाडा के ओटावा में संयुक्त राष्ट्र वैश्विक प्लास्टिक संधि के लिए चौथे दौर की वार्ता से पहले जारी की गई है। बीते वर्ष, दुनिया ने पहला ‘ग्लोबल प्लास्टिक ओवरशूट डे’ मनाया था। यही वह तारीख थी जब विश्व स्तर पर उत्पन्न होने वाले प्लास्टिक कचरे की मात्रा इसे प्रबंधित करने की दुनिया की हालाँकि, शोधकर्ताओं ने पाया कि अप्रैल 2024 से दुनिया की लगभग 50 प्रतिशत आबादी उन क्षेत्रों में रह रही है जहाँ उत्पन्न प्लास्टिक कचरा पहले ही इसे प्रबंधित करने की क्षमता से अधिक हो गया है।
5 सितंबर, 2024 तक यह आंकड़ा बढ़कर 66 फीसद होने का अनुमान है, जो प्लास्टिक प्रदूषण संकट के कारण विकासशील देशों पर पड़ने वाले दबाव को दर्शाता है। राष्ट्रीय स्तर पर इस मुद्दे को चिन्हित करने के लिए, प्रत्येक देश का अपना प्लास्टिक ओवरशूट दिवस होता है जो उत्पन्न प्लास्टिक कचरे की मात्रा और देश की इसे प्रबंधित करने की क्षमता से निर्धारित होता है।

प्लास्टिक ओवरशूट के 117 दिन होते हैं, जिसका अर्थ है कि उत्पादित प्लास्टिक कचरा इन दिनों के दौरान अच्छी तरह से प्रबंधन नहीं किया गया या नहीं किया जाएगा। ईए अर्थ एक्शन एंड प्लास्टिक फुटप्रिंट नेटवर्क की उप मुख्य कार्यपालन अधिकारी ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि “निष्कर्ष स्पष्ट हैं; बढ़ते प्लास्टिक उत्पादन के कारण अपशिष्ट प्रबंधन क्षमता में सुधार की तुलना में प्रगति लगभग अदृश्य हो गई है। यह धारणा कि पुनर्चक्रण और अपशिष्ट प्रबंधन क्षमता में सुधार होगा प्लास्टिक संकट का समाधान त्रुटिपूर्ण है।”पर्यावरणविदों ने ओटावा में संयुक्त राष्ट्र प्लास्टिक संधि वार्ता से पहले, विज्ञान-संचालित, मजबूत वैश्विक नीति का दृढ़ता से पालन करने का आह्वान किया है, जो प्लास्टिक प्रदूषण समस्या के पैमाने से मेल खाती हो। ज्ञात हो कि पूर्व में दुनिया के 52 फीसद कुप्रबंधित प्लास्टिक कचरे के लिए जिम्मेदार 12 देश थे जो आंकड़ा बढ़कर 60फीसद हो गया और उन 12 देशों में भारत भी शामिल है। ज्ञात हो कि चीन, ब्राजील, इंडोनेशिया, थाईलैंड, रूस, मैक्सिको, संयुक्त राज्य अमेरिका, सउदी अरब, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, ईरान और कजाकिस्तान के साथ भारत उन 12 देशों में शामिल है, जो दुनिया के 60फीसद कुप्रबंधित प्लास्टिक के लिए जिम्मेदार हैं। वर्तमान परिदृश्य में, प्रतिज्ञाओं और अपशिष्ट प्रबंधन क्षमता में वृद्धि के बावजूद, प्लास्टिक के बढ़ते उत्पादन से 2040 तक वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण तीन गुना हो जाएगा ऐसा अनुमान है।


रपट में चिंता व्यक्त करते हुए कहा गया है कि कहा गया है कि चक्रीय उपयोग के लिए डिज़ाइन नहीं किए गए प्लास्टिक को चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जाना चाहिए। ईए अर्थ एक्शन की पूर्व रपट में बताया जा चुका है कि 2023 में वैश्विक स्तर पर उत्पादित होने वाले 1हजार 590 लाख टन प्लास्टिक (एकल उपयोगी याजिसे केवल थोड़े समय के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है) में से 43 फीसद (6 सौ 85 लाख टन) प्रदूषण का कारण बनेगा।दुनिया के लिए एक चेतावनी है। प्लास्टिक ओवरशूट दिवस विश्व की प्लास्टिक खपत के एक महत्वपूर्ण पहलू पर प्रकाश डालता है: अल्प-जीवन प्लास्टिक, जिसमें प्लास्टिक पैकेजिंग और एकल-उपयोग प्लास्टिक शामिल हैं। सालाना कुल व्यावसायीकृत प्लास्टिक का लगभग 37 फीसद ही काम प्रदूषण फैलाता है शेष 63फीसद प्लास्टिक किसी न किसी रूप में पर्यावरण की स्वस्थ सेहत में अधिक खतरा पैदा करते हैं।


जब प्रति व्यक्ति के आधार पर प्लास्टिक की खपत की बात आती है, तो दुनिया का सबसे खराब अपराधी आइसलैंड है, जहां प्रति व्यक्ति वार्षिक खपत 128.9 किलोग्राम है। यह भारत में प्रति व्यक्ति 5.3 किलोग्राम की वार्षिक खपत से 24.3 गुना अधिक है। प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष प्लास्टिक की वैश्विक औसत खपत 20.9 किलोग्राम थी जो अब 28किलोग्राम प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष के खतरनाक स्तर तक बढ़ गई है।भारत के लिए पिछला ओवरशूट दिवस, या वह तारीख जब प्लास्टिक कचरे की मात्रा देश की इसे प्रबंधित करने की क्षमता से अधिक थी, 6 जनवरी 2023 थी। प्लास्टिक ओवरशूट दिवस देश के कुप्रबंधित अपशिष्ट सूचकांक (एमडब्ल्यूआई) के आधार पर निर्धारित किया जाता है।उत्पादित और उपयोग किए जाने वाले प्लास्टिक की मात्रा के बीच असंतुलन, साथ ही जब वे अपशिष्ट बन जाते हैं तो उस मात्रा को प्रबंधित करने की दुनिया की क्षमता, प्लास्टिक प्रदूषण का मूल कारण है। प्रबंधन क्षमता और प्लास्टिक खपत को एम डब्लू आई कहा जाता है।


दस्तावेज़ के अनुसार, सबसे अधिक कुप्रबंधन वाले तीन देश (भारत के बाद) मोजाम्बिक (99.8 फीसद), नाइजीरिया (99.44 फीसद) और केन्या (98.9 फीसद) अफ्रीका के गरीब देश हैं। ईए (अर्थ एक्शन) रपट के अनुसार, भारत एमडब्ल्यूआई में चौथे स्थान पर है, जहां उत्पन्न कचरे का 98.55 फीसद कुप्रबंधन होता है अर्थात प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन में भारत का प्रदर्शन भी अत्यंत खराब है।हालांकि, दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) में नगरपालिका ठोस अपशिष्ट के कार्यक्रम प्रबंधक ने कहा कि “ई ए रपट के सूचकांक को चुनौती दी जा सकती है, खासकर भारत के कुप्रबंधित अपशिष्ट सूचकांक के संबंध में,सीएसई की रपट, द प्लास्टिक लाइफ साइकल (प्लास्टिक जीवन चक्र)के अनुसार, भारत अपने प्लास्टिक कचरे का 12.3 फीसद पुनर्चक्रण करता है और 20 फीसद को जला देता है।

ऐसा केंद्रीकृत ईपीआर पोर्टल में भी दर्ज है। वहीं पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा विकसित एक रपट यह भी बताया गया है कि,भारत में सालाना 142 लाख टन प्लास्टिक कचरे को संसाधित करने की संचयी क्षमता है। इसमें पुनर्चक्रण और भस्मीकरण शामिल है, जो दर्शाता है कि देश में उत्पादित सभी प्राथमिक प्लास्टिक का 71 फीसद संसाधित करने की क्षमता है।शोधकर्ताओं ने विश्लेषण करने के लिए देशों को 10 मूलरूपों में वर्गीकृत किया: लेन-देन करने वाले, आत्मनिर्भर, संघर्ष करने वाले, अतिभारित, विषाक्त निर्यातक, अपशिष्ट रक्षक, अपशिष्ट स्पंज, चयनात्मक निर्यातक, निर्यातक प्रदूषक और छोटे- पैमाना।इनमें से, प्लास्टिक प्रदूषण विशेष रूप से भारत सहित परिपक्व अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों के बिना विकासशील देशों को प्रभावित करता है। इन देशों को ‘अपशिष्ट स्पंज’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

हालाँकि, ईए द्वारा अपशिष्ट स्पंज के रूप में वर्गीकृत किए गए 25 फीसद देश अन्य देशों से अपशिष्ट को अवशोषित करके वैश्विक अपशिष्ट संकट का समाधान करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अपने स्वयं के अपशिष्ट का प्रबंधन करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अपशिष्ट स्पंज में प्लास्टिक की खपत कम होती है फिर भी प्लास्टिक प्रदूषण का स्तर उच्च होता है।यह चिंताजनक है क्योंकि 2023 में भारत में अनुमानित कुप्रबंधित कचरा 7,300,752 टन प्लास्टिक था। भारत जैसे पर्यावरण हितैषी देश ने भी जलमार्गों में औसतन 3,30,764 टन सूक्ष्म प्लास्टिक (माइक्रोप्लास्टिक) छोड़ने के लिए भी जिम्मेदार है। भारतीय उद्योग के अनुमान के अनुसार, देश में कुल प्राथमिक प्लास्टिक उत्पादन 200लाख मीट्रिक टन है, इसमें से 43 फीसद प्रकृति में एकल उपयोग है। इसका मतलब यह है कि देश में लगभग 86 लाख टन एकल उपयोग प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पन्न होता है – जो इस रिपोर्ट के अनुमान से 13लाख टन अधिक है। बहरहाल ई ए रपट में सुझाव दिया गया है कि प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिए, भारत को विस्तारित उत्पादक जिम्मेदारी (ईपीआर) जैसी अपशिष्ट प्रबंधन नीतियों में निवेश करना चाहिए। इसमें कहा गया है कि जो प्लास्टिक चक्रीय उपयोग के लिए डिज़ाइन नहीं किए गए हैं, उन्हें चरणबद्ध तरीके से हटा दिया जाना चाहिए।


भारत 2019 में एकल-उपयोग प्लास्टिक पर वैश्विक प्रतिबंध का प्रस्ताव करने वाले कुछ देशों में से एक था। बाद में इस विचार को व्यापक बनाया गया और दुनिया मार्च 2022 में 2024 तक प्लास्टिक प्रदूषण पर एक वैश्विक संधि बनाने पर सहमत हुई थी।संयुक्त राष्ट्र प्लास्टिक संधि प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ वैश्विक कार्रवाई शुरू करने के लिए जीवन में एक बार मिलने वाले अवसर का प्रतिनिधित्व करती है। लेकिन इसे प्राप्त करने के लिए, संधि को पर्याप्त रूप से लागू किया जाना चाहिए, बातचीत की जानी चाहिए, अनुसमर्थन किया जाना चाहिए और उच्च महत्वाकांक्षा के साथ लागू किया जाना चाहिए।


हालाँकि, भारत ने 29 मई से 2 जून, 2023 तक पेरिस में आयोजित दूसरे दौर की वार्ता के लिए अपना लिखित प्रस्तुतीकरण प्रस्तुत करने से परहेज किया था।पेरिस वार्ता में 70 फीसद प्रस्तुतियों में अनावश्यक प्लास्टिक उत्पादों को प्रतिबंधित/चरणबद्ध तरीके से बाहर करने की बात कही गई थी, वहीं नगण्य 8 फीसद ने प्लास्टिक उत्पादन पर रोक लगाने का सुझाव दिया। इसी तरह, स्टेट ऑफ इंडियाज़ एनवायरनमेंट 2023 इस रपट में प्रकाशित एक विश्लेषण के अनुसार, केवल 10 फीसद प्रस्तुतियों में समाधान खोजने के लिए प्लास्टिक के पूरे जीवनचक्र को देखने का सुझाव दिया गया था। मानवीय लापरवाही के कारण समुद्र भी तेजी से प्रदूषित होते जा रहे हैं। एक अन्य रपट में शोधकर्ताओं ने समुद्र के तल में 1 करोड़10लाख टन प्लास्टिक जमा होने की बात बताई है।एक अध्ययन में पता चला है कि समुद्र की गहराइयों में 1 करोड़ 10 लाख टन प्लास्टिक जमा है, जो न सिर्फ पर्यावरण बल्कि जैवविविधता के लिए गंभीर संकट बन चुका है।

अध्ययन के अनुसार हर मिनट कचरे से भरे एक ट्रक के बराबर प्लास्टिक समुद्र में समा रहा है।कॉमनवेल्थ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ऑर्गनाईजेशन(सीएसआईआरओ) और टोरंटो विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का अध्ययन ओशियोनोग्राफिक रिसर्च पेपर्स में प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया है कि 192 देशों से निकला करीब 80 लाख टन प्लास्टिक कचरा प्रतिवर्ष महासागरों में समा रहा है। समुद्रों में पहुंचने वाला करीब 80 फीसद प्लास्टिक कचरे को समय रहते नहीं रोका तो अत्यंत विनाशकारी परिणाम होंगे। समुद्री पारिस्थितिकी बुरी तरह प्रभावित होगी।अध्ययन से जुड़ी एक शोधकर्ता ने तो चेतावनी देते हुए कहा है कि, समुद्र तल पर मौजूद प्लास्टिक कचरे की मात्रा समुद्र की सतह पर तैरते प्लास्टिक से 100 गुना अधिक हो सकती है। यदि हम प्लास्टिक को समुद्रों में प्रवेश करने से रोक सकें तो इसकी मात्रा कम हो जाएगी। यदि इसको नहीं रोका गया तो यह पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए विनाशकारी साबित होगा।


प्लास्टिक कचरा जमीन पर ठोस कचरे के कुप्रबंधन से जुड़ा है। यह कचरा भूमि से जुड़े समुद्री मार्गों के जरिए समुद्र तल तक पहुंच रहा है। शेष 20 फीसद कचरे के लिए समुद्र तट के किनारे बसी हुई बस्तियां जिम्मेदार हैं।2060 तक करीब 3 गुना बढ़ जाएगा प्लास्टिक कचरा बढ़ने का अनुमान लगाया गया है। आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) की हाल ही जारी रिपोर्ट ‘ग्लोबल प्लास्टिक आउटलुकः पालिसी सिनेरियोज टू 2060’ से पता चला है कि हर साल पैदा होने वाला यह प्लास्टिक कचरा 2060 तक करीब तीन गुना बढ़ जाएगा। एक मोटे अनुमान के अनुसार यह अगले 37 वर्षों में बढ़कर 100करोड़ 14 लाख टन से ज्यादा होगा। दुनिया भर में समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण के सबसे बड़े उत्सर्जक 10 देश हैं। इनमें सबसे अधिक से लेकर सबसे कम तक क्रमशः चीन, इंडोनेशिया, फिलिपीन, वियतनाम, श्रीलंका, थाईलैंड, मिस्र, मलेशिया, नाइजीरिया और बांग्लादेश हैं।


ईए ने अपनी रपट में एक महत्वाकांक्षी संधि का आह्वान किया है और सभी देशों की सरकारों से इसका समर्थन और अनुसमर्थन करने का आग्रह किया है ताकि प्लास्टिक कचरे का सही तरीके से प्रबंधन करके पर्यावरण प्रदूषण के इस दैत्य से मानवता की रक्षा की जा सके।

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